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गंगा की सफाई दूर की कौड़ी

४ जनवरी २०१५

इस हकीकत से किसी को गुरेज नहीं कि भारत में नदियों के नाम पर अब नाले बहते हैं. जीवनदायिनी गंगा भी इस त्रासदी की शिकार है. गंगा को मां कहकर सत्ता में आई केन्द्र सरकार ने अब गंगा और अन्य नदियों की सफाई का बीड़ा उठाया है.

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तस्वीर: DW

भारतीय संस्कारों में गंगा महज एक नदी नहीं है बल्कि आत्मा के परमात्मा से मिलन का माध्यम है. ऐसा माध्यम जिसे मृत्युलोक पर मोक्षदायिनी बनाने के लिए कठोर तप कर भागीरथ जन्नत से जमीन पर उतार लाए थे. सदियों तक करोड़ों लोगों को मोक्ष का अहसास दिलाने वाली गंगा आज खुद अपनी ही संतानों से अपने वजूद को बचाने की गुहार लगा रही है. यह विडंबना सिर्फ गंगा की नहीं बल्कि उसकी अपनी सहोदरा यमुना और देश के तमाम भागों में अपना आंचल खोलकर करोड़ों जीवन संवार रही अन्य नदियों की भी है. हिमालय से धवल रुप में उतरकर मैदान तक आते आते गंगा और यमुना सड़ांध मारते उस गंदे नाले में तब्दील हो जाती हैं जिसके किनारे सिर्फ दो पल ठहरना भी दूभर हो गया है, उसके चुल्लू भर पानी में आचमन की तो बात ही छोड़िए.

खासकर 1980-90 के दशक में वैश्वीकरण की अंधी दौड़ शुरु होने के साथ ही सदानीरा नदियों के दुर्दिन भी शुरु हो गए. कारखानों का लाखों गैलन गंदा पानी हर दिन नदियों की कोख में समाने लगा. दूसरी ओर बेकाबू और गैर जिम्मेदाराना तरीके से फैले शहरों का सीवर भी उन नदियों के लिए नासूर बन गया जिन्हें गंदा करने के बाद भी सुबह शाम हम आरती उतारकर पूजते नहीं अघाते.

Kanpur Ganga Umweltverschmutzung
तस्वीर: DW

त्रासदभरी यह बदरंग तस्वीर कश्मीर में झेलम से शुरु होकर पंजाब में व्यास, दिल्ली और आगरा में यमुना, कानपुर, बनारस और पटना में गंगा से लेकर दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में साबरमती और पूरब में ब्रह्मपुत्र तक बदस्तूर दिख रही है. चार दशक बीत गए, गंगा और यमुना को साफ करने के लिए तमाम सरकारों ने जीतोड़ जतन कर डाले लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. हजारों करोड़ रुपये पानी की तरह बहाने के बाद भी श्यामा हो चुकी गंगा-यमुना गोरी न हो सकीं.

अब बनारस से उम्मीद की छोटी सी आस जगी है. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र बनारस में गंगा का कर्ज उतारने का संकल्प लेकर इसके लिए अलग से मंत्रालय बना दिया है. पिछले दो सालों से गंगा अभियान चला रही फायरब्रांड नेता उमा भारती को इसका प्रभार सौंपा गया. सरकार बनने के बाद सात महीनों से मंत्रालय के स्तर पर चल रही कार्ययोजना कवायद अब परवान चढ़ने को है.

उमा भारती ने इस पहल के पहले कदम का खुलासा करते हुए कहा है कि गंगा में बूंद भर भी गंदा पानी नहीं जाने देंगे. इसके लिए गंगा के मार्ग में जगह जगह जलशोधन संयत्र लगाए जाएंगे. सरकार के इस कदम को दिल्ली में यमुना की कसौटी पर कसा जा सकता है. तीन दशकों का अनुभव बताता है कि दिल्ली में यमुना एक्शन प्लान के तहत 22 किमी दायरे में बहने वाली यमुना पर पांच हजार करोड़ रुपये पानी में बह चुके हैं. मगर यमुना के खाते में सिर्फ गंदगी ही आई है.

अब एक्शन प्लान के तीसरे चरण में यमुना पर तीन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगने वाले हैं. ये अगले कुछ महीनों में शुरु हो जाएंगे. यहां सवाल यह है कि क्या महज एसटीपी लगने मात्र से सब कुछ दुरुस्त हो जाएगा या लचर कानून का हवाला देने वालों के संतोष के लिए नए कानून बनाने होंगे. यमुना की सफाई पर लंबे समय से काम कर रहे एसए नकवी कहते हैं कि कानून पहले से ही सख्त हैं, खासकर ग्रीन ट्रिब्यूनल की सक्रियता काफी हद तक कारगर साबित हो रही है. जरुरत है सिर्फ सरकारों को अपनी नियत साफ करने की, नदी खुद बखुद साफ हो जाएगी.

कानून कितने भी सख्त क्यों न बना दिए जाएं उन्हें लागू कराने वालों के मन में जब तक खोट रहेगा तब तक कोई भी कानून अपना असर नहीं दिखा सकता है. राजधानी दिल्ली में सरकार की नाक के तले अगर यमुना में कारखानों की गंदगी और कालोनियों का सीवर जाने से नहीं रुक पा रहा है तब फिर देश के अन्य भागों में नदियों की सफाई के अंजाम का अंदाजा लगाया जा सकता है.

भगीरथ प्रयास से जमीन पर उतरी गंगा जाति और मजहब की खाई सदियों पहले पाट चुकी है. रामायण और महाभारत काल से लेकर तुलसी और कबीर तक गंगा समाज के हर तबके की उपासना का केन्द्र रही है. नदियों को पूजने का भारतीय संस्कार गंगा-जमुनी तहजीब के रूप में हमारे सामने है. यह भविष्य ही बताएगा कि आने वाले तीन साल इस इतिहास को किस रूप में दोहराएंगे.

ब्लॉग: निर्मल यादव