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क्या समय पर होंगे पाकिस्तान के चुनाव?

शाह मीर बलोच
१८ मई २०१८

पाकिस्तान में पू्र्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और देश की ताकतवर सेना के बीच बढ़ती खाई का साया आने वाले आम चुनावों पर पड़ रहा है. कुछ लोगों का कहना है कि सेना नवाज शरीफ की पार्टी को सत्ता से बाहर रखने की कोशिशों में जुटी है.

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Pakistan Unterstützer von Nawaz Sharif, Ex-Premierminister
तस्वीर: Reuters/F. Mahmood

पाकिस्तान में आम चुनावों पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं. सेना और सत्ताधारी पीएमएल (एन) के बीच विवाद की ताजा वजह है नवाज शरीफ का वो बयान जिसमें उन्होंने 2008 के मुंबई हमलों में पाकिस्तान की भूमिका को स्वीकारा है. पाकिस्तानी सरकार और सेना के बीच रिश्ते पहले से ही खराब चल रहे थे, लेकिन मुंबई हमलों को लेकर नवाज शरीफ के बयान ने आग में घी डालने का काम किया है. चौतरफा आलोचना के बावजूद नवाज शरीफ अपने विवादाति बयान से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं.

अपने बयान की वजह से नवाज शरीफ सेना समर्थक दूसरे राजनेताओं के निशाने पर आ गए हैं. कई लोग नवाज शरीफ पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग कर रहे हैं. पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के नेता इमरान खान कहते हैं, "नवाज शरीफ पर आर्टिकल 6 के तहत आरोप तय होने चाहिए." पाकिस्तान संविधान के आर्टिकल 6 के तहत देशद्रोह पर मौत की सजा देने की बात कही गई है.

समय पर चुनाव?

यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब पाकिस्तान में इस साल चुनाव चुनाव होने हैं. मौजूदा संसद का कार्यकाल मई में खत्म हो रहा है और जुलाई में चुनाव हो सकते हैं. लेकिन पाकिस्तान में बहुत से लोगों का मानना है कि देश में मौजूदा हालात के मद्देनजर चुनाव समय पर नहीं होंगे. वहीं अधिकारी चुनाव समय पर कराने की बात कर रहे हैं. पाकिस्तानी चुनाव आयोग के प्रवक्ता अल्ताफ अहमद ने डीडब्ल्यू को बताया, "सब कुछ योजना के मुताबिक हो रहा है और चुनाव समय पर होंगे." अगर प्रधानमंत्री ने संसद को 31 को भंग कर दिया तो चुनाव आयोग के पास चुनाव कराने के लिए 60 दिन का समय होगा.

पाकिस्तान के राजनीतिक दलों को भी चुनाव समय पर होने की उम्मीद है. सत्ताधारी पीएमएल (एन) के चेयरमैन राजा जफर उल हक के अनुसार, "चुनाव में विलंब नहीं किया जाएगा." वहीं पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के प्रवक्ता चौधरी फवाद हुसैन का भी यही कहना है कि चुनावों में देरी करने का कोई मतलब नहीं है. एक चुनाव विश्लेषक ताहिर मेहदी कहते हैं, "पाकिस्तान अपने आम चुनावों में विलंब नहीं कर सकता है क्योंकि उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जवाब देना है. इसलिए मुझे लगता है कि चुनाव समय पर ही होंगे." लेकिन पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता और पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के प्रेस सेक्रेटरी रहे फरतुल्लाह बाबर कहते हैं कि देश में कुछ "अलोकतांत्रिक ताकतें" चुनावी प्रक्रिया में रोड़ा अटकाना चाहती हैं, लेकिन "वे कामयाब नहीं होंगी".

पाकिस्तानी सेना को ललकारता युवा पश्तून

पर्दे के पीछे से सत्ता

पाकिस्तान में 2013 में ऐसा पहली बार हुआ था जब सुगम तरीके से एक चुनी हुई सरकार ने दूसरी चुनी हुई सरकार को सत्ता हस्तांतरण किया था. इससे उम्मीद जगी थी कि पाकिस्तान में अब सैन्य तख्तापलट का दौर पीछे जा चुका है और देश लोकतांत्रिक रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. लेकिन जिस तरह हाल में नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटाया गया, उसके बाद संदेह होने लगा कि इसके पीछे सेना का हाथ है. भ्रष्टाचार के मामले में नवाज शरीफ को अयोग्य करार दिए जाने के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अपनी पार्टी के अध्यक्ष पद से भी हटने के लिए मजबूर किया. इतना ही नहीं, वह चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं.

बहुत से लोगों को लगता है कि नवाज शरीफ को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वह सेना से टकरा रहे हैं. कई विश्लेषकों का कहना है कि नवाज शरीफ को सियासी पटल से हटाने की कोशिशों से पता चलता है कि देश की सेना संस्थागत रूप से कितनी ताकतवर है और उसे अपनी ताकत दिखाने के लिए अब तख्तापलट करने या फिर मार्शल लॉ लगाने की जरूरत नहीं है, बल्कि सेना ने अब पर्दे के पीछे से सत्ता चलाने का हुनर सीख लिया है. ऐसे में, यह सवाल भी उठ रहे हैं कि पाकिस्तान में होने वाले चुनाव कितने निष्पक्ष और स्वतंत्र होंगे. पीएमएल (एन) के जफर उल हक कहते हैं, "अगर चुनाव स्वंतत्र और निष्पक्ष नहीं हुए तो उन्हें स्वीकार नहीं किया जाएगा क्योंकि चुनावों को पारदर्शी होना चाहिए."

चीन की मदद

इस साल की शुरुआत में अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद रोक दी. इसके कारण पाकिस्तान वित्तीय और राजनयिक समर्थन के लिए चीन के और ज्यादा करीब जाने को मजबूर हुआ है. वैसे चीन दशकों से पाकिस्तान का अहम सहयोगी रहा है और हाल के सालों में उसने पाकिस्तान में भारी निवेश किया है. वह 60 अरब डॉलर की लागत से चीन-पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर बना रहा है. विश्लेषक कहते हैं कि चीन पाकिस्तान को मदद देकर क्षेत्र में भारत का असर कम करना चाहता है और निकट भविष्य में इस नीति में किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं है.

विशेषज्ञ मानते हैं कि आर्थिक समृद्धि के लिए राजनीतिक स्थिरता बहुत जरूरी है. अगर राजनीतिक तनाव बढ़ता है तो फिर स्थितरता भी डांवाडोल होती है. पाकिस्तानी सीनेटर अकरम दश्ती ने डी़डब्ल्यू से बातचीत में कहा कि हालात अस्थिर होंगे तो इससे राजनीतिक और चुनाव से जुड़े मामलों में सैन्य प्रतिष्ठान का दखल बढ़ेगा. वह कहते हैं, "सेना नवाज शरीफ को सत्ता से बाहर करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेगी. संक्षेप में कहें तो पाकिस्तानी सेना कभी इस बात को मंजूर नहीं करेगी कि राजनीतिक पार्टियां उससे ऊपर हो जाएं क्योंकि वे इस देश को अपनी मर्जी से चलाना चाहते हैं."

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