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काला धन विरोधी अभियान की उम्मीद बेकार

९ फ़रवरी २०१५

भारतीय मीडिया ने एचएसबीसी बैंक की स्विस शाखा में खाता रखने वाले भारतीयों के नामों का पर्दाफाश किया है. कुलदीप कुमार का कहना है संबंधित खाताधारियों और उन्हें मदद देने वाले अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होगी, साफ नहीं है.

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तस्वीर: mopsgrafik - Fotolia.com

सोमवार को अंग्रेजी दैनिक ‘द इंडियन एक्सप्रेस' ने एक मुखपृष्ठ पर एक धमाकेदार खबर प्रकाशित की जिसका कहना है कि स्विट्जरलैंड में एचएसबीसी बैंक की जेनेवा शाखा में वर्ष 2006-07 तक 1195 भारतीयों या भारतीय मूल के अनिवासी भारतीयों के खाते थे. फ्रांस के प्रसिद्ध अखबार ‘ल मोंद' और इंटरनेशनल कॉन्सोर्शियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स के साथ किए गए एक साझा प्रयास के नतीजे में इंडियन एक्सप्रेस ने जो सूची प्रकाशित की है उसमें मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी और नरेश गोयल जैसे पूंजीपतियों के अलावा प्रणीत कौर जैसी राजनीतिक नेता के नाम भी शामिल है. नवंबर 2012 में इंडिया अगेन्स्ट करप्शन का नेतृत्व कर रहे अरविंद केजरीवाल ने, जिनके दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री बनने की प्रबल संभावना है, एचएसबीसी में अवैध खाता रखने वालों के कुछ नाम सार्वजनिक किए थे. आज प्रकाशित सूची से पता चलता है कि उनमें से कई नाम सही थे, हालांकि खातों में जमा राशि के बारे में सूचना उतनी सही नहीं थी. इस समय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक विशेष जांच दल इस पूरे मामले की छानबीन कर रहा है. उसे केंद्र सरकार ने उन 628 खाताधारकों के नाम सीलबंद लिफाफे में दिये थे जो उसे स्विस सरकार से प्राप्त हुए थे. लेकिन अब उनकी संख्या लगभग दोगुनी हो गई है.

क्योंकि पिछले वर्ष लोकसभा के लिए चुनाव प्रचार करते समय नरेंद्र मोदी ने जनता से वादा किया था कि सरकार बनने के एक सौ दिन के भीतर वे विदेशी बैंकों में जमा सारा काला धन वापस ले आएंगे और वह धन इतना अधिक है कि हर नागरिक के खाते में 15 लाख रुपये जमा होंगे, इसलिए उनकी सरकार से जनता की आशाएं बहुत अधिक हैं. हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने एक टेलिविजन इंटरव्यू के दौरान यह स्वीकार किया था कि मोदी का यह वादा तो बस एक चुनावी जुमला भर था, और माना जाता है कि इस स्वीकारोक्ति के कारण 7 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के लिए हुए मतदान में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा है. लोगों को स्वाभाविक रूप से यह जानने की इच्छा है कि मोदी सरकार ने इस मामले में क्या कदम उठाए हैं.

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि हालांकि तीन माह पहले तक केवल तीन मामलों में ही मुकदमे दर्ज किए गए थे, लेकिन अब यह संख्या 60 तक पहुंच गई है. जो नए नाम आज सामने आए हैं, उनमें से जो भारतीय नागरिक हैं, उनके खातों की जांच की जाएगी. जिनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला चलेगा, उनके नाम तो सार्वजनिक हो ही जाएंगे. जेटली ने यह जानकारी भी दी है कि आयकर और राजस्व विभाग ने 350 खाताधारकों के बारे में जांच पूरी कर ली है और उन पर कर और जुर्माना लगाया जा रहा है. 31 मार्च तक यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. वित्त मंत्री का यह भी कहना है कि जब तक जांच द्वारा सुबूत इकट्ठे न कर लिए जाएं, मामले दर्ज नहीं किए जा सकते.

उनकी ये तकनीकी दलीलें सही हो सकती हैं, लेकिन जनता के बीच यह भावना पनप रही है कि मनमोहन सिंह सरकार की तरह ही नरेंद्र मोदी सरकार भी भ्रष्टाचार मिटाने और काला धन जमा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के बारे में कोई खास गंभीर नहीं है. लोकसभा चुनाव के पहले मोदी, अन्य बीजेपी नेता और बाबा रामदेव सरीखे सहयोगी जिस तरह का गर्जन-तर्जन करते थे, वैसा पिछली मई में सरकार बनने के बाद से नजर नहीं आया. बाबा रामदेव तो सिरे से गायब हैं और अरविंद केजरीवाल स्वच्छ और साफ-सुथरी राजनीति का प्रतीक बनकर उभरने में सफल रहे हैं. आज लोग यह जानना चाहते हैं कि क्या सरकार में मुकेश और अनिल अंबानी के खिलाफ कार्रवाई करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति है? अंबानी परिवार के सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ गहरे रिश्ते हैं जिनमें बीजेपी भी शामिल है. क्या सरकार उन नेताओं और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ भी कदम उठाएगी जिनके नाम 'इंडियन एक्सप्रेस' ने उजागर किए हैं? क्या एचएसबीसी बैंक के उन अधिकारियों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई होगी जिनकी मिलीभगत के बिना काला धन स्विस शाखा में जमा नहीं हो सकता था?

लेकिन, जैसा कि स्वयं जेटली ने स्वीकार किया है, मामला इतना आसान नहीं है. जो भी जानकारी सामने आई है, वह 2006-07 तक की है. पिछले आठ सालों के दौरान इन खाताधारकों ने अपने खातों के साथ क्या किया, किसी को नहीं पता? दूसरे, यह भी संभव है कि इन आठ सालों में अनेक अन्य खाते खुल गए हों. हालांकि जेटली ने कहा है कि पिछले साल अक्तूबर में भारत की ओर से अधिकारियों का एक दल स्विट्जरलैंड गया था और उसने सरकार से सहयोग मांगा था, लेकिन 2006 के बाद की अवधि के बारे में क्या स्थिति है, यह अभी स्पष्ट नहीं है. जो भी हो, इतना तय है कि किसी बहुत बड़े काला धन-विरोधी अभियान की उम्मीद रखना बेकार होगा.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार