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काली गर्दन वाले सारस के लिए खतरा बना बांध

प्रभाकर मणि तिवारी
७ जनवरी २०२१

अरुणाचल प्रदेश में एक प्रस्तावित बांध ने इलाके में पाए जाने वाले काली गर्दन वाले खूबसूरत क्रेन पक्षियों, जिनको यहां सारस भी कहा जाता है, के वजूद पर खतरा पैदा कर दिया है.

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Afghanistan Vogeljagd
तस्वीर: Reuters/M. Ismail

दुनिया में सारस की महज 15 प्रजातियां ही बची हैं. संरक्षित प्रजाति के ये पक्षी भारत, चीन और भूटान में हिमालय के ऊंचे इलाकों में रहते हैं. जाड़ों में ये पक्षी कुछ नीचे उतर आते हैं. लेकिन अब एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि अरुणाचल में एक प्रस्तावित बांध से इन ब्लैक-नेक क्रेन का घर नष्ट हो जाएगा.

यह अध्ययन रिवर रिसर्च और एप्लीकेशन जर्नल में छपा है और इसका खर्च केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने उठाया है. राज्य में बड़े पैमाने पर बनने वाले बांधों पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं और उनका विरोध होता रहा है. इसका असर भी नजर आने लगा है. हर साल नवंबर से फरवरी के बीच अमूमन 20 जोड़े ऐसे सारस अरुणाचल के जेमिथांग घाटी में पहुंचते हैं. लेकिन शोधकर्ताओं की टीम को इस साल अब तक एक भी जोड़ा नजर नहीं आया है.

दोधारी तलवार हैं बांध

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं की एक टीम अपने अध्ययन से इस नतीजे पर पहुंची है कि अरुणाचल में प्रस्तावित पनबिजली बांध से इन पक्षियों के रहने की जगह बदल जाएगी. उक्त बांध जेमिथांग घाटी में न्यामजंग चू नदी पर बनाया जाना है. यह वही इलाका है जहां हर साल इन सारसों के जोड़े हिमालय की भारी सर्दी से बचने और अंडे देने के लिए पहुंचते हैं.

वैसे, अरुणाचल प्रदेश में बड़े पैमाने पर बनने वाले बांध पहले से ही विवाद का मुद्दा रहे हैं. इनको दोधारी तलवार कहा जाता है. यह सही है कि इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है. लेकिन साथ ही इन बांधों के निर्माण से इलाके की जैव-विविधता को जो नुकसान पहुंचता है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती.

शोधकर्ताओं की टीम ने यह पता लगाने का प्रयास किया कि जैव-विविधता को होने वाले नुकसान का काली गर्दन वाले सारसों पर क्या और कैसा असर होगा. अपने शोध के दौरान इस टीम ने नदियों के पानी के बहाव और जाड़ों में नदी की तलहटी पर इसके असर का आकलन किया. जाड़ों में यह पक्षी नदी की तलहटी पर ही बैठते और अंडे देते हैं.

शोध से पता चला कि सारस नदी के सूखे हिस्सों का इस्तेमाल आराम करने के लिए करते थे और उथले हिस्से में भोजन तलाशते हैं. शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि नदी की तलहटी में अधिकतम 30 सेंटीमीटर पानी रहना इन सारसों के लिए मुफीद है. पानी बढ़ने की स्थिति में ये इस इलाके से मुंह मोड़ लेंगे. इससे इलाके में जैव-विविधता का नाजुक संतुलन गड़बड़ाने का अंदेशा है. बांध बनने के बाद जाड़ों में नदी की तलहटी में पानी का स्तर बढ़ना लाजिमी है.

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कश्मीर का राज्य पक्षी है ब्लैक नेक्ड क्रेन

शोधकर्ताओं का कहना है कि इलाके के स्थानीय समुदाय उक्त बांध के निर्माण के खिलाफ हैं. काली गर्दन वाले सारसों से स्थानीय लोगों का धार्मिक जुड़ाव है. लोगों का कहना है कि बांध बनने के बाद सारसों के रहने की जगह डूब जाएगी और यह पक्षी दोबारा इलाके का रुख नहीं करेंगे. इस टीम ने अपनी रिपोर्ट में इस खतरे के प्रति आगाह किया है. वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के शोधकर्ताओं की टीम के प्रमुख डॉ. जानसन बताते हैं, "हमने अपनी रिपोर्ट में प्रस्तावित परियोजना से इन सारसों पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर से आगाह करते हुए उक्त परियोजना को रद्द करने की सिफारिश की है.काली गर्दन वाले सारसों के संरक्षण की राह में बांध एक प्रमुख अड़चन है.लेकिन साथ ही उनको बचाने के लिए कुछ और कदम उठाए जाने चाहिए.”

वह कहते हैं कि जाड़ों में इन पक्षियों के रहने की जगह की शिनाख्त कर उनकी आवाजाही पर नजदीकी निगाह रखना जरूरी है. इसके साथ ही उन जगहों को संरक्षण जरूरी है. डा. जानसन का कहना है कि इस काम में स्थानीय समुदाय के लोगों को भी साथ लेना जरूरी है.

ब्लैक नेक्ड क्रेन को वैज्ञानिक रूप से ग्रस नाइग्रीकोलिस के रूप में जाना जाता है. यह पक्षी भारत में बहुतायत में उपलब्ध है और मुख्य रूप से हिमालय की ऊंचाइयों पर रहता है. ब्लैक नेक्ड क्रेन यहां तिब्बती क्रेन के रूप में लोकप्रिय है. हालांकि इसे सारस के नाम से भी जाना जाता है. भारत का हिमालयी क्षेत्र इस पक्षी के आवास के रूप में कार्य करता है. क्रेन मुख्य रूप से तिब्बती पठार में रहता है. इसके अलावा एक छोटी आबादी बगल के लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर में पाई जाती है. ब्लैक नेक्ड क्रेन को "कश्मीर का राज्य पक्षी”  बनाया गया है. यह जम्मू-कश्मीर और त्सो कार झील के अलावा लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में रहना पसंद करता है.

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