कहां गायब हुई अन्ना की आंधी
१ अगस्त २०१२भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से पिछले साल वाली गहमागहमी नदारद है. अन्ना हजारे का आंदोलन धैर्य खोता दिख रहा है. जो मुद्दा पिछले साल भारत में उबाल ला रहा था वह अचानक ठंडा पड़ने लगा है.
भारत के मुख्य विपक्षी दल बीजेपी के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी का मानना है कि 'आंदोलन अब दिशाहीन' हो चुका है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन में प्रोफेसर और मीडिया विश्लेषक आनंद प्रधान पिछले साल के आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय ट्रेंड बताते हैं. वह कहते हैं, ''पिछले साल पूरी दुनिया में उबाल था. मिस्र, ट्यूनीशिया, यहां तक कि अमेरिका में भी ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट चल रहा था. ऐसे में ये आंदोलन शुरू हुआ तो मध्यवर्ग का बड़ा तबका सड़कों पर उतरा. मल्टीनेशनल कंपनियों के प्रोफेशनल और मध्य वर्ग का क्रीमी लेयर सड़क पर उतरने लगा. टीवी चैनलों का ऑडियंस यही वर्ग है इसीलिए इसे खूब कवरेज मिली." लेकिन इस बार ऐसा नहीं है. मीडिया का कवरेज बहुत संयमित और एक हद तक आलोचना वाला है. जब पिछली बार मुंबई में अन्ना हजारे के आंदोलन को कम समर्थन मिला उसके बाद से ही मीडिया भी सतर्क हो गया है.
मीडिया का रोल
टीम अन्ना से जुड़े लोग मीडिया को आज भी अपना 'दोस्त' बताते है. लेकिन पिछले हफ्ते अनशन शुरू होने के बाद से अन्ना समर्थकों और मीडियाकर्मियों के बीच झड़पें भी हुई हैं. शुरुआत में टीम अन्ना ने मीडिया के नियंत्रित होने की भी बात कही थी. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जुड़े नीरज कुमार कहते हैं, "कुछ गलतफहमियां हो गई थीं लेकिन अब उन्हें दूर कर लिया गया है."
मीडिया कवरेज की कमी की भरपाई सोशल साइट से करने की कोशिश हो रही है. अन्ना आंदोलन की वेबसाइट इंडिया अंगेस्ट करप्शन के फेसबुक पेज पर दावा किया गया है कि बारिश और रुकावटों के बाद भी लोग अनशन स्थल पर बड़ी तादाद में पहुंच रहे हैं. नीरज कुमार कहते हैं, "रविवार के बाद से आंदोलन में तेजी आई है. देश भर में 350 जगहों पर आंदोलन के समर्थन में अनशन हो रहा है. विदेशों में भी 20 जगहों पर इसके समर्थन में लोग सामने आए हैं. हांग कांग में तो एयरपोर्ट पर ही प्रदर्शन हुआ है. हां, सरकार की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है."
कन्नी काटती बीजेपी
पिछले एक साल के दौरान अन्ना आंदोलन ने राजनेताओं के भ्रष्टाचार को अहम मुद्दा बनाया है. यही इस आंदोलन की सफलता का कारण था लेकिन अब यही इसके कमजोर होने की वजह भी बन रहा है. बीजेपी के उपाध्यक्ष और प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने डॉयचे वेले से बात करते हुए कहा, "भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी मुहिम को बीजेपी का समर्थन है. फिर वो चाहे किसी एनजीओ की मुहिम हो या किसी और संगठन की. लेकिन इस मुहिम को लोकतंत्र के खिलाफ नहीं होना चाहिए."
बीजेपी अन्ना हजारे के आंदोलन को सीधा समर्थन देने के बदले इस बार पृष्ठभूमि में है. लोकपाल बिल पर हजारे की टीम के साथ मतभेद भी साफ दिखते हैं. नकवी कहते हैं, "टीम अन्ना चाहती है कि वो जो कह रहे हैं उसी का समर्थन किया जाए. लेकिन लोकतंत्र में ऐसा संभव नहीं है. टीम अन्ना जिद्दी है. ये लोग कहते हैं कि पहले 200 सांसदों को संसद से बाहर निकालो फिर बात होगी. अन्ना ने पूरी राजनीतिक व्यवस्था को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है. हम आंदोलन से सहमत हैं लेकिन तरीका दिशाहीन है."
तरीके पर सवाल
जनलोकपाल बिल पास करने की मांग के साथ टीम अन्ना ने इस बार अनशन स्थल पर 15 मंत्रियों की लिस्ट भी टांगी है जिनके खिलाफ स्वतंत्र जांच की मांग की जा रही है. इस लिस्ट में देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम भी शामिल है जिनकी छवि अपेक्षाकृत ईमानदार मानी जाती है. प्रोफेसर आनंद प्रधान कहते हैं, "पिछले एक साल में आंदोलन की कई खामियां सामने आई हैं. इस आंदोलन का अंतर्विरोध और उसकी कमजोरियां जाहिर हो चुकी हैं. अन्ना की टीम में सिर्फ अपने को सही मानने वाले लोगों की भी कमी नहीं है, जाहिर है इससे भी नुकसान हुआ है."
इस बार केवल अन्ना हजारे ही नहीं बल्कि उनके तीन साथी अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और गोपाल राय भी अनशन पर बैठे हैं. योग गुरु रामदेव भी आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं लेकिन फिर भी आंदोलन पिछले साल जैसा प्रभाव और हलचल पैदा नहीं कर सका. सरकार ऊपरी तौर पर भले ही खामोश है लेकिन घटनाओं पर उसकी निगाह बनी हुई है. एक आंदोलनकारी ने बताया कि पुलिस कार्रवाई की भी आशंका बनी हुई है. जनलोकपाल बिल की लड़ाई में अन्ना सबसे बड़े ट्रंप कार्ड हैं. सांसदों के घर के घेराव से लेकर मोमबत्ती जुलूस तक टीम अन्ना हर हथकंडा आजमा रही है. बिल अभी भी लटका है. सड़क पर थोडी हलचल जरूर है पर संसद अभी तक मौन है.
रिपोर्ट: विश्वदीपक (एएफपी)
संपादन: महेश झा