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कैसे बना ब्राजूका फुटबॉल

१७ सितम्बर २०१४

फुटबॉल की गेंद का सिर्फ गोल होना ही जरूरी नहीं है, इसमें काफी कुछ होना चाहिए. ब्राजील में हुए फुटबॉल वर्ल्ड कप की गेंद का खास नाम था, ब्राजूका. कैसे बनाई गई यह गेंद, जानिए यहां.

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तस्वीर: Juan Mabromata/AFP/Getty Images

2014 फीफा वर्ल्ड कप की ऑफिशियल फुटबॉल ब्राजूका काफी रंगीन थी. इससे भी अहम कि चैंपियनशिप के सामान्य मैचों के लिए और फाइनल के लिए दो अलग अलग गेंदें बनाई गई थी. एडीडास कंपनी के लिए जर्मनी के यॉखन राफ ने यह गेंद डिजाइन की. वह अपनी प्रेरणा के बारे में बताते हैं, "गेंद की डिजाइन की तीन जगहों से प्रेरणा मिली. इसकी एक दूसरे से जुड़ी तीन धारियां हैं जो पूरी गेंद में फैली हुई हैं. यह ब्राजील की भाषा शैलियों को दर्शाती है, उनके बहाव को. यह ब्राजील में फ्रेंडशिप बैंड जैसे विशिंग बैंड से भी जुड़ी है. फिर दूसरा है गेंद में रंग और तारे, जो ब्राजील में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं."

गेंद का प्रोटोटाइप

जर्मन शहर हेरजोगेन आउराख में यॉखेन राफ ने डेढ़ साल तक इस गेंद पर काम किया. इसे उन्होंने स्पोर्ट्स कंपनी अडीडास के साथ बनाया. फिर यह गेंद प्रोडक्शन के लिए तैयार हुई. गेंद का लुक और इसकी सतह का ढांचा भी नया है. यह छह अलग अलग हिस्सों से बनाया गया है. राफ बताते हैं, "सिलाई अगर सही हो तो गेंद एक तरह से स्थिर होकर उछलेगी. सिलाई को जितनी समानता से बांटा जाएगा, गेंद उतनी ऊंची और उतनी ही स्थिर बनकर हवा में उछलेगी. इसलिए गेंद में लंबी सिलाई और उन्हें सही तरह से बांटना जरूरी हो गया. फिर गेंद चाहे जहां मुड़े और जैसे भी हिले, वह स्थिर होकर उछलेगी."

वर्ल्ड कप के मैदान में जाने से पहले गेंद के प्रोटोटाइप को लंबे समय तक और हर तरह से लैब में टेस्ट किया जाता है. एक खास मशीन जांच करती है कि गेंद सच में गोल और एकसमान है कि नहीं. एक रोबोट गेंद को मारता है और इसके आधार पर बॉल की उड़ान का विश्लेषण किया जाता है. इसके बाद बारी खिलाड़ियों की आती है जो इसे टेस्ट करते हैं. इस टेस्ट में बहुत वक्त लगता है, यॉखन राफ इसका कारण बताते हैं, "सबसे बड़ा काम, जिसमें सबसे ज्यादा वक्त भी लगा, वह था फील्ड टेस्ट. हम बुंडेसलीगा की टीमों में गए, अमेरिका भी गए. इससे पहले हम करीब दो साल ब्राजील में भी थे. इन सबमें बहुत समय लगता है. लेकिन सभी तरह से जांच कर लेने के बाद आप निश्चिंत हो सकते हैं कि यह बेस्ट फुटबॉल है जो हम इसी फॉर्म में बना सकते हैं."

कैसे बनी बॉल

एक परफेक्ट बॉल बनने के पीछे एक लंबी कहानी है. दो हजार साल पहले चीन में पंखों और बालों को ठूंसकर गेंद बनाई जाती थी. 1960 के दशक में वर्ल्ड कप की गेंद चमड़े से बनी होती थी. 1970 में पहली बार एडीडास ने वर्ल्ड कप की ऑफिशियल फुटबॉल बनायी. तब से इसका नाम भी रखा जाने लगा. ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के लिए यह गेंद एकदम बढ़िया थी. क्योंकि इसमें सफेद षटकोण और काले पांच कोनों वाले पैच लगाए गए थे. यॉखेन राफ बताते हैं, "आज हम इसके बारे में सोचते भी नहीं कि पहली बार एक सफेद गेंद को इन काली पट्टियों से सजाया गया और गेंद अच्छी दिखने लगी. उस वक्त यह नई बात थी. आज सब इसे जानते हैं. उस वक्त पहली बार इसका इस्तेमाल हुआ और यह क्लासिकल डिजाइन बन गया."

हर बार नए चैंपियनशिप के लिए नई गेंद बनाई जाती है, अलग अलग रंगों के चमड़े और प्लास्टिक से. 2014 में फाइनल के लिए एडीडास की टीम ने खास बॉल बनाई. फ्रांसिस्का लोएफेलमन ने इस गेंद का रंग रूप तय किया. वह बताती हैं, "फाइनल में भावनाएं चरम पर होती हैं. अलग अलग रंगों वाली पट्टियां यही दिखाती हैं. खेल की भावना पूरी तरह गेंद में दिखती है. ठीक वैसे ही जैसे किसी डांस, या सांबा या संगीत से कई भावनाएं निकलती हैं."

अगले विश्व कप के लिए कुछ साल इंतजार करना होगा और फिर एक नई गेंद एक नई कहानी लेकर आएगी.

एएम/आईबी