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कोलोन में हिटलर की जेल

१ मई २०१०

जर्मनी के इतिहास का सबसे काला अध्याय था हिटलर का शासनकाल. केवल यहूदियों पर ही ज़ुल्म नहीं हुए थे. हर उस व्यक्ति पर अत्याचार किए गए जिस पर हिटलर को शक हुआ. कोलोन की एक जेल इन्हीं अत्याचारों की कहानी सुनाती है.

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रिहाइशी इलाके में बनाई गई जेलतस्वीर: DW

एल डी हाउस की अंधेरी कोठरियों में कभी हफ्ते तो कभी महीने बिताते लोगों ने दीवारों पर अपने प्रियजनों के नाम सन्देश लिखे. किसी ने अपनी मां का चित्र बनाया तो किसी ने अपने बच्चों के नाम लिखे. कौन सा दिन है यह पता करने के लिए हर रोज़ दीवार पर एक तारीख लिख कर उसे काटा. एक ने लिखा "आज 18 अक्टूबर है, मैं पिछले 26 दिनों से यहां कैद हूं", किसी और ने लिखा "जेल - क्या शब्द है - जब इस के अन्दर होते हैं तब इसका मतलब समझ आता है", और भी किसी ने "जब कोई तुम्हारे बारे में नहीं सोचता, तब तुम्हारी मां तुम्हारे बारे में सोच रही होती है". ऐसे ही और कोई सन्देश आज भी यहां देखे जा सकते हैं.

शहर के बीचोबीच बनाई जेल

इस जगह का नाम एल.डे हॉउस या कहिए एल.डी भवन इस घर के मालिक लोकल डामन के नाम पर रखा गया. लोकल डामन ने हिटलर के शासन में आने से पहले यह घर बनवाया था. बाद में आर्थिक संकट के चलते उसे यह घर छोड़ना पड़ा और हिटलर के आने के बाद उस समय की ख़ुफिया पुलिस गेहाइमे स्टाट्सपोलित्साए या गेस्टापो ने इसे अपना मुख्यालय बना लिया.

NS-Dokumentationszentrum in Köln
जेल के अन्दर की तस्वीरतस्वीर: DW

यहां आस पास रिहाइशी इलाका है और पास ही में कोलोन का सबसे बड़ा बाज़ार है. साथ ही कोलोन का सबसे बड़ा गिरजा घर जो केओल्नर डोम के नाम से प्रसिद्ध है वो भी पास ही है. इसीलिए उस समय गली से गुज़रते वक़्त लोग इस घर के आंगन को देख सकते थे जहांकैदियों को जान से मारा जाता था. साथ ही जेल की खिड़कियों पर कोई कांच नहीं था, इसलिए कैदियों के चीखने की आवाजें भी साफ़ सुनाई देती थी. यहां तक कि गली से गुज़रते वक़्त खिड़कियों से अन्दर देखा भी जा सकता था. काफी समय तक यह तर्क दिया जाता रहा कि हिटलर ने जो भी किया वो शहरों से बाहर इसलिए यहां के लोगों को कुछ पता ही नहीं था. लेकिन यहां कि स्थिति से तो यह साफ़ हो ही जाता है कि उस समय जर्मन समाज ने भी हिटलर का साथ दिया था.

शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना

गेस्टापो ने कैदखाने में ऐसी छोटी छोटी कोठरियां बनाईं जिनमें मुश्किल से सिर्फ एक बिस्तर ही लग सकता था. एक के ऊपर एक लोहे के दो बिस्तर लगाए गए ताकि हर कोठरी में दो कैदी रह सकें लेकिन इन छोटी सी कोठरियां में कभी पंद्रह तो कभी कभी तीस कैदियों को रखा जाता था. शौच के लिए भी बाहर जाने की अनुमति नहीं थी. नहाने की अनुमति भी तब मिलती थी जब किसी रोग के फैलने का दर महसूस हो.

प्रताड़ना के दौरान एक डॉक्टर भी मौजूद होता था जो इस बात का ध्यान रखता था कि किसी की जान ना चली जाए क्योंकि उसके लिए ऊपर से ऑर्डर आना ज़रूर होता था. गर्भवती महिलाओं को भी केवल प्रसव के लिए ही अस्पताल भेजा जाता था और फिर उन्हें बच्चे से दूर कर दिया जाता था.

खौफ पैदा करने की कोशिश

यहां कैद किए गए लोग कोई अपराधी नहीं थे. उन्होंने बस यही गुनाह किया था कि हिटलर को उन पर शक था कि शायद वो उस के खिलाफ किसी तरह की साजि़श कर रहे हैं या फिर किसी भी तरह का खतरा बन सकते हैं. ज़्यादातर लोग यहूदी भी नहीं थे. वे बस आम नागरिक थे. इन में से कुछ लोग नेता थे, कुछ वकील तो कुछ कारोबारी. ज़्यादातर लोगों को बस नोटिस दे कर सिर्फ पूछ ताछ के नाम पर यहां बुलवाया जाता था और यहां आने के बाद उन्हें कैद में डाल दिया जाता था.

NS-Documentationszentrum
हिटलर के समय के अहम दस्तावेज़तस्वीर: Isha Bhatia

यह उन पर दबाव बनाने के लिए किया जाता था. कई बार तो जिन लोगों पर शक होता था उनके बच्चों को यहां लाकर रखा जाता था जिस से उनके मां बाप पर दबाव बन सके और वो गेस्टापो के आगे अपने घुटने टेक दें. कुछ हफ़्तों उन्हें यहां रखने के बाद यह फैसला लिया जाता था कि आगे उनके साथ क्या करना है - मौत की सज़ा, कोई अन्य कैदखाना या फिर यातना शिविर.

आज यह जगह एक संग्रहालय है. यहां नाज़ी समय की तसवीरें और अहम दस्तावेज़ रखे हैं. जेल को आज भी वैसा ही रखा गया है ताकि लोग यहां आ कर यह सब देखें और महसूस कर सकें कि वो वक़्त कितना दर्दनाक था और इस बात को समझ पाएं कि किसी भी तरह की नफरत गलत है.

रिपोर्ट -ईशा भाटिया

सम्पादन - आभा मोंढे