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कतर पर दिखने लगा बहिष्कार का असर

६ जून २०१७

सपने कभी कभी बहुत जल्द टूट जाते हैं. कतर को तो सऊदी अरब और साथी देशों के फैसले ने जैसे सैलानियों का केंद्र बनने वाले सपने की दुनिया से जबरन बाहर खींच लिया है. सऊदी अरब के साथ सीमा बंद है और कतर एयरवेज पर रोक है.

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Katar Doha Skyline
तस्वीर: Getty Images/M. Runnacles

खाड़ी के इस छोटे से देश ने हवाई अड्डे, बंदरगाहों और यातायात के दूसरे प्रोजेक्टों पर 200 अरब डॉलर का निवेश किया था. वह अपने देश को पर्यटन का केंद्र बनाना चाहता था और 2022 में फुटबॉल विश्वकप की चकाचौंध में नहाना चाहता था. विजन 2030 में तय किया गया था कि तेल आधारित अर्थव्यवस्था को शिक्षा और विज्ञान की मदद से व्यापक बनाया जायेगा. लेकिन सऊदी अरब और साथियों के फैसले ने इस सपने को उलझा दिया है.

इस समय कतर की दो तिहाई अर्थव्यवस्था तेल या गैस के कारोबार पर निर्भर है. बंदरगाहों का विस्तार कर वह कम से कम तरल गैस के निर्यात को आगे बढ़ा सकता है, लेकिन साथ ही सबंधों के तोड़े जाने के बाद पड़ोसी सऊदी अरब से होकर आने वाले खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कट गयी है. राजधानी दोहा में दुकानों के खाली रैक दिखाते हैं कि कतर को अब भविष्य के सपनों के बदले जान बचाने की रणनीति बनानी होगी. लेकिन कतर से संबध तोड़ने वाले पड़ोसी देशों ने इस फैसले के साथ अपने पांव पर भी कुल्हाड़ी मारी है.

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने 2015 में करीब 33 करोड़ डॉलर का खाद्य पदार्थों का निर्यात किया है. एक विदेशी बैंकर का कहना है, "यदि झगड़ा लंबा खिंचता है तो उसके गंभीर परिणाम होंगे." कतर में फुटबॉल विश्व कप के लिए हो रहे निर्माण कार्य का खर्च भी बढ़ जायेगा, यदि इमारतें बनाने के लिए जरूरी मैटीरियल सऊदी अरब के रास्ते नहीं आ पायेगा. हालांकि अभी सरकारी खजाने भरे हुए हैं. कतर के सरकारी निवेश फंड में अनुमानतः 335 अरब डॉलर की संपत्ति है. लेकिन वह अपनी भावी योजनाओं को अपने बलबूते ही पूरा नहीं कर सकता, उसे विदेशी निवेशकों के भरोसे की जरूरत है. उसके लिए कर्ज लेना महंगा हो जायेगा लेकिन सऊदी अरब और बहरीन जैसे देशों पर भी इसका असर होगा.

मिस्र भी कतर के बहिष्कार में शामिल है. इस फैसले का उस पर भी असर होगा क्योंकि कतर में काम करने वाले 16 लाख विदेशी मजदूरों में से करीब 350,000 मिस्री मजदूर हैं. यदि यह विवाद जारी रहता है और इसका असर कतर के विकास पर पड़ता है तो उनकी नौकरियां जाने का खतरा है. भारत के भी 650,000 मजदूर कतर में हैं. भारत की विदेश मंत्री ने भारतीय मजदूरों की हालत पर चिंता जतायी है तो कतर में मिस्री समुदाय के प्रमुख ने कहा है, "वहां घबराहट है." मिस्री मजदूरों को नौकरी खोने और देश से निकाले जाने का डर है. अगर सऊदी अरब विदेशी कंपनियों पर कतर के साथ संबंधों को तोड़ने के लिए दबाव डालता है तो उसके लिए और मुश्किल होगी. वित्तीय केंद्र अबु धाबी भी अनिष्ट की आशंका में डूबा है.

एमजे/एके (रॉयटर्स, एएफपी)