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क्या पीछे हट रहे हैं शरणार्थियों के मददगार?

१२ नवम्बर २०१५

अभूतपूर्व शरणार्थी संकट झेल रहे कई यूरोपीय देश जल्द ही विकास कार्यों के लिए दी जाने वाली विदेशी सहायता राशि में कटौती करने जा रहे है. अबाध गति से यूरोप पहुंच रहे शरणार्थियों से निपटने के लिए नए रास्ते निकालने की कोशिशें.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Gouliamaki

आने वाले संसद सत्र में फिनलैंड, नॉर्वे और स्वीडन जैसे उदार दानकर्ता यूरोपीय देश गरीब देशों के विकास के लिए दी जाने वाली अपनी दान राशि में कटौती कर अपने देशों में बड़ी संख्या में पहुंचे शरणार्थियों की देखभाल के लिए खर्च करना चाहते हैं. डेनमार्क में तो विदेशी सहायता में भारी कमी करने के प्रस्ताव को मंजूरी भी मिल गई है.

विकास के नाम पर यूरोपीय देशों की आर्थिक मदद में कटौती की सूचना से संयुक्त राष्ट्र में खलबली मच गई. बुधवार को इस पर प्रतिक्रिया देते हुए महासचिव बान की-मून ने कहा है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे गंभीर शरणार्थी संकट का सामना कर रहे यूरोपीय देशों को ऐसा "बेहद जरूरी आधिकारिक विकास सहायता की ओर उनकी प्रतिबद्धता को कम किए बिना करना चाहिए."

यूरोपीय संघ के नेता माल्टा की राजधानी वालेटा में ईयू-अफ्रीका सम्मेलन में अफ्रीकी राष्ट्राध्यक्षों से मिलकर शरणार्थी संकट के निपटने के लिए एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. सीरियाई गृहयुद्ध के कारण अब तक लाखों लोग अपना घर छोड़कर यूरोप के कई देशों में पहुंच चुके हैं. युद्ध की स्थिति बरकरार रहने के कारण आप्रवासन लगातार जारी है और कई यूरोपीय देश इतनी बड़ी संख्या में पहुंच रहे आप्रवासियों को संभाल पाने में असमर्थता जता रहे हैं.

जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल अपनी आप्रवासी नीति के चलते घरेलू मोर्चे पर पहले ही काफी दबाव में हैं. इस साल जर्मनी करीब 10 लाख शरणार्थियों के आने की अपेक्षा कर रहा है. बुधवार को आई कुछ खबरों में कहा गया कि जर्मन सरकार सभी शरणार्थियों को आने देने की अपनी नीति पर पुनर्विचार कर रही है और डबलिन संधि की ओर लौट सकती है.

समुद्र के रास्ते आप्रवासियों का आना पहले इटली और माल्टा जैसे देशों में बढ़ा. धीरे धीरे बढ़ते हुए तुर्की की ओर से ग्रीस पहुंचने वाले शरणार्थियों की भारी संख्या हंगरी, सर्बिया समेत जर्मनी के लिए बहुत बड़ी समस्या बन गई. सीरिया के अलावा यूरोप पहुंच रहे शरणार्थियों में बहुत से अफ्रीकी देशों के नागरिक भी हैं. ईयू-अफ्रीका सम्मेलन में अफ्रीका में ही नौकरियां पैदा करने जैसे दीर्घकालीन कदमों पर भी चर्चा हो रही है. इससे अफ्रीकी आप्रवासियों को यूरोप से वापस भेजने का रास्ता भी खुलेगा.

डबलिन समझौते के तहत शरण पाने के लिए यूरोप पहुंचने वाले शख्स के आवेदन पर वही देश कार्रवाई करता है जहां विस्थापित पहली बार पहुंचे. जर्मनी ने इस साल की शुरुआत में इस समझौते में ढील की घोषणा की थी, जिसके बाद से शरणार्थियों के लिए जर्मनी एक चुंबक बन गया है.

आरआर/एमजे (एएफपी,रॉयटर्स)