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कानून तले खून बिखेरती बंदूक

२९ मई २०१४

"मुझे आपकी सहानुभूति नहीं चाहिए", गुस्से और दुख के बीच रिचर्ड मार्टिनेज जब यह जुमला बोलते हैं, तो उनकी आंखें डबडबा जाती हैं और गला रुंधने लगता है. उनका 20 साल का बेटा अंधाधुंध फायरिंग में मारा गया.

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तस्वीर: Reuters

क्रिस्टोफर माइकेल्स-मार्टिनेज उनका इकलौता बच्चा था. कैलिफोर्निया में एक सनकी ने जब आम लोगों पर गोलियां चलाईं, तो क्रिस भी उसके निशाने पर आ गया. अमेरिकी फौज में काम कर चुके मार्टिनेज चाहते हैं कि बंदूक से जुड़ा अमेरिका का कानून फौरन बदला जाना चाहिए.

इस तरह की हर घटना के बाद इस कानून को लेकर बहस होती है लेकिन फिर मामला दब जाता है. लेकिन हाल के दिनों में ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं. भला 2011 की वह घटना कौन भूल सकता है, जब कांग्रेस सदस्य ग्राबिएला गिफॉर्ड को गोली मारी गई, या 2012 में कोलरैडो के सिनेमाघर में एक बंदूकधारी ने फायरिंग कर दी. इस घटना में तो 20 बच्चे मारे गए.

इन घटनाओं के बाद 2013 में सख्त कानून की बात उठी. कुछ सेमी ऑटोमेटिक राइफलों की बिक्री भी बंद हुई. लेकिन रूढ़िवादी रिपब्लिकनों ने इसका विरोध कर दिया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया. राज्यों के स्तर पर भी कानून पास नहीं हो पाए. न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिसर्च के मुताबिक सिनेमाघर वाले मामले के बाद अलग अलग जगहों पर इससे जुड़े 1500 कानून पेश किए गए, जिनमें सिर्फ 109 पास हुए.

अपने बेटे को खो चुके मार्टिनेज के पास भी इस समस्या का हल नहीं है लेकिन वह मानते हैं कि अमेरिका की शक्तिशाली नेशनल राइफल एसोसिएशन (एनआरए) की लॉबी इसके पीछे काम कर रही है, "क्रिस की मौत एनआरए की नीतियों की वजह से हुई. वे बंदूक रखने के अधिकार की बात करते हैं. क्रिस के जीने के अधिकार का क्या होगा." मार्टिनेज कहते हैं कि उन्हें इस बात से गुस्सा है कि किस तरह एनआरए इस तरह के मामलों को सामान्य बता कर दबा देता है.

समस्या इससे कहीं बड़ी है. जब कभी सार्वजनिक जगहों पर गोलीबारी होती है, तब तो सुर्खियां बनती हैं. लेकिन छोटी मोटी घटनाएं तो लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं. आंकड़े परेशान करने वाले हैं. चिल्ड्रेन डिफेंस फंड का अनुमान है कि 2010 में जितने अमेरिकी सैनिक इराक और अफगानिस्तान में मारे गए, उससे पांचगुना बच्चे अमेरिका में बंदूक कानून की वजह से मारे गए. मार्टिनेज का मासूम सवाल है, "यह पागलपन कब रुकेगा".

एजेए/एमजे (डीपीए)