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क्या पोप फ्रांसिस इस्लाम पसंद पोप हैं?

५ फ़रवरी २०१९

पोप फ्रांसिस पहले ऐसे पोप हैं जिन्होंने किसी अरब खाड़ी देश का दौरा किया है. संयुक्त अरब अमीरात का दौरा कर उन्होंने इस्लाम और ईसाईयत के बीच पुल बनाने की एक और कोशिश की.

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Papst Franziskus in Abu Dhabi
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Pinto

जब से पोप फ्रांसिस ने कैथोलिक चर्च के प्रमुख का पद संभाला है, वह विभिन्न धर्मों के बीच संवाद पर जोर देते रहे हैं. मुस्लिम दुनिया के साथ इससे पहले के पोपों के संबंधों का इतिहास अच्छा नहीं रहा है. इसमें बहुत पेंच रहे हैं. लेकिन मूल रूप से लैटिन अमेरिकी देश अर्जेंटीना से संबंध रखने वाले पोप फ्रांसिस इस मामले में अलग हैं. वह धार्मिक खाइयों को पाटने में लगे रहते हैं.

रोम में पोंटिफिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अरब एंड इस्लामिक स्टडीज में इस्लामी-ईसाई संबंध पढ़ाने वाले वालेंटीनो कोतीनी कहते हैं, "पोप फ्रांसिस अपने पूर्ववर्ती पोप बेनेडिक्ट सोलहवें से अलग हैं क्योंकि वह धार्मिक बारीकियों से ज्यादा महत्व आपस में मिलने जुलने को देते हैं."

अपनी इच्छा से पोप का पद छोड़ने वाले जर्मनी के बेनेडिक्ट सोलहवें एक धर्मशास्त्री हैं. वह भी इस्लाम पर खूब बोलते थे. उन्होंने इस विषय पर 188 भाषण दिए थे. लेकिन एक बार उन्होंने पंद्रहवीं सदी के बिजाटिन सम्राट की कही बातों के उद्धरण दिए, जिन्होंने पैगंबर मोहम्मद के साथ आने वाली "बुराई और अमानवीय चीजों" की बात की थी. इस कारण मुस्लिम दुनिया के साथ उनके संबंध कई बरस खराब रहे.

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हालांकि उन्होंने 2006 में जर्मनी के रेगेनबुर्ग में दिए अपने भाषण पर सफाई दी कि उद्धरण में व्यक्त किए गए विचार उनके अपने विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करते, लेकिन जो नुकसान होना था, वह हो गया था. उनके खिलाफ मुस्लिम दुनिया में बड़े प्रदर्शन हुए.

ऐसे में, पोप फ्रांसिस कुरान का विश्लेषण करने से बचते हैं. वह लगातार शरणार्थियों का स्वागत करने की वकालत करते हैं जिनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं. इसलिए मुस्लिम समुदाय में पोप को बहुत समर्थन प्राप्त है. एक बार वह ग्रीक द्वीप लेसबोस से तीन मुस्लिम परिवारों को अपने निजी विमान पर भी लेकर आए थे.

दुनिया में फैले 1.3 अरब कैथोलिक ईसाईयों के आध्यात्मिक नेता पोप ने 2016 और 2017 में काहिरा की अल-अजहर यूनिवर्सिटी के इमाम शेख अहमद अल तैयब से भी मुलाकात की. अल-अजहर यूनिवर्सिटी सुन्नियों की सबसे बड़ी संस्था है. इस्लामिक दर्शनशास्त्र के लेक्चरर तैयब उन जिहादियों के आलोचक हैं, जो कट्टरपंथी सलाफीवाद से प्रेरित होते हैं.

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पोप फ्रांसिस जोर देकर कहते हैं कि संवाद ही आगे बढ़ने का तरीका है. लेकिन वह यह भी कहते हैं कि मुसलमानों को कुरान को और ज्यादा व्याख्यात्मक रूप से देखना चाहिए. इस्लामी-ईसाई मामलों के विशेषज्ञ कोतीनी कहते हैं, "हमारे यहां ईसाई धर्म शास्त्रों की व्याख्या करने की ज्यादा आजादी है क्योंकि बाइबिल में ईश्वर शब्द का दर्जा वैसा नहीं है जैसा कुरान में है और जैसा मुसलमान समझते हैं."

जब कहीं भी इस्लाम के नाम पर हमला होता है तो पोप फ्रांसिस बेहद सावधानी बरतते हैं और हमला करने वालों को इस्लामी कट्टरपंथी कहने की बजाय वे "आतंकवादी" कहते हैं. 2014 में उन्होंने मुसलमान राजनीतिक और धार्मिक नेताओं के साथ साथ इस्लामिक विद्वानों से आतंकवाद की निंदा करने को कहा जो इस्लामोफोबिया का स्रोत है.

2016 में जब पोप से जिहादियों के हाथों हुई एक फ्रांसीसी पादरी जैक हामेल की हत्या के बारे में पूछा गया तो उन्होंने "इस्लाम को हिंसा के साथ जोड़ने" से इनकार कर दिया. हमले पर उन्होंने कहा कि "दुनिया युद्ध झेल रही है" लेकिन इसका कारण धर्म नहीं है. उन्होंने कहा, "जब मैं युद्ध की बात करता हूं तो मैं हितों, धर्म और संसाधनों को लेकर छिड़े युद्ध की बात करता हूं, धर्म को लेकर युद्ध की नहीं. सभी धर्म शांति चाहते हैं, जबकि युद्ध चाहने वाले लोग दूसरे हैं."

एके/आरपी (एएफपी)

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