1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कतर में 441 मजदूरों की मौत

ईशा भाटिया (पीटीआई)१ जून २०१५

कतर में 2022 में फीफा फुटबॉल वर्ल्ड कप खेला जाना है. खेलों की तैयारियों में लगा कतर लगातार विवादों में फंसता जा रहा है. एमनेस्टी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार बीते साल कतर में 441 भारतीय और नेपाली मजदूरों की जान गयी.

https://p.dw.com/p/1FZzV
Arbeiter Baustelle in Doha Katar sklavenähnliche Zustände
तस्वीर: Karim Jaafar/AFP/Getty Images

किसी भी देश में अंतर्राष्ट्रीय खेलों का आयोजन ना केवल उसके लिए गौरव की बात होती है, बल्कि आधारभूत ढांचे को मजबूत करने का एक जरिया भी. खेलों का आयोजन देश में पर्यटन को बढ़ावा देता है जो कि अर्थव्यवस्था के लिहाज से जरूरी है. लेकिन कतर को शोहरत कम और बदनामी ज्यादा हासिल हो रही है. तीन बड़े मुद्दों में देश विवादों में घिरता हुआ दिख रहा है. पहला, खेलों की दावेदारी की प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का मामला. दूसरा, खेलों के आयोजन के दौरान गर्मियों का तापमान. और तीसरा, आप्रवासी मजदूरों के शोषण का मामला.

कतर में काम कर रहे मजदूरों में सबसे ज्यादा संख्या भारत और नेपाल से गए लोगों की है. मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट के अनुसार बीते साल कतर में 441 भारतीय और नेपाली मजदूरों की जान गयी. इनमें भारत के 279 और नेपाल के 162 मजदूर शामिल हैं. हालांकि रिपोर्ट में केवल कंस्ट्रक्शन साइट पर हुए हादसों के शिकार ही नहीं, बल्कि किसी भी कारण से मरने वाले लोगों का आंकड़ा तैयार किया गया है.

छोटे वादे और थोड़े नतीजे

पिछले कुछ समय से बुरे हालात में गुजर बसर करने वाले मजदूरों की तस्वीरें मीडिया में देखी जा रही हैं. कतर सरकार ने मई 2014 में सुधारों का वायदा किया था. इस बारे में "प्रॉमिसिंग लिटल, डिलिवरिंग लेस" यानि छोटे वादे और थोड़े नतीजे नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया है, "इन वायदों को अमल में लाना मुमकिन नहीं दिखता और कतर सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी है कि वह किस तरह से इससे निपटेगी."

जर्मनी के सरकारी चैनल एआरडी ने हाल ही में दिखाया कि किस तरह मजदूर खंडहरों जैसी इमारतों में रहने को मजबूर हैं. एक कमरे में कई कई लोग जमीन पर बिस्तर लगा कर रह रहे हैं. यहां तक कि कई तो अधूरी बनी इमारतों के गुसलखानों में रह रहे हैं. चैनल ने पिछले साल और इस साल की रिपोर्टों को दिखा कर बताया है कि मजदूरों के हालात में कोई फर्क नहीं आया है. उनके कैंपस के चारों और बाड़ लगी है ताकि ना ही वे बाहर जा सकें और ना मीडिया अंदर आ सके.

मालिक के पास है पासपोर्ट

भारत से गए एक मजदूर गंगा प्रसाद ने बताया, "मेरी कंपनी ने मेरा पहचान पत्र अपने पास रखा हुआ है. यानि किसी भी वक्त पुलिस मुझे पकड़ सकती है और जेल में डाल सकती है. इस वजह से मैं कैंपस से बाहर ही नहीं जाता. मेरा जीवन या तो कंस्ट्रक्शन साइट है या फिर यह गंदा कमरा. अगर मेरा बस चलता तो मैं यह काम छोड़ कर कहीं और नौकरी ढूंढ लेता. लेकिन मैं ऐसा भी नहीं कर सकता क्योंकि मालिक के पास मेरा पासपोर्ट है और वह मुझे कहीं और जाने ही नहीं देगा."

ब्रिटिश अखबार गार्डियन की एक रिपोर्ट के अनुसार कतर सरकार ने एमनेस्टी के आरोपों को गलत ठहराते हुए कहा है, "पिछले एक साल में मजदूरों के अधिकारों और हालात को बदलने के लिए बहुत से महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं." एक बयान में सरकार ने कहा है कि 294 लेबर इंस्पेक्टर तैनात किए गए हैं और इस साल के अंत तक यह संख्या बढ़ा कर 400 कर दी जाएगी. इसके अलावा सरकार का दावा है कि ढाई लाख मजदूरों के लिए नए निवास भी बनाए जा रहे हैं.