1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या बस 50 दिनों तक शरीर में रहती हैं कोविड एंटीबॉडी?

चारु कार्तिकेय
२८ अगस्त २०२०

एक शोध में सामने आया है कि शरीर में एंटीबॉडी बनने के बाद, वो संभवतः सिर्फ 50 दिनों तक ही शरीर में रहती हों. संभव है कि भविष्य में लोगों को कोविड से बचाने के लिए वैक्सीन की एक खुराक की जगह कई खुराकें देनी पड़ें.

https://p.dw.com/p/3hcBG
Berlin Corona-Proteste | Fake-Maske aus Netz
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Soeder

कोरोना वायरस से इम्युनिटी को लेकर कई दिनों से चर्चा चल रही है और वैज्ञानिक इस सवाल का पुख्ता जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर एक बार किसी के शरीर में कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी बन जाएं तो क्या उसके बाद उसे वायरस से संक्रमण नहीं होगा? लेकिन वायरस के दुनिया में फैलने के लगभग आठ महीने पूरे होने के बाद भी आज तक महामारी से जुड़े जिन सवालों का जवाब नहीं मिल पाया है, यह सवाल भी उन्हीं सवालों में शामिल है.

अब मुंबई में हुए एक शोध में सामने आया है कि शरीर में एंटीबॉडी बनने के बाद, वो संभवतः सिर्फ 50 दिनों तक ही शरीर में रहती हों. यह शोध जेजे अस्पताल समूह ने अपने 801 स्वास्थ्यकर्मियों पर सेरो सर्वेक्षण के जरिए किया. इन कर्मचारियों से कम से कम 28 को अप्रैल-मई में कोविड-19 हुआ था और सात सप्ताह बाद जून में किए गए सेरो सर्वेक्षण में इनके शरीर में कोई एंटीबॉडी नहीं मिली.

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस शोध के नतीजे इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ में सितंबर में छपने वाले हैं. इन कर्मचारियों में 34 ऐसे भी थे जिन्हें तीन सप्ताह और पांच सप्ताह पहले कोविड हुआ था. उनमें से तीन सप्ताह पहले वाले समूह में 90 प्रतिशत कर्मियों में एंटीबॉडी मिली लेकिन पांच सप्ताह पहले वाले समूह में सिर्फ 38.5 प्रतिशत में एंटीबॉडी मिली.

Kirgistan Corona-Pandemie | Temporäre Klinik
किर्गिस्तान के बिश्केक में क्लिनिक बने एक हॉल में आराम करते कोरोना के मरीज.तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/V. Voronin

शोधकर्ताओं का कहना है कि ये नतीजे ये संकेत देते हैं कि शरीर में एंटीबॉडी समय के साथ घटती जाती हैं और वैक्सीन बनाने की रणनीति को इस तथ्य की नई रोशनी में देखना चाहिए. उनका कहना है कि संभव है कि भविष्य में लोगों को कोविड से बचाने के लिए वैक्सीन की एक खुराक की जगह कई खुराकें देनी पड़ें.

लेकिन कई विशेषज्ञ अभी इन बातों को नहीं मान रहे हैं और कह रहे हैं कि अभी और अध्ययन की जरूरत है. कुछ जानकारों का कहना है कि यह भी जानना जरूरी है कि अध्ययन में शामिल हुए पहले संक्रमित हो कर ठीक हो चुके लोगों में संक्रमण के लक्षण भी आए थे या उन्हें बिना लक्षणों वाला संक्रमण हुआ था? ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ अध्ययन यह भी दिखाते हैं कि बिना लक्षणों वाले मरीजों में एंटीबॉडी का स्तर वैसा नहीं होता जैसे उनमें होता है जिन्हें लंबे समय तक या गंभीर संक्रमण हुआ हो.

एक और बात यह भी है कि कोविड संक्रमण से इम्युनिटी की प्रक्रिया को भी लेकर काफी चर्चा चल रही है. शोधकर्ता यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि शरीर को कोविड के खिलाफ इम्युनिटी इम्यूनोग्लोबिन-जी नामक एंटीबॉडी से मिलती है या टी-सेल से. इम्यूनोग्लोबिन-जी मानव शरीर में पाया जाने वाला सबसे आम एंटीबॉडी है, जबकि टी-सेल इम्यून तंत्र में पाई जाने वाली एक कोशिका है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि संभव है कि कोविड के खिलाफ इम्युनिटी बनाने में इम्यूनोग्लोबिन-जी से ज्यादा टी-सेल की भूमिका हो.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी