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क्या असर होता है हवा में नमी का कोरोना वायरस पर

२१ अगस्त २०२०

भारतीय और जर्मन शोधकर्ताओं का कहना है सूखे कमरे और वातानुकूलित जगहों पर कोरोना वायरस ज्यादा फैलता है. शोधकर्ता इमारतों के अंदर और सार्वजनिक यातायात के लिए हवा में नमी के आदर्श मानक स्थापित करने के लिए कह रहे हैं.

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तस्वीर: Reuters/F. Mascarenhas

एक भारतीय-जर्मन शोध टीम ने कहा है कि तुलनात्मक आर्द्रता यानी हवा में नमी घरों के अंदर वायरसों के प्रसार पर "मजबूत असर" डालती है, विशेष रूप से सूखे कमरों में. टीम हाल में हुए 10 अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों का मूल्यांकन कर इस नतीजे पर पहुंची है. टीम की रिपोर्ट एच1एन1 और एमईआरएस-कोव जैसे नए कोरोना वायरस से मिलते जुलते वायरसों पर पहले हुई जांचों के नतीजों पर भी आधारित थी.

इस रिपोर्ट के अनुसार, "इमारतों के अंदर कोविड-19 के हवा के जरिए प्रसार में आर्द्रता की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण लगती है." रिपोर्ट में यह अनुशंसा भी की गई है कि सार्वजनिक इमारतों के अंदर आर्द्रता कम से कम 40 प्रतिशत और अधिकतम 60 प्रतिशत होनी ही चाहिए जिससे की वहां रहने वालों के लिए वायरस के प्रसार के जोखिम को कम किया जा सके. इस टीम का नेतृत्व भारत के सेंटर फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के सुमित कुमार मिश्रा और जर्मनी के लीबनीज इंस्टीट्यूट फॉर ट्रोपोस्फियरिक रिसर्च के अल्फ्रेड वाइडेनसोलर और अजीत अहलावत कर रहे थे. 

हवा में नमी कैसे प्रसार पर असल डालती है

उनकी रिपोर्ट कहती है कि हवा में नमी वायरस के प्रसार में तीन तरह से मदद करती है: बूंदों का आकार, वायरस वाले एयरोसोल कैसे घंटों तक हवा में तैरते रहते हैं और सतहों पर गिरने के बाद भी वायरस जिंदा रहता है. ज्यादा नमी वाली जगहों पर वायरस वाली बूंदों का आकार बढ़ता है और वो जल्दी गिर जाती हैं. इस से "दूसरे लोगों के सांस के जरिए संक्रामक वायरल बूंदों को अंदर लेने की संभावना घट जाती है."

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रिपोर्ट में यह अनुशंसा भी की गई है कि सार्वजनिक इमारतों के अंदर आर्द्रता कम से कम 40 प्रतिशत और अधिकतम 60 प्रतिशत होनी ही चाहिए.तस्वीर: picture-alliance/D. Chakraborty

लेकिन कमरों के अंदर की शुष्क हवा में वाष्पीकरण की वजह से छोटी हो चुकी बूंदें हल्की हो जाती हैं और हवा में तैरती रहती हैं. रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि ये "दूसरे लोगों के वायरस को सांस के जरिए अंदर लेने या सतहों पर बैठ जाने का सर्वोत्त्कृष्ट रास्ता है". सतहों पर वायरस कई दिनों तक जिंदा रह सकते हैं. टीम का कहना है कि कमरों के अंदर तुलनात्मक आर्द्रता को 40 से 60 प्रतिशत के बीच रखने से नाक के द्वारा वायरस को सोख लेने का जोखिम भी कम होता है. अहलावत ने कहा, "शुष्क हवा हमारी नाक में म्यूकस की झिल्लियों को भी शुष्क और वायरसों के लिए प्रवेश के योग्य बनाती है."

खतरे की संभावना

वाइडेनसोलर ने चेतावनी दी कि उत्तरी गोलार्ध में आने वाली सर्दियां गर्म किए हुए कमरों में "करोड़ों लोगों" के लिए ज्यादा जोखिम ले कर आ सकती हैं, क्योंकि वातानुकुलीत उपकरण ठंडी हवा को कमरों के अंदर खींच लेते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, इस हवा को आरामदायक तापमान तक गर्म करने से "कमरों के अंदर की तुलनात्मक आर्द्रता या आरएच के स्तर को काफी नीचे ले आएगी, जिससे वहां रहने वाले लोगों के लिए अत्यंत खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो सकती है, विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान."

सिंगापुर और मलेशिया में हुए अध्ययनों का हवाला देते हुए, इन शोधकर्ताओं ने ट्रॉपिकल स्थानों के निवासियों को "अत्यंत ठंडा करने वाले उपकरणों" से बचे रहने की चेतावनी दी क्योंकि उनकी वजह से कमरों के अंदर जो शुष्क हवा आएगी वो कोविड-19 के प्रसार में सहायक होगी." अंत में, टीम ने कहा कि मानकों को सामयिक बनाने में इमारतों के निरीक्षकों और सरकारों की "अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका" होगी.

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ज्यादा नमी वाली जगहों पर वायरस वाली बूंदों का आकार बढ़ता है और वो जल्दी गिर जाती हैं.तस्वीर: Reuters/H. Kamani

सीएसआईआर के सुमित मिश्रा ने कहा, "अधिकारियों को भविष्य के दिशानिर्देशों में आर्द्रता को शामिल कर लेना चाहिए." रिपोर्ट में कहा गया कि इससे "कोविड-19 का ही नहीं बल्कि भविष्य में होने वाले वायरल के प्रकोप का असर भी कम होगा." फिलहाल के लिए, टीम के अनुसार, मास्क पहनने के अलावा, "सामाजिक दूरी बनाए रखनी चाहिए, और एक कमरे में जितने कम लोग हो सकें उतना अच्छा."

रिपोर्ट: ईयन पी जॉनसन, सीके/एए 

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