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समाज

कौन होते हैं डोम राजा जो वाराणसी में मोक्ष दिलाते हैं

ऋषभ कुमार शर्मा
२६ अप्रैल २०१९

डोम लोगों की जिंदगी लाशों के साथ शुरू होती है और लाशों के साथ खत्म हो जाती है. वो सैंकड़ो साल से ऐसी जिंदगी जी रहे हैं. ये सब कैसे शुरू हुआ और कब तक ऐसा चलता रहेगा, कहना मुश्किल है.

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Indien Varasi - Holz zur traditionelle Einäscherung
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Faget

वाराणसी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है. वरुणा और अस्सी. ये दो नदियां थीं जिनके बीच में एक शहर बसा हुआ था जिसका नाम आनंदवन था. समय के साथ यह नाम बदल गया. ये दोनों नदियां आगे जाकर गंगा में मिल जाती हैं. ऐसे ही इनके नामों को मिलाकर वाराणसी बना. वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर रहते हैं जगदीश राजा चौधरी.

जगदीश राजा चौधरी डोम समुदाय से आते हैं जो वाराणसी में हिदुओं का अंतिम संस्कार करवाने का काम करते हैं. डोम समुदाय अनुसूचित जाति में आता है. वाराणसी में गंगा किनारे कई घाट बने हुए हैं. इनमें दो घाटों पर सिर्फ अंतिम संस्कार किया जाता है. एक घाट है मणिकर्णिका घाट जिसका नाम झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के नाम पर है.

लक्ष्मी बाई वाराणसी में पैदा हुई थीं और उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था. दूसरा राजा हरीशचंद्र घाट है. राजा हरीशचंद्र को भारत की एतिहासिक कथाओं में हमेशा सच बोलने और धर्म के रास्ते पर चलने वाला राजा बताया जाता है. इन दोनों घाटों पर अंतिम संस्कार करवाने का काम सिर्फ डोम जाति के लोग करवाते हैं. इन्हें डोम राजा भी कहा जाता है.

Indien Sterbedorf
वाराणसी का मणिकर्णिका घाट.तस्वीर: DW/B. Das

राजा से अंतिम संस्कार के काम तक

हिन्दू पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान शिव और पार्वती एक बार वाराणसी आए. पार्वती मणिकर्णिका घाट के पास स्नान करने लगीं. उनका एक कुंडल गिर गया जिसे कालू नाम के एक राजा ने अपने पास छिपा लिया. कई लोग कालू को राजा की जगह एक ब्राह्मण बताते हैं. शिव और पार्वती को तलाश करने पर यह कुंडल नहीं मिला तो शिव ने गुस्से में आकर कुंडल को अपने पास रखने वाले को नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया. इस श्राप के बाद कालू ने आकर शिव से क्षमा याचना की. शिव ने नष्ट होने के श्राप को वापस लेकर उसे श्मशान का राजा बना दिया. उसे श्मशान में आने वाले लोगों की मुक्ति का काम करवाने और इसके लिए उनसे धन लेने का काम दिया गया. कालू के वंश का नाम डोम पड़ गया. डोम में हिन्दू मान्यताओं के पवित्र शब्द ओम की ध्वनि होती है.

डोम जाति से जुड़ी एक पौराणिक कथा राजा हरीशचंद्र की भी है. राजा हरीशचंद्र की कोई संतान नहीं थी. भगवान वरुण के आशीर्वाद से उनके रोहिताश्व नाम का एक बेटा हुआ. हरीशचंद्र बहुत दानी हुआ करते थे. एक ऋषि विश्वमित्र ने उनकी परीक्षा लेने के लिए उनसे उनका पूरा राजपाठ दान में मांग लिया. हरीशचंद्र ने इसे दान दे दिया. इसके बाद भी विश्वमित्र ने और दान मांगा तो हरीशचंद्र ने खुद को और अपनी पत्नी और बेटे को भी बेच दिया. हरीशचंद्र ने खुद को वाराणसी के एक डोम को बेचा और पत्नी और बेटे को एक ब्राह्मण को. उनके बेटे रोहिताश्व की सांप के काटने से मौत हो जाती है. उनकी पत्नी जब बेटे को अंतिम संस्कार के लिए लेकर जाती है, तो वो अपने बेटे के अंतिम संस्कार के लिए भी पैसा मांगते हैं. इस तरह की पौराणिक कथाएं डोम जाति के बारे में प्रचलित हैं.

आधुनिक इतिहास में माना गया कि डोम हिन्दू वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर आने वाले शूद्र वर्ण की एक जाति है. इनका काम मृतकों का अंतिम संस्कार करवाना होता है. यह परंपरा अभी भी चलती आ रही है.

वाराणसी से क्यों है खास लगाव

हिन्दू परंपराओं के मुताबिक वाराणसी भगवान शिव द्वारा बसाया गया एक शहर है. यहां पर मरने और अंतिम संस्कार होने वाले व्यक्ति को मोक्ष मिल जाता है. ऐसे में बहुत सारे हिन्दू मरने के बाद वाराणसी में अंतिम संस्कार करवाना चाहते हैं. वाराणसी में डोम जाति के लोग ये काम करते हैं. हिन्दू धर्म में अंतिम संस्कार के लिए लाश को जलाया जाता है. वाराणसी में डोम ही चिता जलाने के लिए संतान के हाथ में आग देते हैं. साथ ही अंतिम क्रियाकर्म के लिए होने वाला सारा काम डोम करते हैं.

Indien Fluss Ganges
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

इस समुदाय के पुरुष ही यह काम करते हैं. महिलाएं इस काम में नहीं आती हैं. अंतिम संस्कार करवाने के लिए इन्हें रुपये मिलते हैं. वाराणसी में इन दोनों घाटों के पास डोम समुदाय की बस्ती है. अंतिम संस्कार का काम दिन और रात दोनों समय होता है. ऐसे में वाराणसी में डोम समुदाय के लोग शिफ्ट लगाकर काम करते हैं. वाराणसी की कुछ पुरानी पहचानों में डोम राजा भी शामिल हैं. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी वाराणसी के साथ अपना भावनात्मक जुड़ाव दिखाने के लिए उन्हें प्रस्तावक बनाकर साथ लेकर गए.

आसान नहीं है डोम होना

डोम का काम अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को करना है. उनका समय सिर्फ लाशों के साथ बीतता है. लाश अपने आप में ही एक नकारात्मक चीज है. ऐसे में इसके साथ दिनभर रहना बेहद मुश्किल है. साथ ही, इन्हें ये सुनिश्चित करना होता है कि लाश का हर एक अंग पूरी तरह जल गया हो. कई बार अधजले अंगों को अपने हाथ से ठीक जगह रख पूरा जलाया जाता है. डोम लोग आग के साथ काम करते हैं. ऐसे में उनके लिए काम करते हुए जलना बहुत आम है.

डोम समुदाय सामाजिक रूप से बेहद पिछड़ा हुआ है. अनुसूचित जाति में आने के बावजूद ये आरक्षण का कोई लाभ नहीं उठा पाते. डोम समुदाय को समाज में अभी भी अस्पृश्य या अछूत समझा जाता है. ऐसे में अगर इनके बच्चे स्कूल जाते हैं, तो उन्हें बाकी बच्चों से अलग बिठाया जाता है. उनके पानी पीने, खाना खाने के अलग बर्तन होते हैं. डोम लोगों को ऐसे सामाजिक भेदभाव का सामना रोज करना पड़ता है. शिक्षा ना मिल पाने की वजह से इनके सामाजिक स्तर में कोई सुधार नहीं हो पा रहा है.

Indien Varanasi
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay

डोम लोगों का शराब और गांजा पीना बेहद आम है. इनका मानना होता है कि बिना नशा किए ये अपना काम नहीं कर सकते. स्थिर दिमाग के साथ हमेशा लाशों के साथ रहना संभव नहीं है. ऐेसे में ये नशा कर अपने आप को मानसिक अचेतना की स्थिति में रखते हैं और अपना काम करते हैं. घर की महिलाएं बस घर का काम करती हैं. कम उम्र में ही इनकी शादी हो जाती है. परिवार नियोजन जैसी बातें इनके पास नहीं पहुंच पाती हैं. ऐसे में इनके अधिक संख्या में बच्चे होना सामान्य है. इनके घरों की स्थिति भी कोई अच्छी नहीं होती. ये छोटी उम्र से ही लड़कों को इस काम को करवाने की आदत डालते हैं. लड़कियों को घर का कामकाज सिखाकर उनकी शादी कर दी जाती है. घर में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी काम आती है जो अंतिम संस्कार के बाद बची होती है.

वाराणसी के हरीशचंद्र घाट पर अब एक बिजली से काम करने वाला शवदाह गृह बन गया है. इसमें बिजली के झटकों से शव को जलाया जाता है. इससे अब डोम लोगों के काम में गिरावट आई है. कुछ समय पहले हुए प्रदर्शन के बाद डोम लोगों के लिए लाश जलाने की फीस भी तय कर दी गई. ऐसे में अब उनके पास अब जीवनयापन के तरीके नहीं बचे हैं. प्रधानमंत्री द्वारा एक डोम को प्रस्तावक बनाना एक अच्छी बात है. अब उन्हें प्रयास करना चाहिए कि इस समुदाय को कैसे मुख्यधारा में लाया जा सके जिससे वो एक आम जिंदगी जी सकें. उन्हें कम से कम संविधान द्वारा पढ़ाई और नौकरी में मिले आरक्षण का लाभ भी मिल सके.