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समाज

नया सरोगेसी कानून है किसके हक में

फैसल फरीद
२० दिसम्बर २०१८

भारत में कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह से लगी रोक के कारण कितना सुधरेगा किराए पर कोख देने का कारोबार.

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Indien Leihmutterschaft - Surrogacy Centre India (SCI) clinic in Neu-Delhi
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain

भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2016 को ध्वनि मत से पारित कर दिया गया है. अब भारत में कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह से रोक लग गयी है. अब कोई भी विदेशी, नॉन रेजिडेंट इंडियन, पर्सन्स ऑफ इंडियन ओरिजिन, ओवरसीज सिटीजंस ऑफ इंडिया कोई भी भारत में सरोगेसी के लिए अधिकृत नहीं हैं.

भारत में सरोगेसी मदरहुड काफी तेजी से फैला है. बड़े शहरों से लेकर बॉलीवुड तक में सरोगेसी मदरहुड का ट्रेंड सा चल निकला था. बहुत जगह तो ये एक कमर्शियल बिजनेस बन गया था, जहां पर विदेशी और एनआरआई दंपत्ति सरोगेट मदर का सहारा लेने भारत आने लगे थे. अब तो खुले आम फेसबुक पर विज्ञापन आते हैं, जिसमें सरोगेट मदर के लिए पांच लाख देने तक की बात होती.

वैसे ये विधेयक भारत में 21 नवम्बर 2016 में लोक सभा में रखा गया लेकिन इसको स्टैंडिंग समिति को 12 जनवरी 2017 को भेजा गया. समिति ने अपनी रिपोर्ट 10 अगस्त 2017 को प्रस्तुत की और फिर 19 दिसम्बर 2018 को ये बिल पास हो गया.

सरोगेसी बिल वरदान या अभिशाप

इसमें मत दोनों प्रकार के हैं. दिल्ली में डॉ अर्चना धवन बजाज अपना नर्चर क्लीनिक सेंटर चलती हैं. यहां इन्होंने नियमानुसार बहुत से सरोगेट बच्चों को जन्म दिलवाया है. वे कहती हैं, "आप ऐसा नहीं कह सकते कि सिर्फ शोषण ही होता है. अगर किसी मूवी में किसी सीन से आपको प्रॉब्लम है तो आप उस सीन को हटवाते हैं ना कि पूरी फिल्म को. अगर कुछ ऐसा था तो आपको इसको अच्छे से रेगुलेट करना चाहिए था.”

डॉ अर्चना बताती हैं कि उनके पास असंख्य उदहारण हैं जहां कमीशनिंग पेरेंट्स ने सरोगेट मदर के लिए काफी कुछ किया है. वे कहती हैं, "कई पेरेंट्स ने सरोगेट मदर के बच्चों की पूरी पढ़ाई का ज़िम्मा लिया है. किसी ने सरोगेट मदर के पति को नौकरी लगवा दी है. किसी ने उनको छोटा घर ले दिया है. कई ने ट्रस्ट बना कर उनका पुनर्वास कर दिया है.”

डॉ अर्चना के अनुसार, ऐसी बहुत महिलाएं हैं जो सरोगेट मदर बनीं और इससे उनको भी फायदा हुआ और वे खुश हैं.

लोगों के मीठे-कड़वे अनुभव

दिल्ली की ही रहने वाली नीता (बदला हुआ नाम) के जुड़वां बच्चे हैं, जो उनकी शादी के नौ साल के बाद पैदा हुए. वे बताती हैं, "नए बिल के हिसाब से अब सरोगेसी होगी ही नहीं. अब आपने इसे खत्म कर दिया है.” अपने बारे में बताते हुए वे कहती हैं कि शादी के पांच साल तक उन्होंने कोशिश की लेकिन एंडोमेटरियोसिस की वजह से सफलता नहीं मिली. आईवीएफ भी फेल हो गया था.

फिर शादी के नौ साल के बाद सरोगेट मदर का सहारा लिया. वो बताती हैं, "हमारा और सरोगेट मदर की फैमिली का आमने सामने इंटरव्यू हुआ. हमने हर महीने का खर्चा, मेडिकल बिल, रहना, खाना सब का इन्तजाम किया. जब सब सफलतापूर्वक हो गया, तब मैंने उसको जितना तय हुआ था उससे दोगुना दिया. आज भी वो सिलिगुड़ी में रहती है और मैं उससे संपर्क में हूं. मैं अपने बच्चों को बड़े होने पर बिल्कुल बताउंगी कि उनकी सरोगेट मदर कौन है. मैं मां नहीं बन सकती थी उसकी वजह से मां बन गयी.”

नीता कहती हैं कि "नए बिल में प्रावधान कर दिया है कि सिर्फ करीबी रिश्तेदार ही सरोगेट मदर बन सकती है जो कि अब संभव नहीं है. शायद ही किसी की सिस्टर, मदर सरोगेसी के लिए रेडी हो क्यूंकि मेरी सिस्टर की तो शादी भी नहीं हुई थी और मैं कहां जाती." वे कहती हैं, "ये एक सीधा सा बिजनेस प्रपोजल था. सरोगेट मदर स्वस्थ थी मैं नहीं थी. उसने पहली बार में कर लिया. उसके पहले से बच्चे थे. उसको घर बनवाना था और हमने इसका पेमेंट किया.”

शोषण की शिकार भी

वहीं दूसरी ओर लखनऊ में डॉ नीलम सिंह ने इस बिल का स्वागत किया है. उनके अनुसार सरोगेट मदर के नाम पर शोषण बहुत होता है. डॉ नीलम बताती हैं, "हम लोगों ने साउथ दिल्ली के एक मशहूर क्लीनिक के बारे में पता किया. वहां बहुत विदेशी कपल सरोगेट मदर के लिए आए थे. ऐसी महिलाओं को कोठियों में रखते थे और सरोगेट मदर के रूप में काम लिया जाता था. ऐसा ही कोलकाता में पता चला. यहां लखनऊ में भी एकाध जगह ऐसा देखने को मिला. हम लोगों ने अपनी 2009 की रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपी. अच्छा है कि सरकार ने इस दिशा में काम तो किया. सरोगेसी प्रक्रिया से जुड़ी तमाम शोषण की कहानियों पर रोक तो लगेगी.”

डॉ नीलम सरोगेसी से जुड़े हुए एग डोनेशन के ट्रेंड के बारे में कहती हैं, "ये दोनों जुड़े हुए हैं. तमाम क्लीनिक ऐसे ही चलते हैं. महिलाओं का सीधा शोषण उनका अंडा निकाल कर किया जाता है, जिसको डोनेशन का नाम दे देते हैं.”

सरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2016 के मुख्य बिंदु

सबसे महत्वपूर्व ये है कि अब कोख बेची नहीं जा सकेगी. कमर्शियल सरोगेसी पर पूरी तरह से रोक लग गई है. यानि इसमें पैसों का किसी तरह का लेनदेन नहीं हो सकेगा. इसके अलावा सरोगेट मदर करीबी रिश्तेदार होनी चाहिए और वह भी सिर्फ एक ही बार सरोगेट मदर बन सकती हैं.

शादीशुदा दंपत्ति को ही सरोगेसी की सुविधा मिलेगी और उनकी शादी के कम से कम पांच साल पूरे हो जाने चाहिए. सिंगल, अविवाहित जोड़े, होमोसेक्सुअल, लिव इन में रहने वाले को सरोगेसी की इजाजत नहीं है, सरोगेट की उम्र 25-35 साल होनी चाहिए और उसके खुद का भी कम से कम एक बच्चा होना चाहिए.

सरोगेसी बिल के नियमों को तोड़ने पर 5 से 10 साल तक की सजा का प्रावधान है. सारे रिकॉर्ड सरोगेसी क्लीनिक को 25 साल तक रखने होंगे.

सरोगेसी के विकल्प

दुनिया के अन्य देशों में कुछ और विकल्पों पर काम हो रहा है लेकिन अभी भारत में ये संभव नहीं हैं. डॉ अर्चना के अनुसार विकल्प के तौर पर यूटरस ट्रांसप्लांट यानि गर्भाशय बदला जा सकता है. कुछ रिसर्चों में स्टेम सेल का प्रयोग यूटरस से संबंधित बीमारियों के लिए किया जा सकता है. लेकिन ये अभी प्रयोग के स्तर पर हैं, काफी महंगे हैं और अभी इनका क्लीनिकल ट्रायल से बाहर आना बाकी है.