किशोर अपराधियों के साथ और नर्म बर्ताव की जरूरत है या सख्त?
१३ जनवरी २०२०अप्रैल 2016 की रात 32 वर्षीय सिद्धार्थ शर्मा नई दिल्ली के सिविल लाइंस इलाके में सड़क पार कर रहे थे कि तभी उनके बाईं तरफ से एक मर्सिडीज गाड़ी अचानक से तेज रफ्तार से आई और उन्हें टक्कर मारती हुई निकल गई. शर्मा की उस हादसे में मौत हो गई. कुछ दिनों बाद जब उस वक्त उस मर्सिडीज को चला रहे व्यक्ति ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया तो एक चिरपरिचित दुविधा कानून के सामने आ गई. वाहन-चालाक नाबालिग था. उसकी उम्र जुर्म के किये जाने के वक्त 18 साल से चार दिन कम थी.
भारत में नाबालिगों को कानून से विशेष सुरक्षा मिलती है. दोषी करार दिए जाने के बाद भी उनके साथ न वयस्कों जैसा बर्ताव किया जाता है न वयस्कों जैसी सजा दी जाती है. यही कारण है कि 9 जनवरी को इस मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उस नाबालिग वाहन-चालाक पर मुकदमा एक वयस्क कि तरह नहीं चल सकता. कोर्ट के दो जजों की पीठ ने साफ कहा कि उस पर मुकदमा नाबालिगों के लिए विशेष कानून के तहत ही चलेगा.
लेकिन पीठ सिर्फ इतने पर रुकी नहीं. पीठ ने यह भी कहा कि किशोर न्याय अधिनियम (जे जे एक्ट) बनाने वालों से एक बड़ी गलती हुई जिसकी वजह से एक नाबालिग व्यक्ति गैर इरादतन हत्या जैसे संगीन मामलों में भी एक वयस्क की तरह मुकदमे का सामना करने से बच जाता है. हालांकि जे जे एक्ट में जघन्य अपराध के दोषी पाए गए 16 से 18 साल तक के अपराधियों पर वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का प्रावधान है. लेकिन पीठ ने कहा कि इस कानून में एक "दुर्भाग्यपूर्ण कमी" है, और ये आदेश केंद्र में अधिकारियों तक पहुंचा दिया जाए ताकि इस कमी को दूर करने के लिए या तो संसद कानून को संशोधित करे या अध्यादेश ले कर आए.
दरअसल जे जे एक्ट के तहत, अपराधों को तीन श्रेणियों में रखा गया है - छोटे-मोटे अपराध जिनके लिए अधिकतम सजा है तीन साल तक की जेल, गंभीर अपराध जिनके लिए तीन से सात साल तक की सजा का प्रावधान है और जघन्य अपराध जिनके लिए न्यूनतम सजा सात साल की जेल है.
अदालत का कहना था कि एक चौथी श्रेणी भी है जो जिसका कानून में जिक्र नहीं है और वो है ऐसे अपराधों की जिनमें कोई न्यूनतम सजा का प्रावधान नहीं है लेकिन अधिकतम सजा सात साल से ज्यादा की है. अदालत के अनुसार इस श्रेणी के जुर्म के दोषी पाए जाने वाले किशोरों पर किन प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाया जाए इसे जे जे एक्ट में स्पष्ट रूप से बताया जाना चाहिए था.
2016 में किशोर न्याय बोर्ड ने फैसला दिया था कि नाबालिग वाहन-चालाक ने जघन्य अपराध किया है, इसलिए उस पर एक वयस्क की तरह मुकदमा चलना चाहिए. लेकिन 2019 में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि कथित अपराध के लिए कोई न्यूनतम सजा का प्रावधान नहीं है ये जे जे एक्ट के तहत नहीं आता. हाई कोर्ट ने बोर्ड के फैसले को रद्द कर दिया.
जानकारों की राय इस मामले में बंटी हुई है. कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि अदालत की बात ठीक है और इस कमी को पूरा किए जाने की जरूरत है.
लेकिन कुछ जानकार इस दलील से सहमत नहीं है. पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अमोद कंठ ने डॉयचे वेले से कहा कि सबसे पहले तो सजा के प्रावधानों में अगर कोई कमी है तो वो कमी सभी सम्बंधित कानूनों में संशोधन करके दूर करनी होगी, न कि जे जे एक्ट में. दूसरे, कंठ, जो किशोरों के कल्याण के लिए काम करने वाला गैर सरकारी संगठन प्रयास चलाते हैं, कहते हैं, "जब कानून के हर लिहाज से किशोरों को वयस्क 18 साल का होने से पहले नहीं माना जाता है तो सिर्फ अपराध में आप उनको वयस्क क्यों मान लेंगे?"
यह हादसा अगर आज हुआ होता तो इसमें न्याय कुछ और तरह से होता क्योंकि नए मोटर वाहन अधिनियम 2019 के तहत अगर नाबालिग द्वारा किसी कानून का उल्लंघन होता है तो उस नाबालिग पर जे जे एक्ट के तहत मुकदमा चलाने के अतिरिक्त, सजा उसके अभिभावक या वाहन के पंजीकृत मालिक को भी मिलेगी.
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