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गेम्स सही प्राथमिकता नहीं: प्रेमजी

२६ अगस्त २०१०

भारत के प्रमुख उद्यमी अजीम प्रेमजी ने नई दिल्ली में कॉमनवेल्थ खेल कराने की आलोचना की है और कहा कि इन खेलों पर जिस तरह पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है, वह कुछ ठीक नहीं लगता.

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तस्वीर: UNI

अपनी आईटी कंपनी विप्रो के साथ भारत को विश्व आईटी पटल पर लाने वाले प्रेमजी ने भारत के प्रमुख दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया में अपने लेख में कहा है कि खेलों पर 28 हजार करोड़ रुपए का खर्च गलत प्राथमिकता जैसा लगता है.

राज्यसभा के सांसद और केंद्र सरकार में खेल मंत्री रहे मणि शंकर अय्यर कॉमनवेल्थ गेम्स कराए जाने के विरोधी रहे हैं. हाल में केंद्र सरकार ने कहा कि खेलों पर संभवतः 11,500 करोड़ का खर्च आएगा. दिल्ली सरकार संरचना विकास पर साढ़े 16 हजार करोड़ खर्च कर चुकी है.

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कम मजदूरीतस्वीर: AP

प्रेमजी केंद्र सरकार के आंकड़े को दो कारणों से चिंताजनक बताते हैं. उनका कहना है कि एक तो खेल पर मूल रूप से 655 करोड़ खर्च करने की योजना थी और दूसरे, अगर अन्य खर्चों को शामिल किया जाए तो कॉमनवेल्थ गेम्स कराने का असल खर्च बहुत अधिक होगा.

कभी दुनिया के सबसे धनी लोगों में शामिल रहे अजीम प्रेमजी ने इन अतिरिक्त खर्चों में दिल्ली सरकार द्वारा किए गए खर्च के अलावा मजदूरी के असल खर्च(क्योंकि उनसे कम पगार, असुरक्षित परिस्थितियों और अमानवीय रिहायशी स्थिति में काम लिया गया), और गरीबों को नजर से दूर करने के मानवीय खर्च को शामिल किया है.

हालांकि खेलों के आयोजन को उन्होंने उत्कृष्ठता की मानवीय चाह का उत्सव बताते हुए उसे उत्सव मनाने की भारतीय मंशा जैसा बताया लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि कॉमनवेल्थ शब्द मूल रूप से सामूहिक कल्याण का परिचायक है, लेकिन क्या कॉमनवेल्थ गेम्स इस कसौटी पर खरा उतरता है.

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व्यापक गरीबीतस्वीर: AP

प्रेमजी का कहना है कि देश के रूप में भारत संसाधनों की कमी का सामना कर रहा है. उसे विकास की गति को जारी रखने के लिए प्रशिक्षित युवाओं की जरूरत है. उसे नए स्कूलों, उपलब्ध स्कूलों में बेहतर साजो सामान और अधिक शिक्षकों की जरूरत है. आईटी बादशाह प्रेमजी का कहना है कि शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी का 6 प्रतिशत निवेश करने की जरूरत है. इसके अलावा वह खेल के क्षेत्र में स्कूली बच्चों के लिए अधिक संरचना की भी मांग करते हैं.
दो दशकों के अच्छे आर्थिक विकास के बावजूद भारत को गरीब देश बताते हुए प्रेमजी ने कहा है कि हम कैसे भूल सकते हैं कि 28000 करोड़ रुपये में दसियों हजार गांवों में प्राइमरी स्कूल और हेल्थ सेंटर बनाए जा सकते थे.

रिपोर्ट: महेश झा

संपादन: ए कुमार