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कितना हर्जाना भरे बीपी

२५ फ़रवरी २०१३

बीपी तेल कंपनी के मुताबिक मेक्सिको की खाड़ी में तेल दुर्घटना के बाद सब ठीक हो गया है. लेकिन सच्चाई इससे कहीं अलग है. न्यू ऑर्लिन्स में मुआवजा तय करने के लिए शुरू हुआ कंपनी पर मुकदमा.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

सोमवार से शुरू हुए जटिल मुकदमे में तय किया जाना है कि बीपी कंपनी 2010 में हुई तेल दुर्घटना के लिए कितना हर्जाना भरेगी. ब्रिटेन की तेल कंपनी ने पहले ही कई मुकदमे अदालत के बाहर सुलझा लिए. इसमें साढ़े चार अरब डॉलर की अपील अमेरिकी सरकार की थी और 7.8 अरब डॉलर का समझौता उन लोगों और व्यवसाइयों के लिए साथ किया गया था जिन्हें इस दुर्घटना से नुकसान उठाना पड़ा.

अब अमेरिकी अदालत यह साबित करेगी कि 20 अप्रैल 2010 के दिन गंभीर लापरवाही के कारण दुर्घटना हुई जिसमें धमाके के कारण 11 कर्मचारी मारे गए और बीपी का डीपवॉटर होराइजन प्लेटफॉर्म पानी में डूब गया जिससे समुद्र में लाखों टन तेल बहता रहा. 'गंभीर लापरवाही' तब कही जाती है जब लापरवाही के कारण किसी की जान गई हो. इसे कानूनी तौर पर आपराधिक श्रेणी में रखा जाता है. बीपी ग्रुप के जनरल काउंसल रुपेर्ट बॉन्डी दलील देते हैं, "गंभीर लापरवाही बहुत ज्यादा है, बीपी का मानना है कि इसे इस केस में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. यह बहुत ही दुखद दुर्घटना थी जिसका परिणाम बहुत स्तर पर और बहुत सारे लोगों पर हुआ. " बीपी को उम्मीद है कि वह दुर्घटना की ज्यादातर जिम्मेदारी और हर्जाना कुआं चलाने वाली कंपनी ट्रांसओशन और उप कॉन्ट्रेक्टर हैलिबर्टन के सिर पर रख दे. इन कंपनियों को खराब कुएं पर खराब सीमेंट से काम करने का जिम्मेदार पाया गया.

तीन दौर में मुकदमा

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

20 अप्रैल की दुर्घटना के बाद तेल के कुएं को बंद करने में कंपनी को 87 दिन लगे थे. इससे बहे तेल के कारण अमेरिका में पांच राज्यों के समुद्री किनारों पर तेल पहुंचा. पर्यटन और मछली उद्योग को इससे भारी नुकसान हुआ. बीपी ने सफाई के लिए 14 अरब डॉलर खर्च किए और 10 अरब डॉलर व्यावसाइयों, लोगों और स्थानीय सरकारों को हर्जाने के तौर पर दिए जो मुकदमे में शामिल नहीं हैं.

पहले दौर में तो न्यू ऑर्लीन्स की अदालत दुर्घटना का कारण जिम्मेदारी का बंटवारा तय करेगी. इसके बाद दूसरे दौर में तय किया जाएगा कि कितना तेल बहा ताकि पर्यावरण को हुए नुकसान को आंका जा सके. तीसरे दौर में तय होगा कि इससे कितना नुकसान पर्यावरण को हुआ और कितना आर्थिक.

सच्चाई कुछ और

बीपी का भले ही कहना हो कि सब ठीक हो गया है. लेकिन जमीनी सच्चाई अलग दिखाई देती है. न्यू ऑर्लीन्स से दक्षिणी हिस्से के एक छोटे से गांव के मछलीपालक बायरन एनकैलेड कहते हैं, "हमारी सीपियां सारी मारी गई हैं. काफी लंबे समय से हम मछली पकड़ने नहीं गए. " 58 साल के एनकैलेड के पास दो कश्तियां हैं लेकिन तीन साल से वो ऐसी ही पड़ी हैं. उन्होंने आजीवन सिर्फ सीपियां ही पकड़ी, ठीक अपने पिता की तरह. उनका परिवार पीढ़ियों से मिसिसीपी के पूर्वी हिस्से में रहता है. इस इलाके को सीपियां मिलने का सबसे बड़ा इलाका माना जाता है. लेकिन जो लोग समंदर में सीपियां पकड़ते हैं उनका काम तीन साल पहले ही ठप्प हो गया.

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तस्वीर: AP

क्यों नहीं बढ़ती सीपियां

आश्चर्य की बात तो यह है कि तेल के कारण सीपियां नहीं मारी गई बल्कि मीठे पानी के कारण. तट पर तेल रोकने के लिए यह मीठा पानी समंदर में छोड़ा गया था. सीपियों को जिंदा रहने के लिए पानी में कुछ नमक का होना जरूरी होता है. बायोलॉजिस्ट एड केक बताते हैं कि पानी में अगर नमक कम हो तो "सीपियां फूल जाती हैं, उनके अंग काम करना बंद कर देते हैं और वह फट जाती हैं." केक लुइजियाना सरकार में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं. लेकिन अभी तक कोई भी इस बात का पता नहीं लगा सका है कि सीपियां फिर क्यों नहीं बढ़ रहीं.

न्यू ऑर्लीन्स यूनिवर्सिटी में बायोलॉजिस्ट प्रोफेसर थोमास सोनिएट कहते हैं, "तुलनात्मक रूप से तेल दुर्घटना के पहले भी सीपियों की संख्या कम थी." साल 2000 में उनकी संख्या बढ़ी थी लेकिन फिर नहीं. वहीं एड केक दूसरी थ्योरी देते हैं कि छोटी सीपी के अंदर रहने वाले प्राणी को पकड़ने के कुछ होना चाहिए जैसे दूसरी सीपी का खोल. "भले ही पतली सी परत हो ताकि छोटी सीपियां जमीन पर न गिर जाएं." और यह पतली मिट्टी की परत मीठे पानी के कारण धुल गई.

इसके अलावा इस इलाके में तेल से बचने के लिए रसायन भी डाले गए. इस कारण भी सीपियों को बढ़ने का कोई मौका नहीं मिल रहा. इतना ही नहीं, सीपियां पानी में मिलने वाले महीन कणों से जीवित रहती हैं. पानी में अभी भी तेल और जहरीले डिस्पर्शन रसायन हैं. लुइजियाना के जंगल और मत्स्यपालन मंत्रालय के मुताबिक यहां 10 लाख बैरल तेल इकट्ठा नहीं किया गया. एड केक कहते हैं, "जब तेल उनके खाने में चला जाता है तो उन्हें घाव हो जाते हैं और सीपियों के अंदर का प्राणी मर जाता है."

छोटे मछुआरों की मुश्किल

सीपी संघ के अध्यक्ष बायरन एनकैलेड समंदर में मीठा पानी छोड़ने की मजबूरी समझते हैं लेकिन वह कहते हैं, "अगर अब बीपी अपनी जिम्मेदारी नहीं लेता और छोटे मछली व्यावसाइयों की मदद नहीं करता तो यह अपराध होगा."

वहीं मछुआरे के मुताबिक शुरुआती 80 हजार डॉलर के मुआवजे के बाद तेल कंपनी ने कोई पैसा नहीं दिया. अभी तक के सभी प्रस्ताव कम थे.

प्रभावित लोगों का बीपी के साथ समझौता सभी के लिए नुकसानदेह नहीं रहा. मिसिसीपी के पश्चिमी तट पर सीपी पकड़ने वाले मछुआरों को फायदा हुआ लेकिन दूसरे तट पर एनकैलेड जैसे लोगों को इससे जरा भी फायदा नहीं हो सका. एक और मुश्किल यह है कि कुछ मछुआरों को उस समय फैसला लेना पड़ा जब और प्रभावों के बारे में नहीं पता था. लेकिन जिन मछुआरों ने बहुत पहले ही समझौता कर लिया था, वह अब कोई दावा नहीं कर सकते. उम्मीद की जा रही है कि इन लोगों के साथ भी न्याय होगा. क्योंकि कोई नहीं जानता सीपियां फिर कब बढ़ेंगी. जब तक बीपी का मुकदमा पूरा नहीं होता, पोइंटे आ ला हाचे तट के मछुआरों का भविष्य अंधेरे में है.

रिपोर्टः क्रिस्टीना बैर्गमान, आभा मोंढे (एपी)

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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