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कोई बदलाव नहीं लाया चुनाव

२३ जनवरी २०१३

इस्राएली चुनाव के नतीजे इस बार भी पहले जैसे ही रहे. मध्य वाम मोर्चे और दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी मोर्चे की ताकत बराबर रही. डॉयचे वेले की बेटिना मार्क्स का कहना है कि बंटा हुआ इस्राएली समाज खुद की घेराबंदी कर रहा है.

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तस्वीर: AP

इस्राएली प्रधानमंत्री बेंयामिन नेतान्याहू ने ऊंची बाजी लगाई और हार गए. उन्हें समय से पहले चुनाव करा कर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी बहुमत का समर्थन पाने में कामयाबी नहीं मिली. लिकुद और इस्राएल बाइताइनू के उनके मोर्च को 120 सीटों वाली संसद में सिर्फ 31 सीटें मिली. 2009 में हुए पिछले चुनाव से 11 सीटें कम. उनके गठबंधन को जिसमें उग्र दक्षिणपंथी पार्टी ज्यू हाउस और दो अन्य अल्ट्रा राष्ट्रवादी पार्टियां शामिल हैं, कुल 60 सीटें ही मिलीं.

लेकिन अरब लोगों की पार्टियों के बिना 30 से भी कम सीटें पाने वाला मध्यवाम मोर्चा भी देश की राजनीति में बदलाव लाने की हालत में नहीं है. शेली याखिमोविच के नेतृत्व वाली लेबर पार्टी और पूर्व विदेश मंत्री सिप्पी लिवनी की नई पार्टी भी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं. पिछले चुनावों में सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली कदीमा पार्टी को संभव है कि दो सीटें ही मिलें.

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प्रधानमंत्री नेतान्याहूतस्वीर: Reuters

नई पार्टी की जीत

चुनाव का स्पष्ट विजेता ऐसा शख्स है जो किसी राजनीतिक गुट में नहीं रहना चाहता है. टेलीविजन मॉडरेटर रहे यार लापिड की चुनावी सूची येश अटिड को 19 सीटें मिली हैं. येश अटिड का अर्थ है अभी भविष्य है. यह नई पार्टी संसद में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होगी. लापिड प्रसिद्ध मां-बाप की संतान हैं, सफल पत्रकार, इंटरटेनर और उपन्यासकार हैं. लेकिन मृदुभाषी और सुंदर दिखने वाले लापिड की चुनावी जीत इस्राएल की दुविधा भी दिखाती है. कोई नहीं जानता कि लापिड की राजनीति क्या होगी.

शायद वे खुद भी नहीं जानते. चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने राजनीतिक मुद्दों पर साफ रुख तय करने से मना कर दिया. उन्होंने बार बार सिर्फ यही कहा कि वे न तो वामपंथी हैं और न ही दक्षिणपंथी, वे सामाजिक न्याय के समर्थक हैं, वे भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं और पुरानी सोच समाप्त करना चाहते हैं. लापिड की नई पार्टी पूरी तरह उनके अनुरूप ढाली गई है. उनके द्वारा तय चुनावी सूची का कोई उम्मीदवार जनमत में जाना माना नाम नहीं है.

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येश अटिड की खुशीतस्वीर: Reuters

गठबंधन के विकल्प

लेकिन अब लापिड के हाथों में नई सरकार की कुंजी हो सकती है. वे नेतान्याहू के नेतृत्व में बड़े दक्षिणपंथी गठबंधन में शामिल हो सकते हैं या लिकुद और लेबर पार्टी के साथ धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बना सकते हैं. ऐसा होने पर यह इस्राएल के इतिहास में पहली निर्वाचित सरकार होगी जिसमें धार्मिक और अल्ट्रा ऑर्थोडॉक्स पार्टियां शामिल नहीं होंगी.

और यह सचमुच अप्रत्याशित होगा. लेकिन ऐसा गठबंधन भी देश की सबसे बड़ी समस्या का समाधान नहीं कर पाएगा, मध्यपूर्व विवाद का अंत. इस्राएल की बड़ी पार्टियों में किसी ने चुनाव प्रचार के दौरान बस्तियों के विस्तार की नीति को समाप्त करने और फलीस्तीनी मुद्दे के समाधान की मांग नहीं की है. जब तक सरकार इस समस्या पर विचार करने से इनकार करेगी, चुनाव कोई आश्चर्यजनक नतीजा नहीं दे पाएंगे, चाहे नए राजनीतिज्ञ पैदा हों, या नई पार्टियां चुनी जाएं. इस्राएल को अपनी दिशा तय करनी होगी, जिसके लिए इस समय कोई प्रमुख राजनेता तैयार नहीं है.

रिपोर्ट: बेटिना मार्क्स/एमजे

संपादन: अनवर जमाल

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