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काम की तलाश में देश छोड़ने वालों में शीर्ष पर भारत

२ मार्च २०१६

संयुक्त राष्ट्र की 'एशिया-पेसिफिक आप्रवासी रिपोर्ट 2015' ने कहा है कि सरकारों को प्रवासी कामगारों को ​भी वही सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए जो वे अपने नागरिकों को देती हैं.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Seelam

एशिया प्रशांत क्षेत्र के अन्य देशों के मुकाबले काम की तलाश में देश से बाहर जाने वालों की तादात भारत में सबसे अधिक है. यह दावा संयुक्त राष्ट्र ने इस हफ्ते बैंगकॉक में जारी अपनी 'एशिया-पैसिफिक आप्रवासी रिपोर्ट 2015' में किया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि 2013 में एशिया प्रशांत इलाकों के देशों से हुए प्रवासन में भारत शीर्ष पर है. यहां से साल भर में एक करोड़ चालिस लाख लोग रोजगार की तलाश में बाहर के देशों में निकले हैं. इस सूचि में भारत के बाद रूस, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, फिलिपिंस, अफगानिस्तान, कजाखस्तान, तुर्की और इंडोनेशिया का स्थान है.

जीडीपी को फायदा

इस रिपोर्ट को जारी करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने कहा है ​कि सरकारों को आप्रवासी कामगारों को ​भी वही सुविधाएं और सामाजिक सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए जो वे अपने नागरिकों को देती हैं. इससे उनकी अर्थव्यवस्था और कामगार की उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 में दुनिया भर में मौजूद 23 करोड़ 20 लाख आप्रवासियों में से, साढ़े नौ करोड़ से भी अधिक आप्रवासी केवल एशिया प्रशांत इलाके से हैं.

विश्व बैंक के अनुमानों का हवाला देते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ये आप्रवासी मेजबान देशों के जीडीपी की विकास दर में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. साथ ​ही 2015 में आप्रवासियों ने अपने विकासशील देशों को लगभग 4350 करोड़ डॉलर की राशि भेजी है. इसमें भी सबसे बड़ा हिस्सा एशिया प्रशांत देशों को ही आया है. छोटे देशों की अर्थव्यवस्थाओं को उन देश के आप्रवासियों की ओर से भेजे धन से बहुत मदद मिलती है. रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल की जीडीपी का तकरीबन एक तिहाई हिस्सा बाहर काम कर रहे लोगों के भेजे पैसे से बनता है.

बिचौलियों से खतरा

लेकिन इन आप्रवासियों को अपने देश में रिक्रूटमेंट एंजेंसियों और नौकरी दिलाने वाले दलालों से लेकर विदेश में शोषण करने वाली नियोक्ता कंपनियों, अधिकारियों और पुलिस से जूझना पड़ता है. संयुक्त राष्ट्र की क्षेत्रीय विकास शाखा के उप कार्यकारी सचिव होंगजू हाम इसे लेकर आप्रवासियों को भेजने और रखने वाले दोनों ही देशों की सरकारों की जिम्मेदारी पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ''अगर आप्रवासियों को रखने वाले देश उन्हें स्वास्थ्य सुविधा, बेरोजगारी भत्ता, उनके बच्चों के लिए शिक्षा जैसी सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराएंगे तो उनकी उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होगी. इसका देश की अर्थव्यवस्था को साफ तौर पर लाभ होगा.'' हाम ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, 'आ'प्रवासियों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करें, ईमानदारी बरतें और वैसी ही सुरक्षा दें जैसी आप अपने नागरिकों को देते हैं तो बेशक आपको इसका लाभ होगा.''

उनका कहना था कि आप्रवासियों को भेज रहे देशों को उनके लिए सुव्यवस्थित इंतजाम करने चाहिए. ''बहुत बार ऐसा होता है कि बिचौलियों पर भरोसा कर वे उन्हें बेतहाशा शुल्क दे देते हैं और फिर अपना कर्ज उतारने के लिए हमेशा कर्ज में ही रह जाते हैं. रोजगार की प्रक्रिया में दोनों ही देशों का साफगोई दिखाना जरूरी है. तभी बिचौलियों से बचा जा सकेगा.''

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2013 में एशिया प्रशांत इलाकों के देशों से हुए प्रवासन में भारत शीर्ष पर है.तस्वीर: Fotolia/Arvind Balaraman

रूस सबसे आगे

इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है इस इलाके में दूसरे देशों से आ रहे आप्रवासियों का स्वागत करने में रूस सबसे आगे है. 2013 में यहां 1 करोड़ 10 लाख के करीब आप्रवासी पहुंचे. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, भारत, पाकिस्तान, थाइलैंड, कजाखस्तान, चीन, ईरान, मलेशिया और फिर जापान का स्थान आता है. रिपोर्ट के मुताबिक इस क्षेत्र के अधिकतर आप्रवासी नजदीकी देशों में जाते हैं. ऐशिया प्रशांत इलाके के भीतर ही इनमें से 5 करोड़ 9 लाख के करीब आप्रवासी गए हैं. इसके अलावा अन्य आप्रवासियों ने काम करने के लिए मध्य पूर्व और उत्तरी अमेरीका जैसे दूसरे देशों को चुना है.

हर साल तकरीबन 2 करोड़ लोगों को विदेशों में भेजने वाले फिलिपिंस के आप्रवासियों का जिक्र करते हुए हाम कहते हैं कि फिलिपिंस अपने आप्रवासियों को विदेश जाने के लिए प्रेरित करता है और जब वे वापस लौटते हैं, तो भी उन्हें उनके जीवन को अपने देश के ​मुताबिक ढालने में मदद करता है.

आरजे, आईबी (रॉयटर्स)