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क्या राफाल समझौते में कोई घोटाला है?

विनम्रता चतुर्वेदी
१४ सितम्बर २०१८

राफाल समझौता कैसे 126 विमानों की खरीद से 36 पर आ गया? कैसे एक अनुभवी सरकारी एविएशन कंपनी की जगह अनिल अंबानी की कुछ हफ्तों पहले पंजीकृत कंपनी की भूमिका अहम हो गई? क्या राफाल का मामला वाकई कोई घोटाला है?

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Kampfjet Dassault Rafale
तस्वीर: picture-alliance/Keystone/A. della Valle

भारत को पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों पर एक साथ लड़ने के लिए लड़ाकू विमानों की जरूरत है और इसके लिए 42 स्क्वाड्रन चाहिए. एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 लड़ाकू जहाज होते हैं. रक्षा विशेषज्ञ राहुल बेदी इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की रिपोर्ट का हवाला देकर बताते हैं कि फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास कुल 34 स्क्वाड्रन हैं, जिसमें से 31 ही काम के हैं. इन 34 में से 11 सुखोई-30 एमकेआई के है जो उच्चतम तकनीक से लैस जहाजों में से गिना जाता है. राहुल बेदी कहते हैं, ''वायुसेना के पास 14 स्क्वॉड्रन ऐसे हैं, जो 2020 तक रिटायर हो जाएंगे. इसका मतलब है कि अगर आज भारत लड़ाकू विमान ना खरीदे तो 2020 तक वायुसेना के पास सिर्फ 23 स्क्वाड्रन बचेंगे, यानि जरूरत का करीब आधा.''

वायुसेना इस संकट से बचने के लिए भारत सरकार पर विमान खरीदने का दबाव बनाती रही है. 2012 में मनमोहन सिंह सरकार ने फ्रांस की दासो एविएशन से 126 राफाल विमान खरीदने पर सहमति जताई. इनमें से 18 राफाल विमानों को फ्लाई-अवे कंडीशन में खरीदा जाना था यानि ये विमान उड़कर भारत आते. बाकी 108 को सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड भारत में बनाती. सौदे की राशि और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर जैसे मुद्दों पर सहमति न बन पाने की वजह से यह डील अटकी रही. 

Indien Vereidigung Oppositionsführer Rahul Gandhi
तस्वीर: Reuters/A. Hussain

2014 में मोदी सरकार के आने के बाद राफाल विमानों को खरीदने की कोशिश फिर शुरू हुई और 2015 में जब प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस गए तो वहां जाकर ऐलान किया कि मनमोहन सरकार के दौर में किया गया डील रद्द कर सीधे 36 विमान खरीदे जाएंगे. मीडिया में आई खबरें बताती हैं कि डील को रद्द करते वक्त तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को सिर्फ तीन दिन पहले और रक्षा सचिव को दो दिन पहले बताया गया. यह समझौता रद्द करने से कुछ दिन पहले दासो एविएशन की तरफ से यह भी कहा गया कि 95 फीसदी मुद्दों पर समझौता हो चुका है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तर्क दिया कि यह समझौता भारत और फ्रांस सरकार के बीच किया गया है. डील में तय किया गया कि 36 राफाल विमान फ्लाई-अवे कंडीशन में खरीदे जाएंगे और दासो एविएशन को मिलने वाली रकम का एक हिस्सा भारत में निवेश किया जाएगा. इस निवेश के लिए दासो को किसी भारतीय कंपनी को ऑफसेट पार्टनर चुनना था और जिन कंपनियों के साथ उसने करार किया उसमें अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस लिमिटेड भी है. दरअसल सबसे बड़ी साझीदारी रिलायंस के साथ ही हुई है.

यहां दिलचस्प बात यह है कि रक्षा में निवेश को लेकर जो नियम बने थे, उसे मोदी सरकार ने 2017 में बदल दिया था. नई एफडीआई नीति के मुताबिक, कोई विदेशी कंपनी रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी तक निवेश कर सकती है और इसके लिए उसे कैबिनेट की मंजूरी की जरूरत नहीं पड़ेगी. दासो और रिलायंस का समझौता इसी नई नीति के बनने के बाद हुआ है.

क्या नए समझौते में अधिक कीमत चुकाई गई?

Frankreich Macron und Modi in Paris
तस्वीर: Reuters/J. Demarthon

राहुल गांधी अपने भाषणों और ट्वीट के जरिए आरोप लगाते रहे हैं कि जिस डील पर मनमोहन सरकार मंथन कर रही थी, उसकी संभावित राशि से करीब तीन गुना राशि मोदी सरकार चुका रही है. कांग्रेस का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ चुका रही थी, वहीं अब मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ रुपये दे रही है.

कांग्रेस के दावों पर रक्षा विशेषज्ञ बेदी कहते हैं कि कांग्रेस संभावित कीमत से मोदी सरकार की ओर से चुकाई गई कीमत की तुलना कर रही है, जो सही नहीं है. उनका कहना है, ''कांग्रेस आम लोगों के बीच धारणा बनाने में जुटी है कि मोदी सरकार ने अधिक कीमत चुकाई. राजनीति में धारणा बनाए जाने का महत्व होता है और राहुल गांधी वही कर रहे हैं.''

विपक्ष चाहता है कि राफाल की कीमत को लेकर श्वेत पत्र जारी कर बताया जाए कि डील कितने में की गई. लेकिन भारत सरकार का कहना है कि चूंकि यह रक्षा सौदा है, इसलिए इसके बारे में बताना सही नहीं होगा. रक्षा विशेषज्ञ बेदी सरकार की इस बात से सहमत नहीं हैं और कहते हैं, ''सरकार भले ही जहाज में लगे साजो सामान के बारे में ना बताए, लेकिन कुल डील कितने में हुई इसे साफ करना चाहिए.''

क्या है सरकार की सफाई?

पिछले दिनों वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि यूपीए जिस कीमत पर राफाल ले रही थी उसमें सिर्फ जेट आता. भारत को इस डील के साथ हथियार व दूसरे साजोसामान मिल रहे हैं. जेटली का दावा है कि मोदी सरकार की डील 9 फीसदी सस्ती है. नवंबर 2016 में रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे संसद को बता चुके हैं कि एक जेट की कीमत 670 करोड़ अदा की गई है.

रक्षा विशेषज्ञ अजय शुक्ला का मानना है कि साजोसामान के साथ एक राफाल की कीमत 1100 करोड़ होनी चाहिए. उनका कहना है, ''यह कहना असंभव है कि इतनी कीमत अदा करने पर घोटाला हुआ या नहीं. हालांकि यह तय है कि एक फाइटर जहाज के लिए यह कीमत काफी ज्यादा है.'' वह बताते हैं कि भारतीय वायुसेना की अग्रिम पंक्ति के विमान कहे जाने वाले सुखोई-30 एमकेआई की कीमत 350 करोड़ के करीब है, जो राफाल के मुकाबले एक तिहाई कम है.