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काली गुफाओं में राहत का काम

१७ जून २०१४

कीचड़, बर्फीली ठंड और अंधेरा. हिलने डुलने की भी जगह नहीं. अगर किसी गुफा से घायल सैलानी को निकालना हो, तो यह काम कैसे किया जा सकता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी, ऑस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड और इटली के राहतकर्मी 52 साल के शोधकर्ता को 1000 मीटर गहरी रीसेंडिंग गुफा से निकालने की कोशिश कर रहे हैं. यह काम कई दिन से चल रहा है और इसमें वक्त लग सकता है. हादसे की जगह और जमीन की सतह के बीच पांच मचान जैसे प्लेटफॉर्म बनाए गए हैं. दुर्घटनाग्रस्त शोधकर्ता को एक मचान से दूसरे मचान तक लाने में एक दिन लगता है.

गुफाओं से किसी को निकालना, यह काम केवल विशेषज्ञ कर सकते हैं. ब्योर्न वेगेन भी कुछ इस तरह का काम करते हैं. 1992 में पश्चिमी जर्मनी में उन्होंने दूसरे गुफा शोधकर्ताओं के साथ मिल कर एक गुफा राहत टीम बनाई. ब्योर्न खुद दमकल कर्मी हैं और कहते हैं कि गुफा में फंसे लोगों को बचाने भर से पेट पालना मुश्किल है. उनकी टीम पास के इलाके के फायर ब्रिगेड के साथ काम करती है.

राहतकर्मी और शोधकर्ता

Rettungseinsatz für Höhlenforscher
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में हर जगह गुफा राहत टीम और दमकल केंद्र मिल कर काम नहीं करते. जो राहतकर्मी गुफा में घुस कर पीड़ितों को बाहर निकालते हैं, वह अकसर दमकल टीम में नहीं होते. कोयला खानों के राहतकर्मियों को भी गुफाओं में जाने में दिक्कत होती है. ब्योर्न बताते हैं, "हमें पेट के बल लेटना पड़ता है और गुफा के अंदर रेंगना पड़ता है. कुछ खाई जैसी जगहें भी होती हैं जहां से हम रस्सी से नीचे जाते हैं. खदान में राहतकर्मी वहीं काम करते हैं जहां लोग सीधे खड़े हो सकते हैं, स्थिर जगहों में."

खनन में राहत का काम कर रहे लोगों को भी कई बार रस्सी से नीचे जाना पड़ता है, लेकिन उन्हें रस्सी बांधने के लिए स्थिर जगह मिल जाती है. गुफा में काम कर रहे राहतकर्मियों को दिक्कत आती है. उन्हें अकसर रस्सी को बांधने के लिए नई जगहें ढूंढनी पड़ती हैं. इसके लिए उन्हें पत्थरों की जानकारी चाहिए. ब्योर्न कहते हैं कि अकसर खदान के राहतकर्मियों या दमकल कर्मचारियों को इसकी जानकारी नहीं होती. इसलिए गुफा में राहत का काम कर रहे लोग अकसर शोधकर्ता भी होते हैं.

राहत का सामान

Infografik Rettung aus der Riesending-Schachthöhle Englisch
रीसेंडिंग गुफा का रास्ता

राहतकर्मियों के पास काफी सामान होता है. औजारों सहित रस्सियां, खाना, टेलीफोन और उसके लिए एक लंबा तार, यह सब राहतकर्मी अपने साथ रखते हैं. इसके अलावा स्लीपिंग बैग, सूखे कपड़े, टॉर्च और ड्रिलिंग मशीन भी होती है ताकि गुफा की दीवारों पर कील ठोक कर रस्सियों को बांधा जा सके. राहतकर्मी का सामान हल्का भी होना चाहिए.

नॉर्थराइन वेस्टफेलिया राज्य में राहत टीमों में पांच लोग होते हैं. सारा सामान वह अपने साथ गुफा में ले जाते हैं. यह भारी होता है और इसलिए वह बीच बीच में इन मचानों में रुकते हैं.

कीचड़ से सने

नियोप्रीन से बने खास सूट, हेलमेट और दस्ताने राहतकर्मियों को ठंड, उमस और गिरते पत्थरों से बचाते हैं. लेकिन प्राकृतिक गुफाएं अकसर कीचड़ से भरी होती हैं. जमीन के नीचे खूबसूरत झील और टिमटिमाती मछलियां, ऐसे नजारे कम बही देखने को मिलते हैं.

ब्योर्न वेगेन कहते हैं कि गुफा के फर्श पर चिकनी मिट्टी होती है और इसके ऊपर से गुजरना होता है. यह सख्त नहीं होता और कई बार सामान ऐसे दलदल में फंस जाता है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है गुफा के अंदर फंसे व्यक्ति को बाहर लेकर आना. अगर वह होश में है और चल फिर सकता है, तो कोई बात नहीं. लेकिन अगर उसे उठा कर ले जाना पड़े तो उसे गर्म कपड़े पहनाकर रस्सी से ले जाया जाता है.

प्रकृति की रक्षा

अगर शोधकर्ता बच जाते हैं तो उन्हें बाहर निकालने के लिए पत्थर हटाने पड़ते हैं. ब्योर्न वेगेन और उनके साथी गुफा को नुकसान पहुंचाए बगैर ऐसा करते हैं और जरूरत के मुताबिक ही पत्थर हटाते हैं.

गुफा में लोग कम फंसते हैं. लेकिन अगर ऐसा होता है तो स्थानीय दमकल अधिकारियों और विशेषज्ञों से राय लेनी चाहिए. इस वक्त बेर्शटेसगार्डेन में 52 साल के शोधकर्ता को बचाने की कोशिश की जा रही है. जर्मनी और स्विट्जरलैंड से करीब 200 राहतकर्मी इस काम में लगे हुए हैं.

रिपोर्टः फाबियान श्मिट/एमजी

संपादनः ए जमाल