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क्या करतारपुर गलियारा खोलने में कोई साजिश है?

६ नवम्बर २०१९

भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक करतारपुर गलियारे के खुलने से ठीक दो दिन पहले पाकिस्तान की सरकार ने एक वीडियो जारी किया है जिसमें खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन के बैनर और मारे गए 3 अलगाववादियों को दिखाया गया है.

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Pakistan Eröffnung des  Kartarpur-Korridors
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

पाकिस्तान की सरकार की ओर से इस मौके पर जारी वीडियो का मकसद तो गलियारे के खुलने का उत्सव मनाना है, पर इसमें खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन के बैनर और सुरक्षाबलों के हाथों मारे गए तीन अलगाववादियों को दिखाए जाने से पूरी परियोजना को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. 

चार मिनट लंबे इस वीडियो में कुछ सिख श्रद्धालु पाकिस्तान में एक गुरूद्वारे की तरफ जाते दिखाई दे रहे हैं और पृष्ठभूमि में दिखाई दे रहा है एक पोस्टर जिस पर 'खालिस्तान 2020' लिखा है और साथ में खालिस्तान अलगाववादी जरनैल सिंह भिंडरांवाले, मेजर जनरल शाबेग सिंह और अमरीक सिंह खालसा को दिखाया गया है.

भिंडरांवाले दमदमी टकसाल नाम के संगठन का मुखिया था जिसने सिखों के लिए एक अलग देश की मांग करने वाले आंदोलन को हिंसक रूप दिया था. मेजर जनरल शाबेग सिंह भारतीय सेना के अधिकारी थे जो बाद में भिंडरांवाले के साथ जुड़ गए थे. अमरीक सिंह खालसा भी इसी आंदोलन का एक नेता था.

Indien Punjab Dera Baba Nanak | Indien und Pakistan wollen abkommen zum Kartarpur Grenzkorridor unterzeichnen
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

जब पाकिस्तान ने अचानक से करतारपुर गलियारा खोलने की बात की, तो भारत में लोग चौंक गए और इसे शक की नजर से देखने लगे. भारतीय पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने भी इसे खालिस्तानी आंदोलन को फिर खड़ा करने की पाकिस्तान की साजिश बताया. दोनों देश गलियारे पर आगे बढ़ने लगे और अंत में अमरिंदर सिंह भी इस विमर्श में शामिल हो गए. पर इस नए वीडियो के आने के बाद वे फिर अपनी बात दोहराने लगे हैं और पाकिस्तान से सतर्क रहने की अपील कर रहे हैं. 

पूर्व विदेश सचिव शशांक ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि अमरिंदर सिंह जानकार हैं, हालात को अच्छे से समझते हैं, और इसलिए उनकी बात को नकारा नहीं जा सकता है. उन्होंने कहा, "भारत को सावधान रहना चाहिए. लेकिन इसके साथ ही ख समुदाय की भावनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए. पाकिस्तान जरूर चाहेगा की दुनिया भर में मौजूद सिख समुदाय के लोगों को वो भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सके. पर पाकिस्तान की हर कोशिश का भारत नकारात्मक जवाब नहीं दे सकता है". 

वहीं कुछ समीक्षक इस पूरी परियोजना को ही एक त्रासदी मानते हैं और कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को इसके लिए हामी भरनी ही नहीं चाहिए थी. भारत-पाकिस्तान मामलों के जानकार और आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो सुशांत सरीन उनमें से एक हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि वो शुरू से इस परियोजना के आलोचक रहे हैं क्योंकि यह बात पूरी तरह साफ है कि पाकिस्तान पिछले कुछ सालों से लगातार खालिस्तान आंदोलन को हवा देने की कोशिश कर रहा है.

Öffnungszeremonie Kartarpur-Korridor zwischen Indien und Pakistan
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

सरीन ने कहा, "ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, अमेरिका जैसे देशों में खालिस्तानी ताकतों को बढ़ावा देने का काम पाकिस्तान पिछले 20-30 सालों से करता आया है और पिछले कुछ सालों में उसकी ये कोशिशें और तेज हो गई हैं". उन्होंने कहा कि इस परियोजना पर शक का एक बड़ा कारण यह भी है कि इसकी घोषणा अचानक कर दी गई थी. उन्होंने यह भी कहा कि खुद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का बयान आया था कि करतारपुर गलियारे के रूप में पाकिस्तान ने एक गुगली फेंकी थी और भारत सरकार उसे खेल कर खुली आंखों से पाकिस्तान के जाल में गिर गई.

खालिस्तान  आंदोलन भारत के सबसे खतरनाक आंदोलनों में से रहा है जिसने पंजाब को आतंकवाद की ऐसी आग में झोंका जो 70, 80 और 90 के दशक तक जलती रही और जिसने हजारों जानों की आहूति ली थी. इनमे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी शामिल हैं जिनकी हत्या के बाद सिखों के खिलाफ पूरे देश में भयानक दंगे भी भड़क उठे थे जिसमे और भी कई जानें गईं.

90 के दशक में बड़ी मुश्किल से भारत ने इस आंदोलन पर काबू पाया और इसीलिए जब भी इस से जुड़ी कोई भी सुगबुगाहट होती है तो भारतीय रक्षा तंत्र में लोगों के कान खड़े हो जाते हैं. खालिस्तान रेफेरेंडम 2020 विदेश में रहने वाले कुछ सिख संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रम है जिसकी मदद से खालिस्तान में विश्वास रखने वाले लोग एक अनौपचारिक जनमत संग्रह में हिस्सा ले सकेंगे. 

Öffnung Kartarpur-Korridor zwischen Indien und Pakistan
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Ali

वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर का कहना है कि इस डर को भारत की सुरक्षा एजेंसियों और उन लोगों ने व्यक्त किया था जो मानते हैं कि इस परियोजना को शुरू करने के पीछे पाकिस्तान के इरादे अच्छे नहीं हैं. संजय कपूर कहते हैं, "उन्हें ये लगता है कि ऐसे समय में जब रेफेरेंडम 2020 होने वाला है, तब पाकिस्तान सिखों और हिन्दुओं के बीच की दरारों का लाभ उठाना चाहता है. ये बात कुछ हद तक ठीक भी है. पाकिस्तान के इस निर्णय को ही ले लीजिये जिसके तहत करतारपुर जाने वाले सिर्फ सिख श्रद्धालुओं को पासपोर्ट रखने की आवश्यकता नहीं होगी. लेकिन मेरा ये मानना है कि इसे सेंट्रल नैरेटिव नहीं बनाना चाहिए."

इन सभी आशंकाओं और विवादों के बीच गलियारे का खुलना अभी तक तय माना जा रहा है. आठ नवम्बर को भारत की तरफ से इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी करेंगे और उसके अगले दिन पाकिस्तान की तरफ से प्रधानमंत्री खान उद्घाटन करेंगे. 

इस बीच कुछ मुद्दों पर गतिरोध भी बना हुआ है. भारत का कहना है  कि पाकिस्तान जाने वाले लोगों की जो सूची भारत ने भेजी थी उस पर पाकिस्तान की तरफ से स्वीकृति अभी तक नहीं आई है.

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