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समाज

क्यों करा रहा है ये टीचर 80 किलोमीटर की ट्रेकिंग?

१६ अप्रैल २०१८

यूरोप के स्कूलों में एक्सकर्सन की परंपरा है. कहते हैं कि यात्रा सीखने का मौका देती है. लेकिन स्विट्जरलैंड के विडलिसबाख का एक टीचर सीमाओं को तोड़ रहा है और जून में 15 साल के बच्चों से 80 किलोमीटर की ट्रेकिंग करा रहा है.

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Schweiz Tourismus Wandern Berge
तस्वीर: PHOTOPRESS/Anthony Anex/Tourism Switzerland

फफोले, आंसू और तकलीफ 38 साल के टीचर स्टीव क्नुषेल के एक्सकर्सन का हिस्सा है. लेकिन बच्चे भाग नहीं रहे, मां बाप स्कूल को रोक नहीं रहे और टीचर तकलीफ और बर्दाश्त की नई सीमाओं को तलाशने में लगा है. पिछले साल एक्सकर्सन पर बच्चों ने 60 किलोमीटर की दूरी तय की थी, इस बार 24 घंटे के अंदर 80 किलोमीटर का लक्ष्य है.

स्टीव क्नुषेल का कहना है कि सामान्य यात्राएं बहुत बोरिंग होती हैं. स्मार्ट फोन पीढ़ी के बच्चों की आरामतलबी की आदत को तोड़ने के लिए हाई स्कूल टीचर ने अपने एक्सकर्सन को मुश्किल बनाना शुरू किया, लेकिन वह तमाम मुश्किलों के बावजूद बच्चों में लोकप्रिय भी होता गया. स्विस न्यूज पोर्टल 20 मिनट्स के अनुसार क्नुषेल कहते हैं कि शारीरिक और मानसिक सीमाओं पर पहुंचना बच्चों को एक दूसरे से जोड़ता है. उन्हें यह देखकर अच्छा लगता है कि तकलीफ दूसरों को भी हो रही है.

60 या 80 किलोमीटर का मार्च हो तो बच्चों के बीमार होने या घायल होने की भी संभावना होती है. इस स्थिति से निबटने के लिए 16 बच्चों के साथ 8 वयस्क भी चलते हैं. इस बार की ट्रेकिंग रात में शुरू होगी, जिसका पहला चरण 40 किलोमीटर का होगा. यदि कोई पैदल नहीं चल पाया तो उसे स्ट्रेचर पर ले जाया जाएगा. ट्रेकिंग इतनी मुश्किल है कि स्विस सेना ने इस ना करने की सलाह दी थी. लेकिन स्टीव क्नुषेल का अनुभव अलग रहा है.

चिकित्सकों को भी इस योजना पर कोई आपत्ति नहीं है, हालांकि वे इसके लिए अच्छी तैयारी करने की सलाह देते हैं क्योंकि आज के बच्चों को इतना चलने की आदत नहीं रह गई है. लुसान यूनिवर्सिटी में स्पोर्ट चिकित्सक जेराल्ड ग्रेमियोन का कहना है कि यदि चालीस साल पहले यह सवाल किया जाता कि बच्चों से ऐसी ट्रेकिंग करवाना लापरवाही है तो लोग हंसते.

स्टीव क्नुषेल मानते हैं कि इस तरह की ट्रेकिंग पर हर किसी को नहीं ले जाया जा सकते. पहले सामान्य ट्रेकिंग पर देखा और परखा जाता है कि कौन इस चुनौती का सामना करने में सक्षम है. स्कूली बच्चे खुद फैसला लेते हैं कि उन्हें ट्रेकिंग पर जाना है या नहीं. माता पिता को लिखकर देना होता है कि उन्हें कोई ऐतराज नहीं है. बच्चों के लिए यह ट्रेकिंग एक चुनौती है और लक्ष्य हासिल करने के बाद उन्हें संतुष्टि होती है कि मेहनत से लक्ष्य हासिल हो सकता है.