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समाज

"जर्मन एफिशिएंसी" की हकीकत?

क्रिस्टीना बुराक
१६ अप्रैल २०२१

जर्मनी की छवि चीजों को प्रभावी तरीके से पूरा करने की है. हालांकि इसके विपरीत भी कई प्रमाण मौजूद हैं. बावजूद इसके यह छवि बनी हुई है. जर्मन इतिहास में दक्षता ने अहम भूमिका निभाई. लेकिन इसके परिणाम हमेशा सकारात्मक नहीं रहे.

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Zwangsstörungen | Ordnungszwang
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Klose

अंतरसांस्कृतिक सलाहकार क्रिस्टिना रॉटगर्स जब अपने अंतरराष्ट्रीय छात्रों और व्यावसायिक दोस्तों के साथ काम करती हैं, तो वे एक स्टीरियोटाइप एसोसिएशन गेम खेलते हुए शुरुआत करती हैं. जब वे उन लोगों से जर्मनी के बारे में उनकी धारणा के बारे में पूछती हैं, तो वे लोग विश्वस्त तरीके से बताते हैं कि जर्मनी एक मशीन की तरह दक्ष या प्रभावी देश है.

जर्मन दक्षता, शक्ति धारण के साथ एक अंतरराष्ट्रीय स्टीरियोटाइप या रूढ़िबद्ध धारणा है. यह अन्य जर्मन मूल्यों से इतनी मजबूती के साथ बंधा हुआ है कि इसे अलग करना मुश्किल है. इतिहास में यदि जाएं तो पता चलता है कि दक्षता की जड़ें काफी गहरी हैं और कैसे इसकी उत्पत्ति हुई. यह भी पता चलता है कि समय के साथ इस धारणा ने कैसे जन्म लिया.

जर्मनी की सदियों पुरानी प्रतिष्ठा

दक्षता को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है कि किसी मनचाही वस्तु को कम से कम संसाधन का इस्तेमाल करके प्राप्त करना. इस मामले में जर्मनी की प्रतिष्ठा सदियों पुरानी है और इसकी जड़ें दोहरी हैं.

'द शॉर्टेस्ट हिस्ट्री ऑफ जर्मनी' पुस्तक के लेखक और इतिहासकार जेम्स हॉव्स इसकी जड़ें मध्यकालीन युग में देखते हैं, जब पश्चिमी राइनलैंड की विदेशों में ख्याति व्यावसायिक दक्षता के लिए थी और यह ख्याति यहां उच्चस्तरीय गुणवत्ता की वस्तुओं के निर्माण की वजह से थी. डीडब्ल्यू से बातचीत में हॉव्स कहते हैं, "मेंज के घड़ी बनाने वाले और जोलिंगन के शस्त्र निर्माता पूरे मध्य काल के दौरान मशहूर रहे."

पूर्वी जर्मन राज्य प्रशा एक अलग तरह की ही दक्षता का स्रोत समझा जाता था. यह थी प्रशासनिक और सैन्य दक्षता. साल 1750 तक फ्रेडरिक महान के शासन काल में प्रशा ने एक प्रभावी नौकरशाही और सैन्य शक्ति विकसित कर ली थी.

जैसे-जैसे प्रशा ने अपने नियंत्रण को बढ़ाया और आखिरकार 1871 में जर्मन साम्राज्य को एक करते हुए उसे अपने अधीन कर लिया, उसने इन प्रणालियों और प्रथाओं को भी फैलाया. इसके कर-आधारित पब्लिक स्कूल और दक्ष सेना ने दुनिया के अन्य देशों को भी आधुनिक बनने के लिए प्रेरित किया. कई देशों ने तो इसी आधार पर अपने यहां संस्थाओं का निर्माण किया.

Industrialisierung Werkzeugfirma Richard Hartmann
तस्वीर: Ullstein Bild

19वीं सदी के प्रशा राज्य में भी नौकरशाही और सेना के लिए मूल्यों की एक रणनीतिक सूची तैयार की गई जिसमें तमाम चीजों के अलावा समय की पाबंदी, मितव्ययिता, कर्तव्यपालन और कर्मठता जैसे तत्व भी शामिल थे. हालांकि दक्षता को एक अकेले मूल्य के तौर पर नहीं देखा गया है लेकिन यह वही मूल्य हैं जो कि एक दक्ष राष्ट्र को बनाने के लिए जरूरी हैं.

इन मूल्यों को 'प्रशियन गुणों' के तौर पर जाना गया. हालांकि इतिहासकार और बर्लिन में मोसेस मेंडेलसोन सेंटर फॉर यूरोपियन-जुइश स्टडीज के संस्थापक डायरेक्टर जूलियस शोएप्स कहते हैं कि उन्हें विभिन्न समूहों के बीच खुद को स्थापित करने में काफी समय लगा. उनके मुताबिक, "प्रशियन मूल्यों की यह चर्चा 19वीं सदी में तभी शुरू हुई जब इस बारे में उनसे बात की जाने लगी."

जब ब्रिटिश पर्यटकों ने 19वीं सदी के मध्य में प्रशा के नियंत्रण वाले राइनलैंड की यात्रा शुरू की, तो उन्होंने प्रशा की समृद्धि और योग्यता के इतिहास से भी लोगों को परिचित कराया. हॉव्स के मुताबिक, उनकी रिपोर्ट्स में हमेशा टिप्पणी की जाती थी कि वहां कैसे हर चीज बेहतर तरीके से काम करती है. मसलन, ट्रेन कैसे समय से चलती है, सीमा पर मौजूद कर्मचारी कितने चुस्त होते हैं, होटल कितने साफ-सुथरे रहते हैं इत्यादि.

बीसवीं सदी में भी आर्थिक गुणवत्ता और एक संगठित राज्य के दोहरे गुण ने जर्मन दक्षता की छवि को बरकरार रखा. साल 1930 तक 'ऑर्डनुंग' का विचार जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय पहचान बन गया. ऑर्डनुंग नियम-कानून और गंभीर दृष्टिकोण का ऐसा सम्मिश्रण था, जो कि सैद्धांतिक रूप से दक्षता में योगदान कर सकता था. साल 1934 में तत्कालीन राष्ट्रपति पाउल फॉन हिंडरबुर्ग की तस्वीर अपने कवर पेज पर प्रकाशित करते हुए टाइम पत्रिका ने लिखा था "Ordnung muss sein" अर्थात "व्यवस्था होना अनिवार्य है". द न्यूयॉर्क टाइम्स तो साल 1930 में ही इस मुहावरे का जिक्र 'विश्व प्रसिद्ध' के तौर पर कर चुका था.

एक 'भयानक' दक्षता

साल 1982 में सोशल डेमोक्रेट राजनेता ऑस्कर लैफोंटेन ने कहा था कि प्रशियन मूल्यों (जिनका प्रचार उस वक्त के पश्चिमी जर्मनी के चांसलर हेलमुट श्मिट भी कर रहे थे) के साथ एक व्यक्ति "यातना गृह का संचालन भी कर सकता है."

इतिहासकार शोएप्स के मुताबिक, नाजी पार्टी ने वास्तव में प्रशियन मूल्यों का भी कुछ हद तक चुनाव किया था. वे कहते हैं, "आत्मविश्वास अहंकार में बदल गया, सुव्यवस्था नीचतापूर्ण पाखंड में बदल गई और किसी के कर्तव्यों का निर्वहन विशुद्ध अमानवीयता में बदल गया. हो सकता है कि तथाकथित प्रशियन गुणों ने नाजी शासन और उसकी व्यवस्थित हत्या के तहत अधिनायकवादी राज्य बनाए रखने में मदद की हो."

कोलंबस विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर फ्रैंकलिन मिक्सन श्रम और औद्योगिक संस्थानों के मामलों के जानकार हैं और "ए टेरिबल एफिशिएंसी: एंटरप्रेन्युरियल ब्यूरोक्रेट्स एंड द नाजी होलोकॉस्ट" पुस्तक के लेखक भी हैं. इस पुस्तक में उन्होंने बताया है कि नाजी नौकरशाही के दौरान व्यवहार कुशलता को कैसे सम्मानित और प्रोत्साहित किया गया. किस तरह से अक्सर सीधे और अनौपचारिक आदेश के तहत विध्वंसात्मक कार्रवाइयां की गईं. मिक्सन कहते हैं, "नाजी जो कर रहे थे वह प्रोत्साहन था, नौकरशाही से जुड़े लोगों का अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रहे थे, जो कि उनके कार्यों का हिस्सा नहीं था."

जर्मन चांसलर के 15 साल

हॉव्स कहते हैं कि दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के तत्काल बाद, जर्मन लोगों को ऐसे लोगों के तौर पर देखा गया जो कि अविश्वसनीय तरीके से अमानवीय थे. 50 और 60 के दशक में जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ती गई, पश्चिमी जर्मनी की पहचान अपने उद्योगों और गुणवत्तापूर्ण चीजों के उत्पादन से होने लगी. इस उत्पादन प्रक्रिया ने जर्मन दक्षता की प्रतिष्ठा को एक बार फिर स्थापित कर दिया. यह अलग बात है कि ऋण में कमी, मुद्रा सुधार, सस्ता श्रम जैसे कुछ कारकों ने इस छवि को कुछ हद तक धूमिल किया.

जर्मनी ने एकीकरण के बाद आई आर्थिक मंदी से खुद को बचाए रखा और आज भी अपने उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के जरिए हर क्षेत्र में जर्मन दक्षता को कायम रखा है, न सिर्फ बाजार और उद्योग में बल्कि सरकार और यहां तक राष्ट्रीय फुटबॉल टीम में भी.

दक्षताविशेषता और रूढ़िवादी धारणा

दक्षता को भले ही एक गुण के तौर पर देखा जा रहा हो लेकिन जर्मनी में आज यह वास्तविकता से काफी दूर है. अक्षमता के तमाम उदाहरण यहां मौजूद हैं. मसलन, नया बर्लिन हवाई अड्डा बनाने में 9 साल का समय लग गया और मौजूदा समय में कोविड संक्रमण से निबटने में नौकरशाही कागजी कार्रवाइयों में ही व्यस्त रही और आज टीकाकरण की प्रक्रिया भी बेहद धीमी गति से चल रही है.

सीनियर पॉलिसी एडवाइजर आंद्रे फॉन शूमन कहते हैं कि इन सबके बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जर्मनी दक्षता संबंधी इस स्टीरियोटाइप को बनाए रखने में सफल रहा है. वे कहते हैं कि रूढ़िवादी धारणाएं बहुत लंबे समय तक जिंदा रहती हैं और उनमें बदलाव बहुत ही धीमी गति से होता है. उनका कहना है कि रूढ़िवादी धारणा या मान्यता तभी खत्म हो सकती है जब इसका समर्थन करने वाले उदाहरण बहुत कम रह जाएं और उसका खंडन करने वाले उदाहरण ही लोगों को दिखते रहें.

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