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कश्मीर: नई डोमिसाइल नीति पर केंद्र का यू-टर्न

चारु कार्तिकेय
४ अप्रैल २०२०

केंद्र को जम्मू और कश्मीर के लिए नई डोमिसाइल नीति को चार ही दिनों में बदलने पर मजबूर होना पड़ा है. सभी नौकरियों को सिर्फ स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित कर दिया गया है लेकिन मूल निवासी की नई परिभाषा को बदला नहीं गया है.

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Indien Impressionen von Sharique Ahmad
तस्वीर: Sharique Ahmad

जम्मू और कश्मीर के लिए नई डोमिसाइल नीति की घोषणा करने के बस चार दिनों के अंदर ही केंद्र सरकार को नीति में बदलाव लाना पड़ा है. मूल घोषणा में सिर्फ ग्रुप चार तक की नौकरियों को जम्मू और कश्मीर के स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित रखा गया था और बाकी सभी नौकरियों को देश में कहीं भी रहने वाले नागरिकों के लिए खोल दिया गया था. अब इसमें संशोधन करके सभी नौकरियों को सिर्फ स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित कर दिया गया है. 

हालांकि मूल निवासी की नई परिभाषा को बदला नहीं गया है. प्रदेश में कम से कम 15 सालों तक रहने वाला हर व्यक्ति अभी भी डोमिसाइल के योग्य होगा, यानी उसे मूल निवासी का दर्जा मिलेगा. इसके अलावा वे व्यक्ति जिन्होंने सात साल तक जम्मू और कश्मीर में पढ़ाई की हो और दसवीं और बारहवीं कक्षा की परीक्षा प्रदेश के ही किसी स्कूल से दी हो, वे बच्चे जिनके माता-पिता प्रदेश में 10 सालों तक केंद्र सरकार के किसी भी पद पर काम कर चुके हों और वे व्यक्ति जिन्हें प्रदेश के रिलीफ एंड रिहैबिलिटेशन कमिश्नर ने बतौर प्रवासी पंजीकृत किया हो, वे सब मूल निवासी माने जाएंगे.

इन सभी श्रेणियों के व्यक्ति अब जम्मू और कश्मीर में स्थानीय नौकरियों के लिए आवेदन कर पाएंगे और प्रदेश में जमीन या मकान खरीद पाएंगे. इसके पहले ये अधिकार सिर्फ उन लोगों को प्राप्त थे जो पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य की विधानसभा द्वारा निर्धारित परिभाषा के तहत स्थानीय निवासी माने जाते थे. यह प्रावधान जम्मू और कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 35 ए के तहत प्राप्त था जिसे केंद्र ने अगस्त 2019 में निरस्त कर दिया.

नई अधिसूचना का पूरे राज्य में विरोध हुआ था. पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के अलावा बीजेपी की करीबी मानी जाने वाली नई पार्टी 'अपनी पार्टी' ने भी नई नीति की आलोचना की थी. बताया जा रहा है कि प्रदेश में बीजेपी के नेताओं ने भी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को जानकारी दी कि नई नीति के खिलाफ प्रदेश की जनता में काफी नाराजगी है. 'अपनी पार्टी' के अध्यक्ष और पूर्व वित्त मंत्री अल्ताफ बुखारी गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिले भी और डोमिसाइल नीति में बदलाव लाने पर बातचीत की. 

अपनी पार्टी अब दावा कर रही है कि अधिसूचना में बदलाव उसकी ही कोशिशों का नतीजा है.

लेकिन अब भी इस नई नीति का विरोध जारी है. श्रीनगर के मेयर जुनैद आजिम मट्टू ने ट्वीट कर के कहा है कि संशोधन के बावजूद डोमिसाइल नीति प्रदेश के निवासियों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है.

नेशनल कांफ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी दर ने कहा है कि कि यह संशोधन सिर्फ कॉस्मेटिक है और अब इसमें कोई शक नहीं रहा कि यह नई नीति जम्मू और कश्मीर की आबादी का स्वरूप ही बदल देगी और स्थानीय लोगों के अधिकार छीन लेगी.

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए को निरस्त किया था. इसके साथ ही जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं. इन्हीं कदमों के साथ साथ कश्मीर में बड़ी संख्या में राजनेताओं को हिरासत में ले लिया गया था, जिनमें फारुख अब्दुल्ला, उनके बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती शामिल थे.

महबूबा मुफ्ती समेत कई कश्मीरी नेता अभी भी हिरासत में हैं. कुछ ही दिन पहले जम्मू और कश्मीर में सात महीनों के बाद इंटरनेट के इस्तेमाल पर से प्रतिबंध हटा दिया गया, लेकिन अभी भी कश्मीर के लोगों को कुछ पाबंदियों का सामना करना पड़ेगा. प्रशासन के निर्देश के मुताबिक, इंटरनेट की स्पीड अभी 2जी ही रखी जाएगी, 3जी और 4जी नहीं मिलेगा. इंटरनेट पोस्ट-पेड कनेक्शन वाले मोबाइल फोनों में मिलेगा और प्री-पेड कनेक्शन रखने वालों में उन्हीं को मिलेगा जिनकी जांच हो चुकी है.

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