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केन्या में वन संरक्षण से सुधरे हालात

२३ अगस्त २०१४

बहुत से दूसरे विकासशील देशों की तरह केन्या भी जंगलों के काटे जाने का शिकार था. पिछले सालों में कार्बन कारोबार की वजह से जंगलों के साथ साथ स्थानीय निवासियों की भी स्थिति सुधरी है.

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तस्वीर: Gerald Henzinger

दस साल पहले जब मर्सी एनगारुइया दक्षिणी केन्या के कासीगाऊ में रहने गईं तो वहां उन्होंने खस्ताहाल जंगल पाया. "यह इलाका सचमुच जल रहा था. मेरे फार्म पर कोई पेड़ नहीं था, पूरा इलाका सूखा था और लोग आजीविका के लिए पेड़ों और झाड़ियों को काट रहे थे." उन दिनों वहां गरीबी और बेरोजगारी का बोलबाला था. पीने के पानी की सप्लाई कम थी और शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं के बराबर थीं.

पर्यावरण संरक्षण कंपनी के माइक कोर्चिंस्की को भी अच्छी तरह से याद है, "जब मैं यहां आया तो लगातार पेड़ों के काटने की आवाज आती थी." वे कहते हैं कि पेड़ों को काटने का पर्यावरण पर तुरंत असर पड़ता है क्योंकि जंगलों में सालों से जमा कार्बन डायॉक्साइड वातावरण में बाहर निकल आता है और इंसानी गतिविधियों द्वारा छोड़े जा रहे कार्बन डयॉक्साइड को बांधने के लिए कुछ नहीं रहता.

मोम्बासा से 150 किलोमीटर दूर स्थित कासीगाऊ ग्रीन अर्थव्यवस्था के बढ़ने के साथ अपने अतीत से धीरे धीरे उबर रहा है. एक लाख की आबादी वाला इलाके में रेड प्लस प्रोजेक्ट के फायदे दिखने लगे हैं. एनगारुइया का कहना है, "जब से हमारे साथी ग्रामवासियों ने पर्यावरण संरक्षण का रास्ता अपनाया है, स्थिति सुधर रही है. माहौल बेहतर हो रहा है." रेड प्लस प्रोजेक्ट की वजह से लोग जंगल काटने के रास्ते से हटे हैं और जीवन यापन का वैकल्पिक तरीका अपनाया है. रेड प्रोजेक्ट की वजह से कार्बन बेच कर कासीगाऊ इलाका हर साल 10 लाख डॉलर कमा रहा है.

Bildergalerie Kohletransporteure und Kohleproduktion in Mosambik
तस्वीर: Gerald Henzinger

कमाई का एक तिहाई हिस्सा परियोजना विकास पर खर्च होता है और रोजगार पैदा करने वाली एग्रो फॉरेस्ट्री और कृत्रिम कोयला बनाने जैसी पहलकदमियों पर खर्च होता है. मुनाफे का एक हिस्सा स्थानीय किसानों में भी बांटा जाता है. यहां की निवासी निकोलेटा म्वेंडे बताती हैं, "हमें अब कोयला बनाने के लिए पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं, हम बायोगैस या पत्तों से बने कोयले का इस्तेमाल करते हैं. हम पेड़ों की रक्षा करते हुए खाना पकाते हैं."

कासीगाऊ के प्रशासक पास्कल किजाका कहते हैं कि रेड प्लस परियोजना से गरीबी दूर करने का सीधा समाधान मिला है, "वन संरक्षण के अलावा मुनाफे से स्थानीय स्कूलों में 1800 बच्चों के लिए 20 आधुनिक क्लासरूम, एक हेल्थ सेंटर और एक उद्योग बनाया जा सका है, जिससे जीवन परिस्थितियां सुधरी हैं." कासीगाऊ का रेड प्लस प्रोजेक्ट केन्या का पहला प्रोजेक्ट है जिसमें इलाके में रहने वाले लोग प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा कर कमाई कर रहे हैं. कार्बन का कारोबार केन्या में अभी भी शुरुआती स्तर पर है.

लेकिन केन्या वन विभाग के अल्फ्रेड गिचू के अनुसार केन्या में कार्बन क्रेडिट के कारोबार का अच्छा भविष्य है. इस समय देश में 16 रजिस्टर्ड कार्बन क्रेडिट प्रोजेक्ट चल रहे हैं और 26 प्रोजेक्ट रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया में हैं. "इनमें से 19 जियोथर्मल डेवलपमेंट कंपनी जैसे ऊर्जा वाले प्रोजेक्ट हैं जबकि सात फिर से जंगल लगाने वाले प्रोजेक्ट हैं." वर्षावनों और पर्यावरण सुरक्षा पहलकदमी की एक रिपोर्ट के अनुसार जंगल को बचाने के मामले में केन्या उन देशों में शामिल है जिनमें नई नीतियों को सफलता मिली है. रिपोर्ट में कासीगाऊ प्रोजेक्ट भारी सफलता की मिसाल बताया गया है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूनेप की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार खेतों, स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देने, जंगलों को काटने पर रोक लगाने और पर्यावरण संबंधी जागरुकता फैलाने से केन्या में जंगल बढ़े हैं. लेकिन कार्बन क्रेडिट परियोजना की राह में बाधाएं भी हैं. अफ्रीकी कार्बन एक्सचेंज के डाइरेक्टर मोजेस किमानी विशेषज्ञता और संसाधनों की कमी को सबसे बड़ी चुनौती बताते हैं.

पिछले साल पोलैंड में हुए जलवायु सम्मेलन के भागीदार रेड प्लस के ढांचे पर सहमत हुए थे और इसके लिए 28 करोड़ डॉलर मुहैया करवाने का वचन दिया था. लेकिन पर्यावरण संरक्षकों की शिकायत है कि इन संसाधनों के स्थानीय स्तर पर पहुंचने की मशीनरी नहीं है. पर्यावरण संरक्षक जॉन मैना कहते हैं कि कारोबार की जानकारी नहीं होने के कारण स्थानीय समुदाय के लोग कार्बन बेचने में व्यापारियों से पिछड़ जाते हैं और सस्ते में कार्बन बेच देते हैं. "सरकार, सिविल सोसायटी और एनजीओ को नियमों को मजबूत बनाने और लोगों को परियोजनाओं के बारे में जानकारी देने के लिए मिलजुल कर काम करना चाहिए."

एमजे/एजेए (आईपीएस)