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गरीबी का सिटी टूर

१७ अगस्त २०१३

आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप आगरा घूमने गए हों और आपका गाइड ताज महल दिखाने के बजाय आपसे कहे कि चलिए मैं आपको शहर की झुग्गियों और गंदे इलाकों में घुमा कर लाता हूं?बर्लिन में ऐसा भी हो रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

कुछ दिन पहले तक जरूर यह हैरानी की बात रही होगी जब लोग सिर्फ शहर की खूबसूरती देखना चाहते थे, लेकिन अब लोगों की दिलचस्पी असली शहर को जानने में बढ़ रही है. बर्लिन जैसे शहर में बड़ी संख्या में मौजूद बेघर लोग कैसे दिन गुजाते हैं, ये बताने वाले गाइड मौजूद हैं.

सड़कों का शोर शराबा, सबवे की धक्का मुक्की और गाड़ियों के हॉर्न, यह मंजर है बर्लिन के शुनेबर्ग जिले के लॉलेनडॉर्फ प्लाट्ज का. यहां पहुंचने पर लोगों को बताया जाता कि इसे आर्किटेक्ट योसेफ लेनी ने डिजाइन किया था और इसका नाम युद्ध क्षेत्र के नाम पर है लेकिन गाइड कार्स्टेन फॉस आपको ऐसा बताने के बजाए पार्क में उपलब्ध बेंचों के बारे में बताएंगे जहां रात बिताई जा सकती है. वह आसपास की चौबीसों घंटे खुली रहने वाली दुकानों और उस हर जरूरी बात से आपको अवगत कराएंगे जो एक अकेले बेघर आदमी को शहर में समय बिताने के लिए पता होनी चाहिए.

Projekt Querstadtein Obdachlose zeigen ihr Berlin
तस्वीर: DW/J.Fraczek

चार हजार बेघर

जर्मन राजधानी बर्लिन में ही करीब चार हजार बेघर लोग सड़कों पर जीवन बिता रहे हैं. हालांकि भारत या दक्षिण एशिया से आए किसी और आदमी को यह समझने में थोड़ा समय लग सकता है कि कौन बेघर है और कौन नहीं, क्योंकि इनका हुलिया आमतौर पर हमरी धारणा जैसा नहीं होता. कई बार तो सैलानियों का ध्यान भी इन पर नहीं जाता. शहर की इस सच्चाई से लोगों को रूबरू कराने के लिए ही सैली औलेख और काथारीना कूह्न ने यह खास प्रोजेक्ट शुरू किया. (स्पेन में बढ़ते बेघर)

इस तरह के सिटी टूर कोपनहेगन और लंदन जैसे बड़े शहरों में भी मौजूद हैं. इन दिनो सैलानियों को शुनेबर्ग की गलियों से परिचित कराने में अहम भीमिका निभा रहे फॉस कभी खुद भी इन्ही सड़कों पर जी रहे थे.

Plastikflaschen Pfand
तस्वीर: picture-alliance/dpa

ठंड से बचने का उपाय

टूर के लिए साथ मिलने वाली किताब में कुछ खास इलाकों का जिक्र है जैसे बानहॉफ चिड़ियाघर या फिर कायसर विलहेल्म मेमोरियल चर्च लेकिन फॉस का नजरिया इन जगहों के प्रति अलग है. चिड़ियाघर के पास फल और सब्जियों की वह दुकान जो शनिवार को भी खुली रहती है. यहां बेघर लोग सड़कों से उठा कर लाई गई शीशी बोतलें दे कर पैसे जुटा सकते हैं. चर्च के अलावा फॉस का ध्यान इस बात पर होता है कि वह सैलानियों को उस इलाके का मशहूर मार्केट दिखा सकें. यहां से सस्ते गर्म कपड़े खरीदे जा सकते हैं. इसके अलावा वे ऐसे ठिकानों के बारे में भी लोगों को बताते हैं जहां वे दिन में जाकर नहाने, कपड़े धोने या अखबार, फोन और इंटरनेट जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं.

बेघरों का ठिकाना

फॉस ने बताया कि बेघरों के लिए सामाजिक सुविधाएं जर्मनी के दूसरे शहरों के मुकाबले बर्लिन में काफी बेहतर हैं. इसी कारण बर्लिन में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. उन्होंने कहा, इस शहर की खास बात यह है कि यहां लोगों में बेघरों के प्रति नर्मदिली है. वे मानते हैं हर किसी को अपने तरीके से जिंदगी गुजारने का हक है. टूर के अंत में फॉस यह बताना नहीं भूलते कि अगर आप ऐसे लोगों की मदद करना चाहते हैं तो उनकी आंखों में आंख डाल कर देखिए और उन्हें महसूस कराइए कि आप उनकी मदद के लिए तैयार हैं. नजर फेर कर कुछ हासिल नहीं होता. फॉस कहते हैं उन्हें भी हिम्मत तब मिली जब लोगों ने उन्हें इसका एहसास दिलाया.

रिपोर्ट: जेनिफर फ्रांसेक/एसएफ

संपादन: निखिल रंजन

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