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कॉमनवेल्थ गेम्स: भ्रष्टाचार के बाद मानवाधिकार उल्लंघन!

१३ अगस्त २०१०

कॉमनवेल्थ गेम्स तैयारियों में भ्रष्टाचार के आरोपों पर हंगामे के बाद अब मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी लगे. गैरसरकारी संगठनों के एक समूह ने आरोप लगाया कि श्रम कानूनों का उल्लंघन हुआ, झोपड़पट्टी में रहने वालों का विस्थापन.

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तस्वीर: UNI

गैरसरकारी संगठनों ने कॉमनवेल्थ गेम्स को रद्द करने की मांग तक कर डाली है. कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन खेलों की तैयारियों की वजह से समाज पर गलत असर हो रहा है और लोगों को कष्ट उठाने पड़ रहे हैं. इससे दिल्ली के ताने बाने पर भी प्रभाव पड़ने की आशंका जाहिर की गई है.

एनजीओ हाउसिंग एंड लैंड राइट्स नेटवर्क के मिलून कोठारी ने कहा, "खेलों की वजह से विस्थापन हुआ है और गरीब लोगों को कष्ट झेलने पड़ रहे हैं. भ्रष्टाचार के आरोप तो पहले से ही लग रहे हैं. दिल्लीवासियों को इन खेलों से किसी तरह का फायदा नहीं होने जा रहा है."

इस समूह ने आरोप लगाया कि खेल तैयारियों में असल में कितना खर्च हो रहा है, इसका अंदाजा किसी को नहीं है. हर एजेंसी अलग अलग अनुमान लगा रही है, किसी तरह की कोई जवाबदेही नहीं है. गैरसरकारी संगठनों का कहना है कि खेलों के मद्देनजर लोगों के विस्थापन पर रोक लगनी चाहिए, विस्थापित परिवारों का पुनर्वास होना चाहिए, खेलों के लिए आवंटित बजट की जांच होनी चाहिए और रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर महिलाओं की तस्करी रोकने के लिए कोशिशें होनी चाहिए.

पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की शशि सक्सेना ने कहा, "खेलों की तैयारियों के लिए जहां निर्माण कार्य चल रहे हैं वहां श्रमिकों को न्यूनतम मेहनताने की आधी रकम दी जा रही है और उन्हें बेहद खराब परिस्थितियों में रखा गया है. काम करते समय उनके पास सुरक्षा के लिए सही औजार भी नहीं हैं. संसद में बताया गया है कि अब तक निर्माण स्थलों पर 42 मजदूरों की मौत हो चुकी हैं. हमें नहीं पता कि उनके परिवारों को कैसे मुआवजा दिया जाएगा."

झुग्गी झोपड़ी एकता मंच के जवाहर सिंह के मुताबिक झोपड़पट्टियों में रहने वालों को बिना किसी नोटिस के बाहर निकलने पर मजबूर किया जा रहा है. उन्होंने बताया, "दिसम्बर 2009 में दो हजार झुग्गी वालों को बादली से हटाया गया. जनवरी 2009 में प्रभु मार्केट से कई लोगों को हटाया गया. ऐसी रिपोर्टें हैं कि दिल्ली सरकार ने 44 झोपड़पट्टियों को हटाने के लिए पूरी तैयारी कर ली है."

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: वी कुमार