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जानिए जम्मू-कश्मीर के "दरबार" ट्रांसफर के बारे में

चारु कार्तिकेय
६ मई २०२०

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने कहा है कि "दरबार" ट्रांसफर पर हर साल 200 करोड़ रुपये खर्च होते हैं और पूछा है कि क्या ये जरूरी है कि संसाधनों की भारी कमी वाला एक प्रदेश इस खर्च का बोझ हर साल उठाए? जानिए इस प्रथा के बारे में.

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Indien Impressionen von Sharique Ahmad
तस्वीर: Sharique Ahmad

जम्मू और कश्मीर के अलावा देश में ऐसा दूसरा कोई केंद्र प्रशासित प्रदेश या राज्य नहीं है जिसकी दो ऐसी राजधानियां हों जिनके बीच साल में दो बार पूरे के पूरे प्रशासन का ट्रांसफर होता हो. जम्मू और कश्मीर की सर्दियों की राजधानी है जम्मू और गर्मियों की राजधानी है श्रीनगर. हर साल दो बार जम्मू और कश्मीर सरकार का पूरा का पूरा प्रशासन एक शहर से उठ कर 300 किलोमीटर दूर दूसरे शहर चला जाता है. कश्मीरी इसे "दरबार" ट्रांसफर कहते हैं.

इसकी शुरुआत जम्मू और कश्मीर रियासत के राजा महाराज रणबीर सिंह ने 1872 में की थी. दोनों शहरों में मौसम की तीव्रता से बचने के लिए ऐसा किया जाता था. अब ना राजा हैं ना दरबार लेकिन "दरबार" ट्रांसफर अभी भी होता है. अधिकारी तो एक शहर से दूसरे शहर जाते ही हैं, कागजात और अन्य सामान को भी बंडलों, कार्टन और लोहे के संदूकों में बंद कर 200 से ज्यादा ट्रकों में भर कर ले जाया जाता है.

2020 में 148 सालों में पहली बार इस प्रथा में कोविड-19 की वजह से रुकावट आई, लेकिन इसे अभी तक एक अस्थायी रुकावट माना जा रहा है. हालांकि अब जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने इस प्रथा के जारी रहने पर पुनर्विचार करने के बारे में कहा है. अदालत ने निर्देश नहीं दिए हैं, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस पर विचार करने को कहा है. अदालत ने कहा कि राजधानियां बदलने पर हर साल कम से कम 200 करोड़ रुपये खर्च होते हैं और पूछा कि क्या ये जरूरी है कि संसाधनों की भारी कमी से जूझने वाला एक प्रदेश इस तरह के खर्च का बोझ हर साल उठाए?

राजनीतिक हलकों में और जानकारों में इसे लेकर मिली जुली प्रतिक्रिया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है और कहा है कि ये प्रथा प्रदेश के दोनों हिस्सों जम्मू और कश्मीर के लोगों के सशक्तिकरण का प्रतीक है और इसे बंद करने से दोनों इलाकों के बीच अंतर बढ़ जाएगा.

पीडीपी ने अभी अपना रुख साफ नहीं किया है लेकिन जानकारों का कहना है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इन हालात में इस प्रस्ताव का समर्थन नहीं करेगी.

वरिष्ठ पत्रकार और कश्मीर के इतिहास और राजनीति के जानकार उर्मिलेश ने डीडब्ल्यू को बताया कि "दरबार" के ट्रांसफर में पैसों के खर्च से ज्यादा लोगों के श्रम का जो दुरूपयोग होता है वो बहुत भयानक है. वो कहते हैं, "अगर दोनों इलाकों के लोग सहमत हों कि प्रदेश की एक ही राजधानी हो तो ये सबसे अच्छी बात होगी...और श्रीनगर से बेहतर कोई राजधानी हो ही नहीं सकती है."

कुछ जानकारों का ये भी मानना है कि ये विवाद श्रीनगर की अहमियत कम करने के लिए शुरू किया गया है. कश्मीर में रहने वाले शिक्षाविद प्रोफेसर सिद्दीक वाहिद का कहना है कि ये जम्मू को सत्ता का केंद्र बनाने की शुरुआत है.

बहरहाल, कश्मीर अभी ऐसी समस्याओं से गुजर रहा है जो इससे बड़ी हैं. वहां 9 महीनों से आम जनजीवन पर कड़े प्रतिबंध लगे हुए हैं जिनसे प्रदेश का हर आम नागरिक प्रभावित हो रहा है. पहले इस स्थिति को सामान्य किए जाने की जरूरत है.

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