कैसे होगा जर्मनी कोयला मुक्त?
२५ जनवरी २०१९जर्मनी कोयले का इस्तेमाल बंद करना चाहता है. मगर ऐसा करने के लिए कोई ऐसा उपाय चाहिए जिससे अर्थव्यवस्था पर असर ना पड़े और लोगों का विरोध भी ना हो. इसके लिए सरकार ने विशेषज्ञों का पैनल बनाया है जिनको इस परेशानी का कोई हल निकालना है. मगर अभी तक इस पैनल को कोई उपाय नहीं मिला है.
क्यों कोयला मुक्त होना चाहता है जर्मनी
2015 के पेरिस जलवायु समझौते में जर्मनी ने वादा किया है कि वह अपना ग्लोबल वॉर्मिंग का लक्ष्य 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 फारेनहाइट) के नीचे रखेगा. जो की आदर्श रूप से 1.5 सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) पर होगा. इसके लिए ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत तेजी से कम करने की जरुरत होगी. जर्मनी के कोयले के कारखाने पूरे यूरोप में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड पैदा करते हैं. माना जा रहा है कि जर्मनी पेरिस जलवायु समझौते में 2020 के लिए दिया हुआ लक्ष्य पूरा नहीं कर पाएगा.
देश में काले कोयले की खदानों को तो बंद कर दिया गया है मगर विदेशों से जीवाश्म ईंधन अभी भी आयात होता है. जर्मनी में अभी भी लिग्नाइट निकाला और जलाया जाता है, जो की एक सस्ता और गंदे प्रकार का कोयला होता है. इससे देश कि एक तिहाई बिजली पैदा होती है. कोयले का इस्तेमाल बंद करने से जर्मनी अपना 2030 और 2050 का लक्ष्य हासिल कर सकेगा, जिसके लिए 55 और 80 प्रतिशत कोयले का इस्तेमाल कम करना होगा.
राजनीतिक संवेदनाएं
20 हजार नौकरियां कोयले से सीधे तौर पर जुड़ी हुई हैं. बाकी 40 हजार नौकरियां भी किसी ना किसी तरह कोयले से जुड़ी हैं. अगर इस आंकड़े को अक्षय ऊर्जा के मुकाबले देखा जाए तो ये बहुत छोटा है, मगर ये सारी नौकरियां आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र में हैं. ऐसे चार में से दो राज्य ब्रैंडेनबुर्ग और सैक्सनी जर्मनी के पूर्व में हैं. वहां इस साल चुनाव भी होने वाले हैं. धीरे धीरे लोकप्रियता में आगे बढ़ती जा रही ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी पार्टी (एएफडी) का कहना है कि जब तक इन खदानों में कोयला है उनको बंद नहीं करना चाहिए. मगर कई लोगों ने पर्यावरण को बचाने के लिए आंदोलन चलाए हैं और जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कुछ किए जाने की मांग की है.
सरकार ने इस जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील निर्णय को लेने के लिए 28 जानकारों का पैनल बनाया है, जिसमें उद्योग, विज्ञान, प्रभावित क्षेत्रों के पर्यावरण समूह और राजनेता शामिल हैं. पॉट्सडाम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इफेक्ट एंड रिसर्च के सह-निदेशक ओटमार एडेनहोफर का कहना है, "अगर हम जर्मनी में फ्रांस जैसे येलो वेस्ट आंदोलन नहीं चाहते हैं तो सरकार को लोगों को कोयला छोड़ने के फायदे बताने होंगे."
ये सब होगा कैसे?
पैनल ने पहले यह सुझाव दिया है कि कुछ खदानों को तुरंत बंद कर देना चाहिए और कुछ खदानों को धीरे धीरे बंद करना चाहिए. अर्थशास्त्री और पर्यावरणविदों का मानना है कि पहले सुझाव से और मुश्किल फैसले लेने के लिए वक्त मिलेगा.
जर्मनी ने सिर्फ कोयला का इस्तेमाल बंद करने की बात नहीं कही है, वह परमाणु ऊर्जा का भी 2022 तक इस्तेमाल बंद करना चाहता है. इसकी वजह से जर्मनी के पास कुछ करने के लिए वक्त और कम हो गया है. चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा है कि कुछ समय के लिए जर्मनी को प्राकृतिक गैस का आयात करना पड़ेगा. ये प्राकृतिक गैस कोयले से आधा कार्बनडाई ऑक्साइड छोड़ती है और ये तब तक होगा जब तक नवीकरणीय स्रोतों से देश की मांग पूरी ना हो जाए.
सरकार को जिन इलाकों में आने वाले दशक में खदानें बंद करनी हैं, वहां उनके लिए बहुत सा पैसा खर्च कर उनकी आर्थिक मदद करनी पड़ेगी. सरकार ने अगले दशक में पांच हजार नौकरियां लाने के लिए एक मसौदा भी बनाया है. सरकार को कारोबारियों की भी मदद करनी पड़ेगी क्योंकि ऐसा नहीं होना चाहिए कि कोयले से चलने वाली कंपनियां आचानक से बंद हो जाएं. इससे उपभोक्ताओं और कंपनियों दोनो को बिजली के भारी बिल देने पड़ेंगे.
क्यूं करें इतने पैसे खर्च?
जानकारों का मानना है कि पर्यावरण को बचाने के लिए जो पैसा खर्च होगा उससे अर्थव्यवस्था पर अच्छा खासा असर पड़ेगा. इससे जर्मनी को करोड़ों का खर्च करके कार्बन क्रेडिट दूसरे देशों से नहीं खरीदना पड़ेगा. इस कार्बन क्रेडिट से देश अपने यूरोपीय संघ के दिए हुए लक्ष्य पूरे करते हैं और इस तरह से बचाया हुआ पैसा देश में इस्तेमाल हो सकता है.
इफो सेंटर फॉर एनर्जी, क्लाइमेट एंड रिसोर्सेज की निदेशिका कारेन पिटेल का मानना है, "इन उपायों से जर्मनी अपने बाकी के क्षेत्रों जैसे परिवहन और हीटिंग में भी बदलाव ला सकता है." जर्मनी के कोयला मुक्त होने के फैसले का असर बाकी के पड़ोसी देश जैसे पोलैंड, स्लोवाकिया और बुल्गारिया जैसे देश भी बहुत ध्यान से देख रहे हैं, जो कि खुद भी भारी तौर पर जीवाश्म ऊर्जा पर निर्भर हैं.
एनआर/आरपी (एपी)