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क्या 70वीं वर्षगांठ पर चीन अपने इतिहास को छिपा रहा है

१ अक्टूबर २०१९

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार का दावा है कि उसने करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है. जबकि कम्यूनिस्ट सरकार की नीति की वजह से देश में अकाल पड़ी थी और करोड़ों लोगों की जान गई थी.

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Peking Parade 70 Jahre Volksrepublik China
तस्वीर: Reuters/T. Peter

1 अक्टूबर को हमें क्या कहना चाहिए, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन का 70वां जन्मदिन? सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी चीन को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का श्रेय खुद को देती है. चीन कुछ अन्य उपायों में नंबर एक है, जैसे कि सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार रखने, सबसे ज्यादा लंबी हाई-स्पीड रेल के लिए और सबसे ज्यादा मोबाइल फोन के लिए. हालांकि कई चीजों का श्रेय सरकार के काम करने के तरीके को नहीं जाता बल्कि चीन के बड़े आकार को जाता है. उदाहरण के लिए ट्रैफिक सुविधाएं, आत्महत्या. इन सब मामलों में भी चीन आगे है और इसकी वजह इसका आकार है.

चीन की तरह ही जापान, दक्षिण कोरिया और ताईवान की संस्कृति है. सभी ने प्रति व्यक्ति आय के आधार पर आर्थिक रूप से चीन से बेहतर काम किया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सूची में प्रति व्यक्ति संपत्ति के आधार पर ताईवान का स्थान 14वां है. वहीं जापान का 28वां, दक्षिण कोरिया का 29वां और चीन का 73वां है.

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार का दावा है कि उसने करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है. चीन की जनसंख्या को देखते हुए यह दावा ज्यादा प्रभावशाली नहीं है लेकिन इसके साथ जो बड़ी समस्या है, वह अलग है. वह समस्या है 'निकालना' शब्द. यह शब्द बताता है सरकार ने आबादी को गरीबी से निकाल दिया लेकिन सच्चाई बिल्कुल अलग है. 1990 की शुरुआत में चीन के करोड़ों लोग कम मेहनताने पर काम करते थे. उनके हितों की सुरक्षा के लिए ना तो मजदूर संगठन थे और ना ही स्वतंत्र कोर्ट. इन मजदूरों ने खुद को गरीबी से बाहर निकाला. (यह एक ऐसी व्यवस्था जो चीन में कम्युनिस्ट सरकार और दूसरे देशों में बहु-राष्ट्रीय कंपनियां बनाए हुए थीं.) ठीक इसी समय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े लोगों ने काफी धन इकट्ठा किए. 2018 में चीन में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के 153 सदस्यों की कुल संपत्ति करीब 650 अरब डॉलर पहुंच गई. यह स्विटजरलैंड की जीडीपी के बराबर है.

Mao Tse-tung 1966 Kulturrevolution
तस्वीर: picture-alliance/KPA/United Archives

माओ की विरासत
कम्युनिस्ट पार्टी के 70 साल के शासन में 27 साल माओ त्से तुंग ने सरकार चलाई. इस दौरान लाखों की संख्या में लोग अप्राकृतिक मौत मरे. माओ की नीतियों के कारण 1959 से 1962 तक भयंकर आकाल पड़ा. इसकी वजह से तीन से चार करोड़ लोगों की जान गई. माओ के कई अन्य अभियानों की वजह से दुश्मनी और हिंसा बढ़ी. 1966-69 की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान युवाओं पर अपने माता-पिता का अपमान करने, शिक्षकों को पीटने और पुस्तकों को नष्ट करने का दबाव डाला गया. चीन की प्राचीन सभ्यता के बुनियादी मूल्यों पर शायद ही इससे कोई बड़ा हमला हो सकता था.

माओ के दौर में चीन की सभ्यता पर किए हमले का प्रभाव आज भी है. अन्य जगहों के साथ नैतिक भाषा के विनाश में वह दिखाई दे रहा है. 1950 के दशक में माओ ने कहा था, "लोगों की सेवा करो", चीन में कई लोगों ने इस नारे को सार्वजनिक नैतिक मानदंडों के प्रदर्शनों की सूची में नई सामग्री के तौर पर लिया था. 1970 के दशक में जैसे ही माओ का समय समाप्त हुआ, यह नारा खोखला हो गया. अधिकांश आधिकारिक नैतिक-आदर्श नारे खोखले थे. शि जिनपिंग ने बयान दिया, "हम चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद का पालन करते हैं." यह बयान भी खोखला है बल्कि असंगत भी है. हर कोई जानता है कि वास्तव में इसका क्या मतलब है. इसका मतलब है "चुप चाप रहो और पार्टी की नीतियों का पालन करो."

Peking 1976 Aufbahrung von Mao Zedong
तस्वीर: picture-alliance/Imagno/Votava

शी जिनपिंग का शासन
माओ के बाद दूसरे शीर्ष नेताओं की तरह शी जिनपिंग कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकते हैं क्योंकि पार्टी की प्रतिष्ठा और इसकी शक्ति माओ के विचार की वजह से ही है. इसके अलावा शी को एक मॉडल के रूप में माओ की जरुरत है. शी एक कम पढ़े लिखे आदमी है और बहुत कम यात्रा करते हैं. उनमें यह क्षमता नहीं है कि माओ के तरीकों के अलावा यह सोच सकें कि और क्या किया जा सकता है.

सांस्कृतिक क्रांति के दौरान माओ ने चीनी समाज को एक उन्माद में धकेल दिया. इसे चीन ने जश्न के रूप में मनाया. जश्न का आधार कथित "राष्ट्रीय गौरव और विश्व नेतृत्व के लिए एक जगह' बना. इसके बाद माओ का शासन समाप्त हुआ. 1970 के दशक के अंत में चीन के काफी लोगों ने यह कसम खाई कि अब ऐसा कभी नहीं होगा. लेकिन चार दशक बाद फिर से कुछ उसी तरह से हो रहा है.

आज चीन एक सतही 'देशभक्ति' को लेकर उत्साहित है. आज उनके गर्व करने का आधार टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कुछ नई खोज है. जैसे कि करोड़ों की संख्या में लोगों पर नजर रखने वाले कैमरे, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से चेहरा पहचानने की तकनीक और सरकार द्वारा विश्वसनीयता के आधार पर दिया जाने वाला 'सोशल क्रेडिट'. क्या जिनपिंग का शासन सफल होगा? यदि ऐसा होता है तो यह चीन और दुनिया के लिए बुरी खबर होगी. लेकिन इसे धाराशायी होते देखना भी भयावह होगा. इसके परिणाम स्वरूप क्या उथल-पुथल होगा और यह कब तक चलेगा?

यदि इतिहास से हमें कुछ सबक मिलता है तो यह साफ है कि चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है. अभी इस सरकार के 70 साल हुए हैं और सबसे लंबे समय तक चलने वाला आधुनिक कम्युनिस्ट शासन बन गया है. यदि चीनी शासन अपने 70वें जन्मदिन पर मजबूत दिखाई देता है, तो हमें एक मिनट के लिए उसके नेता की स्थिति की सराहना करनी चाहिए.

शी जिनपिंग को हांगकांग में लोकतंत्र, ट्रंप के साथ व्यापार युद्ध, सुअरों में तेजी से फैल रही बीमारी और अर्थव्यवस्था में गिरावट को लेकर चिंतित होना चाहिए. सभी क्षेत्र में सत्ता हथियाने पर एक काम जरूर होता है. वह यह है कि समस्याओं के लिए किसी एक को दोषी ठहरा दिया जाता है. चीन की कम्युनिस्ट परंपरा में जो नेता असफल हो जाता है उन्हें प्रायः जेल में डाल दिया जाता है. उनके परिवार भी इस चपेट में आ जाते हैं. यहां तक की माओ की मौत के बाद उनकी पत्नी को भी जेल में डाल दिया गया था.

कुछ दिनों पहले पार्टी की आधिकारिक पत्रिका कियुशी ने कुछ अजीब सा लिख दिया. इसने शी जिनपिंग के 2014 के एक भाषण को फिर से छाप दिया जिसमें शी ने कहा था कि एक स्वस्थ राजनीतिक व्यवस्था में नेतृत्व में "क्रमबद्ध बदलाव" की आवश्यकता होती है. छह महीने पहले शी ने एक नया नियम बना कर देश के राष्ट्रपति बनने के लिए तय टर्म को समाप्त कर दिया. कियुशी का लेख भले ही पुरानी और बेकार हो, पूरी प्रणाली अपारदर्शी है, लेकिन अगर शी के पास दूसरे विचार हैं, तो उसके वजह की कल्पना करना मुश्किल नहीं है.

लेखकः पेरी लिंक (कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रोफेसर)

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