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कोरियाई युद्ध में शामिल भारतीयों को स्मारक का इंतजार

१४ मार्च २०१९

कोरियाई युद्ध में शामिल हुए भारतीयों के परिवार उनके त्याग के सम्मान में एक स्मारक बनाने की मांग कर रहे हैं. युद्ध के दौरान भारत की ओर से भेजे गए पैरामेडिक्स दल ने घायलों का इलाज किया था.

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Nordkorea US-Soldaten
तस्वीर: Public Domain

अब कोरियाई युद्ध में शामिल सिर्फ पांच अधिकारी ही जीवित हैं. इन सभी की उम्र 90 से ऊपर है जिन्हें अब एक स्मारक की ताकीद है. कोरियाई युद्ध का स्मारक राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में बनाने का प्रस्ताव पाइपलाइन में है और इसके लिए चाणक्यपुरी के कौटिल्य मार्ग पर जमीन भी चिन्हित कर ली गई है. हालांकि शुरुआती आदेश के बाद परियोजना अब तक चालू नहीं हो पाई है.

कोरियाई युद्ध में हिस्सा लेने वाले 21 देशों में शामिल भारत ने गैर-लड़ाका सैन्य बल भेजा था. भारत इस युद्ध में गैर-लड़ाका बल भेजने वाले पांच देशों में शामिल था. अन्य सभी 20 देशों ने कोरियाई युद्ध का अपना-अपना स्मारक बनाया है, लेकिन भारतीयों को अब तक ये नसीब नहीं हो सका है. 

भारत में कोरियन वार वेटरन एसोसिएशन है जिसके 200 से अधिक सदस्य हैं. एसोसिएशन ने भारत स्थित कोरियाई कंपनियों के योगदान से स्मारक का निर्माण करने की योजना बनाई है. एसोसिएशन के सदस्य डॉक्टर अजय सुर इस परियोजना में काफी दिलचस्पी रखते हैं. उनके पिता कप्तान बलराज सुर उन 27 अधिकारियों में शामिल थे जिन्हें कोरियाई युद्ध में घायलों और युद्धबंदियों की देखभाल के लिए भेजा गया था.

सुर ने आईएएनएस को बताया, "70 साल हो चुके हैं और अब यह वक्त है जब हम इन सैनिकों के योगदान को पहचानें."

कोरियाई युद्ध के समय के अब तक जीवित पांच अधिकारियों में लेफ्टिनेंट जनरल एम.एल. तुली और मैथ्यू थॉमस, मेजर जनरल एस. के. शर्मा, ब्रिगेडियर कपूर सिंह अहलावत (कोरियन वार वेटरन एसोसिएशन के प्रेसिडेंट) और लेफ्टिनेंट कर्नल अंगद सिंह शामिल हैं.

कोरियाई दूतावास में राजनीतिक मामलों के मंत्री व परामर्शदाता यू चांग-हो ने आईएएनएस को बताया कि कोरिया के लिए यह काफी भावनात्मक मसला है क्योंकि भारतीय पैरामेडिक्स ने घायलों का उपचार किया था. उन्होंने कहा कि कम से कम जो अब तक जीवित हैं वे स्मारक देख पाएंगे.

भारत सरकार ने स्मारक बनाने की पेशकश की है, मगर प्रस्ताव वहां से आगे नहीं बढ़ा है. आम चुनाव की घोषणा के बाद शायद कुछ और विलंब हो सकता है, लेकिन कोरियाई युद्ध में शामिल सैनिकों के परिवारों को 2019 के अंत तक स्मारक बनने की उम्मीद है.

आईएएनएस