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कैसे बदलेंगे भारत पाक रिश्ते

२३ मई २०१३

पाकिस्तान में नवाज शरीफ की जीत ने एक बार उम्मीद जगा दी है कि आने वाले दिनों में उसके भारत से रिश्ते सुधर सकते हैं. खुद शरीफ ने जिस तरह के बयान दिये हैं, उनसे इस उम्मीद को बल मिलता है.

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तस्वीर: BEHROUZ MEHRI/AFP/Getty Images

शरीफ का कहना है कि 1999 में जिस बिंदु पर दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने की प्रक्रिया रुकी थी, वे उसे वहीं से बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन क्या ऐसा करना उनके लिए आसान होगा? क्योंकि पिछले चौदह सालों में जो कुछ हुआ है, उसकी अनदेखी न भारत कर सकता है और न ही पाकिस्तान.

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधरने की उम्मीद जगाने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनी गई सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया और अब वहां शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से ही सत्ता का हस्तांतरण होगा. लोकतंत्र के मजबूत होने का सीधा संबंध राष्ट्रीय राजनीति में सेना की ताकत और प्रभाव के कम होने से है क्योंकि मजबूत लोकतंत्र में सेना नागरिक सरकार के तहत काम करती है, उसे निर्देश नहीं देती.

लंबा है सफर

इन चुनावों के जरिये पाकिस्तान ने इस दिशा में एक कदम उठाया है, लेकिन अभी मंजिल काफी दूर है. इसके बावजूद पूरे विश्वास के साथ यह कहा जा सकता है कि यदि पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होती गईं और वहां की नागरिक सरकार स्थिर रही, तो धीरे-धीरे सेना की शक्ति और प्रभाव खुद कम होते जाएंगे. लेकिन अभी तो स्थिति यही है कि सेनाध्यक्ष जनरल अशफाक परवेज कियानी ने नवाज शरीफ से मिल कर उन्हें सलाह दी है कि भारत के साथ संबंध सुधारने में वे जल्दबाज़ी से काम न लें.

लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है कि जनरल कियानी ने पाकिस्तान की जनता को इन ऐतिहासिक चुनावों के सफलतापूर्वक होने पर बधाई भी दी और कहा कि आतंकवादियों की धमकियों और बेबुनियाद निर्देशों की परवाह न करके उसने सिद्ध कर दिया कि पाकिस्तान के लोग शांतिप्रिय और साहसी हैं. हालांकि तालिबान की धमकियों और उम्मीदवारों एवं राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमलों के कारण पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, आवामी नेशनल पार्टी और मुत्तहिदा कौमी मूवमेंट के चुनाव प्रचार पर खासा असर पड़ा था. पर जनरल कियानी ने आतंकवादियों को मुट्ठी भर गुमराह तत्व बताया.

Nawaz Sharif / Pakistan / Muslimliga
कई चुनौतियों के सामने नवाज शरीफतस्वीर: Reuters

इस बयान से यह संकेत तो मिलता है कि अब पाकिस्तानी सेना आतंकवाद के कारण भीतर से पैदा हो रहे खतरे की गंभीरता को समझने लगी है. यदि इसके कारण उसी नीतियों में बदलाव आया, और इन आतंकवादी संगठनों का भारत की तरफ रुख न हुआ, तो दोनों देशों के बीच संबंध सुधरने के लिए आधार तैयार हो सकता है. पाकिस्तानी सेना अभी तक भारत को ही पाकिस्तान के अस्तित्व के लिए खतरा मानती आई है और इसीलिए उसने ऐसे संगठनों के सिर पर हाथ रखने से गुरेज नहीं किया जो भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न रहते थे. लेकिन यदि अब उसकी सोच में परिवर्तन हो रहा है, तो यह एक शुभ संकेत है. एक शुभ संकेत यह भी है कि इन चुनावों के दौरान कश्मीर के मुद्दे को बहुत नहीं उछाला गया.

बढ़ी हुई ताकत

क्योंकि नवाज शरीफ को सरकार बनाने और चलाने के लिए अन्य दलों की बैसाखी की जरूरत नहीं पड़ेगी, इसलिए सत्ता पर उनकी पकड़ न केवल मजबूत होगी बल्कि वे महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लेने के लिए भी स्वतंत्र होंगे. यदि सेना के साथ उनके अच्छे संबंध विकसित हुए और सरकार एवं सेना के बीच हर स्तर पर तालमेल बन पाया, तो उनके द्वारा लिए गए फैसलों को सेना का समर्थन भी हासिल होगा.

यह मानना मुश्किल है कि भारत विरोध पर राष्ट्रीय अस्मिता का निर्माण करने वाला पाकिस्तान रातों रात बदल जाएगा. लेकिन यह मानने का भी कोई कारण नहीं कि घोर आर्थिक संकट को झेल रहा पाकिस्तान भारत के प्रति विरोध की पुरानी नीति पर ही चलेगा. नवाज शरीफ स्वयं एक उद्योगपति हैं और व्यापार के महत्व को समझते हैं. इस समय भारत के साथ पाकिस्तान का केवल 50 करोड़ डॉलर का वार्षिक व्यापार होता है. दोनों के बीच सीधा व्यापार भी बहुत कम वस्तुओं तक सीमित है. यदि इस स्थिति में सकारात्मक बदलाव आए, तो इससे दोनों ही देशों को लाभ होगा और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा. संबंध सुधरने का एक अर्थ यह भी होता है कि रक्षा की मद में खर्च कम करने की स्थितियां बनती हैं. इस बचत को सामाजिक आर्थिक क्षेत्र के विकास में लगाया जा सकता है. चुनाव के बाद पाकिस्तान में बनी राजनीतिक स्थिति से संकेत तो यही मिल रहे हैं कि वहां का नागरिक समाज तथा राजनीतिक एवं सैनिक नेतृत्व अब अंध भारत विरोध की नीति को अधिक समय तक चलाने में रुचि नहीं रखता. लेकिन यह भविष्य ही बताएगा कि चुनाव के नतीजों से उपजी आशा किस सीमा तक पूरी होती है.

ब्लॉगः कुलदीप कुमार

संपादनः अनवर जे अशरफ