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खुला मुस्कान का राज

११ मार्च २०१४

मोनालीसा की रहस्यमयी मुस्कुराहट ने सदियों से लोगों को हैरान किया हुआ है. पिछली पांच सदियों से इसके राज को समझने की कोशिश की जा रही है. टेक्सास के एक इतिहासकार का दावा है कि उन्हें यह राज पता चल गया है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

लिओनार्दो दा विंची की मोनालीसा दुनिया की सबसे मशहूर पेंटिंग मानी जाती है. यही वजह है कि पेरिस के लूव्रे म्यूजियम में इसे एक खास जगह दी गयी है. हर दिन दुनिया भर से हजारों लोग इसे देखने पेरिस पहुंचते हैं और देख कर इस सोच में डूब जाते हैं कि आखिर इस मुस्कराहट की वजह क्या है. टेक्सास के विलियम वॉरवेल ने अपनी किताब 'द लेडी स्पीक्स: अनकवरिंग द सीक्रेट्स ऑफ मोनालीसा' में इसका राज खोल दिया है.

महिला अधिकारों की आवाज

मोनालीसा को इतालवी भाषा में ला जोकोंदा के नाम से जाना जाता है. वॉरवेल का कहना है कि ला जोकोंदा 16वीं सदी की एक नारीवादी महिला थीं जिनका मानना था कि महिलाओं की कैथोलिक चर्च में बड़ी भूमिका होनी चाहिए. उनका कहना है, "ला जोकोंदा चाहती थीं कि लोग यह बात समझें कि जैसे ही महिलाओं के सभी अधिकारों की रक्षा कर ली जाएगी, नया येरुशलम भी सामने आ जाएगा." 53 साल के इतिहासकार ने समाचार एजेंसी एएफपी से टेलीफोन पर हुई बातचीत में कहा, "ला जोकोंदा को महिला अधिकारों के एक महत्वपूर्ण स्तंभ की तरह देखा जा सकता है."

वॉरवेल को इस निष्कर्ष पर पहुंचने में 12 साल का समय लगा. अपनी 180 पन्नों की किताब में उन्होंने समझाया है कि दा विंची ने अपने जीवन काल में ओल्ड टेस्टामेंट की एक किताब के हर छंद को तस्वीर में उतारा. इस किताब में नये येरुशलम का जिक्र है जो कि एक आदर्श समाज को दर्शाता है. उनका कहना है कि दा विंची महिलाओं के पादरी बनने की वकालत किया करते थे.

कौन थीं मोनालीसा

मोनालीसा के बारे में उन्होंने बताया, "लिओनार्दो ने किताब के 14वें अध्याय से कुल 40 अलग अलग चिह्न जमा किए और उन्हें मोनालीसा पेंटिंग के बैकग्राउंड, मिडिलग्राउंड और फोरग्राउंड में इस्तेमाल किया." यही वजह है कि दाहिने कंधे के पीछे ईसा का बलिदान स्थल नजर आता है, जबकि दूसरी तरफ येरुशलम का माउंट ऑलिवेट. उनका कहना है कि मोनालीसा की पोशाक पर जो सिलवटें पड़ी हैं वे महिलाओं के दमन का प्रतीक हैं.

दरअसल मोनालीसा का असली नाम लीजा देल जोकोंदा था. इटली के एक कुलीन खानदान से नाता रखने वालीं लीसा के पति का कपड़े और रेशम का व्यापार था. उन्होंने ही दा विंची को अपनी पत्नी की पेंटिंग बनाने के लिए बुलवाया था. उस समय तक दा विंची अपनी मशहूर पेंटिंग 'द लास्ट सपर' बना चुके थे. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मोनालीसा को बनाने में तीन साल का समय लगा दिया. 1503 से 1506 के बीच वे पांच बच्चों की मां लीजा देल जोकोंदा की पेंटिंग बनाते रहे और उसके बाद भी कई सालों तक उसमें सुधार करते रहे.

मोनालीसा का कोलेस्टरॉल

मोनालीसा पर अब तक कई तरह के शोध हो चुके हैं. उनकी मुस्कराहट के अलावा उनकी आंखों में छिपे राज समझने की भी कोशिश की जा चुकी है. जापान के एक शोधकर्ता ने तो उनकी आवाज भी ढूंढ निकाली थी. और यहां तक कि एक डॉक्टर ने यह भी दावा किया कि उन्हें कोलेस्टरॉल की समस्या थी. कई लोगों का तो यह भी मानना है कि मोनालीसा महिला है ही नहीं और मुस्कराहट का राज यही है कि एक पुरुष महिला की पोशाक में छिपा है. इस बात पर भी लंबी बहस हो चुकी है कि दा विंची ने अपनी ही पेंटिंग बना डाली और उसे मोनालीसा का नाम दे दिया.

वॉरवेल इन दावों को खारिज करते हैं. उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा मोनालीसा पर शोध करते हुए खर्च दिया लेकिन आज तक उनकी इस रहस्यमयी महिला से मुलाकात नहीं हो पाई है. अब किताब लिखने के बाद वे पेरिस जा रहे हैं, जहां वे पहली बार मोनालीसा को साक्षात देखेंगे. लेकिन इस खूबसूरत मुस्कराहट को वे किसी के साथ बांटना नहीं चाहते, उनकी ख्वाहिश है कि मोनालीसा जब उन्हें मिले तो बस उन्हीं को समय दे, "मैं ला जोकोंदा को देखने के लिए भीड़ से जूझने नहीं वाला. अगर मैं पेरिस गया तो लूव्रे को मेरे लिए अलग से समय निकालना होगा, और अगर वे ऐसा नहीं करते तो मैं जाउंगा ही नहीं."

आईबी/एएम (एएफपी)