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कोठों की कथा बदलती कट-कथा

आमिर अंसारी, दिल्ली१४ नवम्बर २०१५

गीतांजलि जब दिल्ली के जीबी रोड स्थित कोठों के पास से गुजरती हैं तो वहां काम करने वाली सेक्सवर्कर उन्हें गले लगाती और ढेर सारा प्यार देती हैं. जीबी रोड दिल्ली के सबसे बदनाम इलाके के रूप में मशहूर है.

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तस्वीर: Katkatha

दिल्ली के सबसे बदनाम इलाके के रूप में मशहूर जीबी रोड पर सामान्य तौर पर लोग आने से कतराते हैं लेकिन गीतांजलि बब्बर को इससे जरा भी फर्क नहीं पड़ता. गीतांजलि यहां काम करने वाली सेक्सवर्करों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश कर रही हैं. गीतांजलि उन्हें दीदी पुकारती हैं और कहती हैं कि यह प्यार का मोहल्ला है, जहां सिर्फ प्यार और सपने भरे हुए हैं. गीतांजलि बब्बर ने अपनी नौकरी को छोड़ समाज की सबसे ज्यादा उपेक्षित महिलाओं के लिए काम करने का फैसला किया तो कई लोगों को यह अटपटा सा लगा. उन्होंने समाज की परवाह न करते हुए अपने सपने और संकल्प का पीछा किया और दिल्ली के जीबी रोड इलाके में काम करने वाली महिलाओं को सशक्त करने का बीड़ा उठाया.

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गीतांजलि बब्बर के कट कथा के प्रयासों से इलाके की महिलाओं में साहस आया है.तस्वीर: Katkatha

आज जीबी रोड पर दीदीयां आत्मविश्वास हासिल कर रही हैं और अपने अधिकारों के बारे में जागरुक हो रही हैं. गीतांजलि कहती हैं कि वे समाज के उस तबके के लिए काम कर रही हैं जिससे दुनिया ने मुंह फेर लिया है. जीबी रोड का माहौल ऐसा है कि यहां लोग आने से कतराते हैं और स्वयंसेवी भी यहां काम करने से हिचकिचाते हैं. असुरक्षित और बदनाम इलाका होने के बावजूद गीतांजलि और कट-कथा की टीम यहां पिछले साढ़े चार साल से दीदी और उनके बच्चों को शिक्षित और सशक्त करने की दिशा में काम कर रही हैं. गीतांजलि यहां दीदीयों से ऐसे गले मिलती हैं मानो कोई बेटी अपनी मां से मिल रही हो. बच्चों के साथ भी कट-कथा के लोग भी उसी तरह से पेश आते हैं, मानो बच्चे उनके ही परिवार के सदस्य हों. गीतांजलि के मुताबिक, "वैसे तो हम एक संस्था हैं लेकिन हम अपने आपको एक परिवार कहलाना पसंद करते हैं. दुनिया के लिए भले ही यह संस्था है लेकिन स्वयंसेवक और सदस्य इसे एक परिवार की ही तरह देखते हैं."

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तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh

जीबी रोड के सेक्सवर्कर

दिल्ली के जीबी रोड में 77 वेश्यालय हैं, जबकि करीब 4,400 महिलाएं और लड़कियां यहां बतौर यौनकर्मी काम करती हैं और करीब 1500 बच्चे यहां रहते हैं, जो इसे उत्तर भारत का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया बनाता है. गीतांजलि कहती हैं, "पहले उन्हें लगता था कि वे सिर्फ और सिर्फ सेक्स करने के लिए ही बनीं हैं लेकिन जब वे हमारे संपर्क में आई और उन्हें जब अपनी रूचि उभारने और हुनर सीखने का मौका मिला तो उनके अंदर गजब का आत्मविश्वास पैदा हुआ." संकरी गलियों और ऊंची सीढ़ियों को पार कर जब मैं गीतांजलि और उनकी टीम के साथ एक कोठे में पहुंचा तो वहां काम करने वाली एक दीदी ने गीतांजलि को बड़े प्यार से गले लगाया और अपने हाथों द्वारा बनाई गई नोट बुक के बारे में बताया. 40-45 साल की वह दीदी बेहद खुश नजर आई और उसने हमें यह भी बताया कि उसका अपना फेसबुक अकाउंट है, जिसका इस्तेमाल वह नए दोस्त बनाने के लिए करती है. कट-कथा टीम द्वारा किया गया प्रयास मुझे कोठों में काम करने वाली अनगिनत महिलाओं में नजर आया.

कट-कथा के मुताबिक इन कोठों में काम करने वाली ज्यादातर महिलाओं के पास पहचान पत्र नहीं है. कट-कथा ऐसी महिलाओं को समाज में पहचान दिलाने के लिए वोटर पहचान पत्र बनवाने में मदद कर रही है. अब तक 350 महिलाएं वोटर कार्ड बनवाने में सफल रही हैं. साथ ही संस्था भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण यूआईडी के साथ मिलकर आधार कार्ड बनवाने की दिशा में भी काम कर रही है. कट-कथा ने इन महिलाओं को आर्थिक तौर पर सशक्त करने के लिए बैंक खाता खुलवाने का भी कार्यक्रम चला रखा है. यही नहीं गीतांजलि और उनकी संस्था ने जीबी रोड पर काम करने वाली महिलाओं को एकजुट करने के लिए भी कई कार्यक्रम चलाए हैं. जीबी रोड की दुनिया बेहद अंधेरी और अकेलेपन से भरी है. समाज में इन महिलाओं को एकजुट करने के लिए कट-कथा इन्हें शिल्प कला, फोटो फ्रेम, कान के झुमके आदि बनाना सिखाती है, जिससे वह हुनरमंद हो सके और अपना आर्थिक विकास कर पाने में सफल हो.

बढता आत्मविश्वास

कट कथा के कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि आर्थिक विकास होने के बाद वह खुद इस धंधे को छोड़ पाएंगी. कट-कथा इन महिलाओं को आपस में मेल-जोल बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित भी करती है जिससे वे अपने अकेलेपन को दूर कर सके और अपना दर्द बांट सके. गीतांजलि कहती हैं, "मैं पूरी तरह से यह नहीं कह सकती कि सभी दीदीयां सशक्त हो पाईं हैं या फिर आत्मनिर्भर हो गई हैं. लेकिन मैं इतना जानती हूं कि जिन कमरों में हमारे बच्चे रहते हैं वहां उनकी माताओं में गजब का आत्मविश्वास आया है. कट-कथा के जरिए उन्हें एक तरह का सपोर्ट सिस्टम मिला है जिससे उनके अंदर आत्मविश्वास का स्तर खुद बखुद बढ़ा है. हां, हम कुछ महिलाओं की जिंदगी में बदलाव जरूर लाए हैं."

कट कथा के प्रयासों से इलाके की महिलाओं में साहस आया है और वे सही और गलत की पहचान करने लगी हैं और उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी बढ़ी है. फिलहाल कट-कथा के पास 66 बच्चे हैं जो उनके लगातार संपर्क में रहते हैं और 15 बच्चे स्कूल में आकर पढ़ाई लिखाई और कौशल विकास कार्यक्रम में हिस्सा लेते हैं. गीतांजलि कहती हैं कि जिस तरह से बच्चों को तैयार किया जा रहा है वे भविष्य में चेंज मेकर्स बनेंगे और वे ही खुद इस जीबी रोड को बदल डालेंगे. लेकिन इन प्रयासों के लिए जरूरी संसाधनों की कमी है. गीतांजलि की संस्था फिलहाल जीबी रोड पर एक कमरे में ही स्कूल और कौशल विकास कार्यक्रम चला रही है. संसाधनों की कमी उन्हें आगे जाने से रोक रही है. गीतांजलि के मुताबिक अगर सरकार जीबी रोड पर ध्यान दें और संसाधन मुहैया कराए तो वहां काम करने वाली हजारों महिलाएं उन अंधेरे कोठों से खुद बाहर आ जाएंगी और समाज में सम्मानित जिंदगी बिता पाएंगी.