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कैसे ब्रिटेन के गले की हड्डी बना ब्रेक्जिट

ओंकार सिंह जनौटी
९ अप्रैल २०१९

खीझ से शुरू हुआ ब्रेक्जिट का मुद्दा ब्रिटेन के गले की हड्डी बन गया है. ये हड्डी न निगली जा रही है, न उगली. आखिर कैसे शुरू हुआ यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के ये तलाक.

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Karikatur Brexit - Theresa May auf Schlingerkurs
तस्वीर: DW/ Dominik Joswig

डैविड कैमरन, प्रेस उन्हें ब्रेक्जिट का जनक भी कहती है. मई 2010 में गॉर्डन ब्राउन के इस्तीफे के बाद डैविड कैमरन आधुनिक ब्रिटेन के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने. उम्र थी 43 साल. प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल में कैमरन के शुरुआती साल जितने चमकदार थे, आखिरी उतने ही झटकेदार. आखिरी महीनों में यूरोप का शरणार्थी संकट ब्रिटेन पर भी मंडराने लगा. सीरिया, लीबिया और अफगानिस्तान से भागने वाले लाखों रिफ्यूजी यूरोप में दाखिल होने लगे. यूरोपीय संघ का सदस्य ब्रिटेन इससे अछूता नहीं रहा.

ब्रिटिश राजनीति और प्रेस, पहले ही यूरोपीय संघ के नागरिकों की ब्रिटेन में बढ़ती आमद को लेकर तल्ख थी. दक्षिणपंथी नेता कहने लगे कि ब्रिटेन में बस रहे पोलैंड के लोग समाजिक कल्याण और पेंशन सिस्टम पर बोझ बनते जा रहे हैं. रिफ्यूजी संकट ने आग में घी का काम किया. जब कभी यूरोपीय संघ ने संकट से निपटने के लिए नए कदम उठाने का एलान किया तब तब ब्रिटेन के कुछ नेताओं ने इसे अपनी संप्रभुता पर वार बताया और विरोध किया.

मई 2015 के आम चुनावों तक यूरोपीय संघ से अलग होने की मांग करने वाले नेताओं की लोकप्रियता बढ़ती गई. दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने की तैयारी कर रहे डैविड कैमरन ने इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की. उनकी कंजर्वेटिव पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में ब्रेक्जिट को लेकर जनमत संग्रह कराने का वादा कर दिया. सात मई को नतीजे आए और एग्जिट पोलों को धता बताते हुए कैमरन की कंजर्वेटिव पार्टी ने जीत हासिल की. कैमरन दूसरी बार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने.

अब वादा निभाने का वक्त था. ज्यादातर राजनेताओं की तरह कैमरन को उम्मीद थी कि वह अपनी राजनीतिक चतुराई के जरिए ब्रेक्जिट के मामले को संभाल लेंगे. यूरोपीय संघ के बाकी सदस्य देशों और मुख्यालय ब्रसेल्स को कैमरन लगातार दिलासा दिलाते रहे कि जनता ब्रेक्जिट के खिलाफ वोट देगी. 23 जून 2016 को ब्रेक्जिट को लेकर जनमत संग्रह हुआ और इसी के साथ कैमरन की सारी राजनीतिक चतुराई धरी रह गई. 52 फीसदी लोग यूरोपीय संघ से अलग होने के पक्ष में थे. 48 फीसदी संघ में बने रहना चाहते थे. नतीजों ने यूरोप को निराशा, ब्रिटेन को असमंजस और दुनिया को कौतूहल दिया.

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जनमत संग्रह के नतीजों के बाद डैविड कैमरन को इस्तीफा देना पड़ा. ब्रेक्जिट का नारा बुलंद करने वाले कैमरन के सारे सहयोगी भी धीरे धीरे इस्तीफा देकर राजनीतिक बवंडर से दूर खिसक लिए. यूरोपीय संघ के ब्रिटेन के अलगाव की तारीख तय हो चुकी थी, 29 मार्च 2019. देश को इस मुश्किल से निकालने के लिए किसी मजबूत नेता की जरूरत थी. टेरीजा मे ने खुद को उस मजबूत नेता के रूप में पेश किया. मे को भी यही लगा कि वह सफलता से ब्रेक्जिट करवा लेंगी और मारग्रेट थैचर की तरह ब्रिटेन की "आयरन लेडी" कहलाएंगी. वक्त बीतने के साथ टेरीजा मे ब्रेक्जिट को लेकर नया नया खाका बनाती रहीं. खाका जब जब प्रस्ताव में बदला तब तब संसद में खारिज हो गया. खुद उनकी पार्टी प्रस्तावों का विरोध करने लगी. ऐसी परिस्थितियों में आत्मसम्मान के खातिर नेता त्यागपत्र दे देते हैं, लेकिन मे यह भी नहीं कर सकीं, क्योंकि कोई और जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं है.

ब्रेक्जिट पर ब्रेक लगाने वाला सबसे अहम मुद्दा फिलहाल उत्तरी आयरलैंड और आयरलैंड गणतंत्र के बीच का बॉर्डर है. आयरलैंड कहा जाने वाला आयरलैंड गणतंत्र एक संप्रभु देश है. वहीं उत्तरी आयरलैंड ब्रिटेन का अंग है. दोनों आयरलैंडों के बीच कोई सीमा नहीं है. बीते दो दशकों से शांत दिखने वाले आयरलैंड के दोनों हिस्सों ने 1960 से 1990 तक लंबा जातीय संघर्ष देखा. दक्षिण के नेशनलिस्ट पूर्ण आयरलैंड की मांग कर रहे थे और उत्तर के राजशाही समर्थक ब्रिटेन में बने रहने के लिए संघर्ष. दोनों पक्षों के बीच फायरिंग और धमाकों में सैकड़ों लोग मारे गए.

Grenze Irland - Nordirland
आयरिश सीमा पर लगा एक बोर्डतस्वीर: Getty Images/AFP/P. Faith

लंबे खूनखराबे के बाद 10 अप्रैल 1998 को हुए गुड फ्राइडे समझौते में यह तय किया गया कि उत्तरी आयरलैंड, ब्रिटेन का ही हिस्सा बना रहेगा लेकिन अगर भविष्य में अगर यहां की जनता आयरलैंड में शामिल होना चाहेगी तो फैसला बहुमत के हाथों होगा. दोनों आयरलैंडों के बीच की सीमा को मिटा दिया गया ताकि अलगाव का कोई निशान न बचे. लोगों की स्वतंत्र आवाजाही शुरू हो गई, पूरा इलाका शांत होने लगा.

लेकिन ब्रेक्जिट के बाद इस बॉर्डर का क्या होगा, यह बड़ा सवाल है. आयरलैंड गणतंत्र यूरोपीय संघ का सदस्य है. अगर बॉर्डर खुला रखा गया तो आप्रवासियों की आवाजाही पर नियंत्रण नहीं रह जाएगा. अगर बॉर्डर बंद किया तो ब्रिटेन और आयरिश गणतंत्र के बीच हुआ गुड फ्राइडे समझौता पंगु हो जाएगा.

भविष्य में यूरोपीय संघ के साथ ब्रिटेन के कैसे रिश्ते होंगे, ये चर्चाओं का विषय है और आयरलैंड का बॉर्डर जज्बातों का. जज्बातों से भड़क कर शुरू हुआ ब्रेक्जिट अभियान आखिर में आयरिश भावना की कील पर अटक गया है.

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