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कश्मीरः मतभेदों के बावजूद शिष्टमंडल ने सुने दुख दर्द

२२ सितम्बर २०१०

घाटी के दौरे पर गए केंद्रीय सर्वदलीय शिष्टमंडल में पैदा मतभेदों के बावजूद सांसद राज्य के अलग अलग समूहों से मिले और उनका दुख दर्द सुना. इस बीच 10 दिन के बाद मंगलवार को घाटी में कर्फ्यू में ढील दी गई.

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कश्मीर के हालात से दुखी हैं आम लोगतस्वीर: AP

मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने अलगाववादी नेताओं से मुलाकात पर आपत्ति जताई है. सर्वदलीय शिष्टमंडल में शामिल विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा है कि जिन सांसदों ने सैयद अली शाह गिलानी समेत अन्य अलगाववादी नेताओं से मुलाकात की, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से यह कदम उठाया है. शिष्टमंडल को ऐसा करने का जनादेश नहीं मिला है. स्वराज और उनकी पार्टी के अरुण जेटली उस समूह का हिस्सा नहीं थे जो सोमवार को गिलानी के अलावा मीरवाइज उमर फारूक और यासीन मलिक जैसे नेताओं से उनके घर पर जा कर मिला.

Sushma Swaraj, Politikerin
अलगाववादियों से मुलाकात पर बिफरीं सुषमातस्वीर: AP

उधर गृह मंत्री पी चिदंबरम के नेतृत्व में 36 सांसदों वाले इस सर्वदलीय शिष्टमंडल के तीन सदस्यों ने एक दूसरे अलगाववादी नेता शब्बीर शाह से मुलाकात की है. जम्मू के एक अस्पताल में भर्ती शाह ने लगातार जारी रहने वाली बातचीत शुरू करने और घाटी में युवाओं की हत्याओं और गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की है.

उधर हुर्रियत के कट्टरपंथी धड़े के नेता गिलानी से मुलाकात करने गए सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी ने माना है कि सांसदों के समूह ने खुद गिलानी के घर पर जाकर उनसे मिलने का फैसला किया लेकिन जब यह बात आई तो बीजेपी ने इसका विरोध नहीं किया. येचुरी मंगलवार को पांच सदस्यों वाली एक टीम के साथ विस्थापित कश्मीरी पंडितों के तीन शिविरों में भी गए और उनके दुख दर्द, परेशानियां, उम्मीदें और आकांक्षाएं जानीं.

कश्मीरी पंडितों के चार संगठनों पनुन कश्मीर, ऑल पार्टी माइग्रेंट कोओर्डिनेशन कमेटी, जम्मू कश्मीर विचार मंच और पनुन कश्मीर अग्निशेखर ने सांसदों के शिष्टमंडल का बहिष्कार किया. कुछ पंडितों ने विरोध में धरना भी दिया और लगभग 90 लोगों को हिरासत में भी रखा गया. कश्मीरी पंडित चाहते हैं कि उन्हें फिर से घाटी में बसाया जाए और प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज भी दिया जाए. वे कश्मीर को व्यापक स्वायत्तता और वहां से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को हटाने का विरोध भी करते हैं.

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संगीन के साए में घाटी की जिंदगीतस्वीर: UNI

इस बीच, मंगलवार को घाटी में 10 दिनों के बाद कर्फ्यू में ढील दी गई. इसके बाद बड़ी संख्या में लोग घरों से बाहर निकले और उन्होंने रोजमर्रा की जरूरत की चीजें खरीदीं. हालांकि बाजारों में ज्यादातर दुकानें बंद ही रहीं और सड़कों पर सार्वजनिक परिवहन भी न के बराबर ही दिखा. लेकिन निजी गाड़ियां सड़कों पर दौड़ती देखी गईं. अधिकारियों का कहना है कि मंगलवार को अनंतनाग और बारामूला में पथराव की छिटपुट घटनाओं को छोड़ दें तो हिंसा की कोई बड़ी घटना नहीं हुई.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः एन रंजन

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