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खेल देखने से भी सेहत

२७ नवम्बर २०१३

खेलकूद में हिस्सा लेने से शरीर चुस्त होता है. लेकिन क्या आपने पहले सुना है कि खेल देखने से भी शरीर में कई ऐसी प्रक्रियाएं होती हैं जिससे शरीर सेहतमंद होता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

ऑस्ट्रेलिया में हुई एक रिसर्च के अनुसार दूसरों को कसरत करते देखने या खेलते कूदते देखने से भी शरीर को फायदा पहुंचता है. इससे दिल की धड़कन तेज होती है. शरीर में कई ऐसी रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं जैसी खुद कसरत करते समय होती हैं. अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फ्रंटियर्स इन ऑटोनोमिक न्यूरोसाइंस में छपी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी और को कसरत जैसे काम करते हुए देखने से खुद अपनी सांस भी साधारण से तेज चलने लगती है, रक्त का बहाव बढ़ता है और पसीना भी निकलता है. यहां तक कि अगर आप वीडियो में भी किसी को भागते हुए देख रहे हैं तब भी ऐसा होता है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि ऐसा पहली बार सामने आया है कि शारीरिक काम कर रहे लोगों का वीडियो देखने से संवेदी नाड़ी तंत्र प्रतिकियाएं देने लगता है. रिसर्च पर काम करने वाले वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी के मेडिकल कॉलेज के वैज्ञानिक वॉगन मेसफील्ड ने कहा, "नाड़ी की ऐसी क्रिया के बारे में मिली जानकारी से इस बात का पता चलता है कि शारीरिक और मानसिक तनाव के प्रति शरीर कैसी प्रतिक्रिया देता है." उन्होंने आगे कहा कि, "हम सभी जानते हैं कि संवेदी तंत्रिका तंत्र, जो कि हृदय, स्वेद ग्रंथियों, रक्त नलिकाओं और कोशिकाओं के लिए स्रोत हैं, कसरत के समय ज्यादा क्रियाशील हो जाता हैं. इस शोध के जरिए हमने दिखाया है कि जब हम किसी फिल्म का कोई उत्तेजना भरा सीन देखते हैं तो यह वैसे ही होता है जैसे कि आप खुद दौड़ रहे हों."

Marathonläufer
तस्वीर: Fotolia/ruigsantos

कैसे हुई जांच

रिसर्च के दौरान नौ लोगों की एक बाहरी नाड़ी में सूई डालकर नाड़ियों के इलेक्ट्रिकल सिग्नल रिकॉर्ड किए गए, जिससे कि शरीर की प्रतिक्रियाओं का सही अनुमान लगाया जा सके. इन लोगों को पहले शांत तस्वीरें दिखाई गईं और आंकड़े जुटाए गए. इसके बाद जब उन्हें 22 मिनट लंबी ऐसी फिल्म दिखाई गई जिसमें एक धावक दौड़ रहा है तो परिणाम बदल गए. मेसफील्ड के साथ इस रिसर्च पर काम करने वाले रेचेल ब्राउन ने बताया, "हालांकि इन दोनों ही स्थितियों में आए परिणामों में अंतर बहुत कम था, लेकिन वे व्यायाम की वजह से हुई उपयुक्त मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया थी." ब्राउन इस तरह की संवेदी प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड करने के क्षेत्र में अपने काम के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने कहा, "ये सभी लोग बिना किसी बाहरी शारीरिक गतिविधि के शांत बैठे थे, इसका मतलब है प्रतिक्रिया मनोवैज्ञानिक थी, यानि मस्तिष्क से जन्मी, ना कि शरीर से." इन परिणामों से उन्हें अपनी रिसर्च में मदद मिली. उन्होंने पाया कि भावनात्मक तस्वीरें या फिल्में देखने से शरीर में संवेदी नाड़ी क्रियाएं बढ़ती हैं और पसीना निकलता है.

लेकिन अगर सिर्फ खेलकूद या कसरत करते लोगों को देखने से ही काम बन जाता तो बात ही क्या थी. इससे शरीर में उत्तेजना तो बढ़ती है और एक तरह की आंतरिक वर्जिश भी होती है लेकिन अगर असल कसरत की बात हो तो बिस्तर से उठ कर खड़ा होना ही पड़ेगा और खुद भाग दौड़ करनी ही होगी.

रिपोर्ट: समरा फातिमा (एएफपी)

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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