1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या बिग बॉस जैसे कैमरों से बचेंगे अमेजन के जंगली जीव

१४ मई २०१९

अमेजन के जंगलों में जैव विविधता के संरक्षण की खोज खबर रखने के लिए उच्च क्षमता के बेहद संवेदनशील कैमरे लगाए जा रहे हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि इन कैमरों से जंगल की निगरानी बिल्कुल बिग बॉस जैसी होगी.

https://p.dw.com/p/3ISmv
Brasilien Amazonas Mamiraua Reservat
तस्वीर: AFP/Evaristo Sa

खास कैमरे लगाने वाली इस परियोजना प्रोविडेंस प्रोजेक्ट को दो साल पहले फ्रेंच वैज्ञानिक मिषेल आंद्रे ने शुरू किया. आंद्रे बताते हैं, "मैं चाहता था कि बाकी दुनिया के लोग समझें कि अमेजन वर्षावनों को बचाना कितना जरूरी है और संरक्षण के कदमों में वो सहयोग करें." आंद्रे पोलिटेक्निक यूनिवर्सिटी ऑफ कैटेलोनिया के बायोअकूस्टिक एप्लिकेशंस लैबोरेट्री के निदेशक हैं.

Brasilien Amazonas Mamiraua Reservat
तस्वीर: AFP/Evaristo Sa

आंद्रे ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "सेटेलाइट और ड्रोन कई सालों से हर साल काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या का पता लगा रहे हैं. लेकिन जंगल में रहने वाले जीवों के बारे में बहुत कम आंकड़े हैं. यहीं से हमें इस बात का विचार आया कि उच्च तकनीक वाले उपकरणों का इस्तेमाल कर यहां की जैव विविधता की निगरानी की जाए."

मामिराउआ के बाढ़ प्रभावित इलाकों में इस तरह के कैमरे लगाए गए हैं. ये कैमरे रियल टाइम में आंकड़े लैबोरेट्री को भेजते हैं. जिनका स्थानीय समुदायों और जीव विज्ञानियों की मदद से विश्लेषण किया जाता है. आंद्रे के मुताबिक परियोजना शुरू होने के बाद से 10 जगह उपकरण लगाए जा चुके हैं और 40 से ज्यादा जीवों की पहचान हुई है जिन पर नजर रखी जा रही है. इनमें चिड़िया, बंदर, चमगादड़, डॉलफिन, मछली और कई तरह के कीड़े शामिल हैं.   

Brasilien Amazonas Mamiraua Reservat
तस्वीर: AFP/Evaristo Sa

परियोजना को तीन चरणों में बांटा गया है. पहले चरण मामिराउआ में 10 जगह उपकरण लगा कर यह देखा गया कि क्या सिस्टम कठिन परिस्थितियों में भी काम करने में सक्षम है. अब परियोजना का दूसरा चरण शुरू हो गया है जिसमें बोलिविया के मादीदी और ब्राजिल के शिंगु जंगल में 10-10 जगह उपकरण लगाए जाएंगे. 2021 तक वैज्ञानिकों के उपकरण 30 जगहों पर लग चुके होंगे.

तीसरा चरण 2025 में शुरू होगा और तब तक अमेजन वर्षावन के पूरे इलाके में हजारों उपकरण लग जाएंगे. इनके जरिए 100 वर्ग किलोमीटर के दायरे में जलवायु परिवर्तन और इंसानी गतिविधियों के असर की निगरानी की जा सकेगी. हालांकि परियोजना चलाने वालों के पास अभी दूसरे और तीसरे चरण के लिए पूरा पैसा उपलब्ध नहीं हैं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि इंतजाम हो जाएगा.

एनआर/एमजे (एएफपी)