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जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी का तनाव

७ अप्रैल २०१५

जम्मू-कश्मीर में इस समय ऐसी सरकार सत्ता में है जिसे राजनीतिक चमत्कार से कम कुछ भी नहीं कहा जा सकता. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) राजनीति में दो विपरीत ध्रुवों की तरह हैं.

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Mufti Mohammed Sayeed
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Anand

इनका मिलजुल कर सरकार बनाना और चलाना बेहद टेढ़ी खीर है. लेकिन दोनों ही भरसक इस कोशिश में हैं कि किसी तरह वे इस कठिन काम को अंजाम देने में सफल हो जाएं. बेर-केर के संग को बनाए रखने की यह कोशिश किस हद तक और कब तक सफल सिद्ध होगी, कहना मुश्किल है. जहां पीडीपी और उसके नेता एवं जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का सवाल है, उनकी राजनीतिक लाइन को नर्म अलगाववादी कहा जा सकता है जबकि बीजेपी की लाइन उग्र हिन्दू राष्ट्रवाद की है.

इन दोनों परस्पर विरोधी धाराओं का संगम सरकार बनाने के लिए अनिवार्य हो गया था क्योंकि यदि बीजेपी के बिना कोई भी सरकार बनती, तो उसमें जम्मू जैसे विशाल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व ही नहीं होता. क्योंकि नया चुनाव करने में किसी की दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए किसी तरह यह सरकार बनाई गई. एक साझा न्यूनतम एजेंडा तैयार किया गया. इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव राम माधव, जो बीजेपी में आने के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रवक्ता थे, का कहना है कि यह गठबंधन न राजनीतिक है और न वैचारिक, बल्कि शुद्ध शासन पर आधारित गठबंधन है और बीजेपी ने संविधान के अनुच्छेद 370 की समाप्ति या सेना को मिले विशेषाधिकारों के मुद्दों पर अपना रुख नहीं बदला है.

खुलकर सामने आए मतभेद

पीडीपी का भी यही दावा है कि सरकार बनाने की खातिर उसने अपनी प्रतिबद्धताएं नहीं बदली हैं, और वह इस दावे को सिद्ध करने का कोई भी मौका नहीं चूकती. इसीलिए सरकार बनने के बाद पहले हुर्रियत को लेकर दोनों दलों के बीच तनाव पैदा हुआ और अब आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून या एफस्पा) के मुद्दे पर दोनों के बीच के मतभेद खुलकर सामने आ गए हैं. सोमवार को जम्मू कश्मीर में तीन स्थानों पर आतंकवादी हमले हुए, लेकिन मुफ्ती मोहम्मद सईद ने इसी दिन को यह घोषणा करने के लिए चुना कि जिन स्थानों पर फिछले कुछ समय से शांति है, वहां से चरणबद्ध तरीके से एफस्पा को हटाया जाएगा. मंगलवार को मुफ्ती ने नयी दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी भेंट की और अपनी बात उनके सामने रखी. उधर बीजपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता एमजे अकबर ने स्पष्ट किया कि जब तक जम्मू कश्मीर में आतंकवाद की समस्या बनी हुई है, एफस्पा को वहां से नहीं हटाया जाएगा क्योंकि सेना इसके तहत शानदार काम कर रही है. इसी बीच नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने मुफ्ती के बयान की आलोचना की है.

काठ की हांडी

मुफ्ती और उनकी तरह सोचने वालों का आरोप है कि सेना द्वारा किए जाने वाले दमन, उत्पीड़न और ज्यादतियों के कारण राज्य की जनता में शासन और भारत के प्रति आक्रोश पैदा होता है जो अंततः आतंकवाद को मजबूत करता है. इसलिए लोगों में भरोसा पैदा करने के लिए सेना को मिले विशेषाधिकारों को समाप्त किया जाना चाहिए ताकि वह नागरिक प्रशासन के प्रति जवाबदेह बने और संयम से काम ले. दूसरी ओर बीजेपी की राय है कि सेना को कारगर ढंग से काम करने के लिए इन विशेषाधिकारों की जरूरत है और इन्हें समाप्त करने का अर्थ पाकिस्तान-समर्थक तत्वों को खुलकर खेलने देना होगा. सवाल यह है कि एक ही सरकार में इन परस्पर-विरोधी विचारों के बीच सामंजस्य किस तरह बैठाया जा सकेगा.

राजनीति की सामान्य समझ यही कहती है कि पीडीपी और बीजेपी, दोनों ही सरकार में बने रहकर अपना-अपना जनाधार मजबूत करने की कोशिश करेंगे और उचित अवसर देखकर एक-दूसरे से अलग हो जाएंगे. इस सरकार का दीर्घजीवी होना लगभग असंभव है. जब तक यह सत्ता में है, दोनों सहयोगी दलों के बीच इस तरह के तनाव लगातार पैदा होते रहेंगे और सार्वजनिक रूप से उन्हें अभिव्यक्त भी किया जाएगा ताकि दोनों के समर्थकों को यह आश्वस्ति रहे कि उनकी पार्टियों ने अपने रुख को नहीं बदला है. यह स्पष्ट है कि काठ की यह हांडी चूल्हे पर बहुत ज्यादा देर तक नहीं रह पाएगी और न ही इसे दुबारा चूल्हे पर चढ़ाया जा सकेगा.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार