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गेहूं का पुराना रोग नए ख़तरनाक रूप में

२१ फ़रवरी २०१०

दुनिया भर में गेहूं की खेती के सामने गंभीर संकट. 30 साल बाद नए रूप में सामने आई पुरानी बीमारी यूजी99. वैज्ञानिकों ने कहा, जल्द कुछ नहीं किया गया तो गेहूं की खेती मर सकती है, पर्यावरण संबंधी ख़तरा भी सिर पर मंडरा रहा है.

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तस्वीर: AP

गेहूं दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से का महत्वपूर्ण अनाज है. क़रीब 10 हज़ार सालों से गेहूं की खेती हो रही है. साथ ही गेहूं के तने को स्टेम रस्ट यानी रतुआ रोग से बचाना एक बहुत बड़ी चुनौती भी है. स्टेम रस्ट एक फफूंद है. इसे यूजी99 के नाम से भी जाना जाता है. आज से क़रीब 30 साल पहले नॉर्मन बौर्लॉग इसे रोकने में सफल रहे थे. बौर्लॉग ने गेहूं की कुछ ऐसी नस्लें तैयार कीं, जो इस फफूंद को रोकने में सक्षम थीं. लेकिन 1998 से यह बीमारी एक बार फिर नये रूप में सामने आने लगी है और भयानक गति से फैल रही है.

यूजी99 को पिछले 50 सालों में गेहूं की फ़सल का सबसे बड़ा दुश्मन माना जा रहा है. इसे पहली बार पूर्वी अफ़्रीकी देश, युगांडा में पाया गया था. वहां विलियम वागोइर को फसल की जांच करते समय इसका पता चला था. एक खेत में 90 प्रतिशत फसल इस नई फफूंद की चपेट में आ चुकी थी. विलियम वौगोयर बताते हैं, ''पिछले 50 सालों से पूर्वी अफ्रीका तो क्या दुनिया के किसी भी हिस्से में इतने बड़े स्तर पर स्टेम रस्ट का प्रभाव नहीं देखा गया. ये जानकारी हमारे लिए ख़ौफ़नाक थी. ये बीमारी सभी प्रतिरोधक तोड़कर एक बार फिर सामने आई है.''

Afghanische Farmer auf Zwiebel Feld in Kunar, Afghanistan
हवा के साथ फ़ैलता है यूजी99तस्वीर: picture-alliance/ dpa

विलियम वागोइर अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के लिए काम कर रहे एक विशेषज्ञ हैं. इस ग्रुप का अहम काम गेहूं की एक ऐसी किस्म बनाना है जो यूजी99 को रोक सके. उसे बनाने के लिए विकिरण की मदद से बीज में ही बदलाव लाया जाएगा ताकि वो इस फफूंद को रोक सके.

इस तकनीक का इस्तेमाल पिछले 80 सालों में कई अलग अलग तरह की फसलों पर किया जा चुका है और इसके कारण 3000 से ज़्यादा फसलों की किस्मों को बेहतर बनाया गया है. इतना ही नहीं ये फसलें ज़्यादा पौष्टिक भी साबित हुई हैं और कठोर परिस्थितियों में भी बेहतर उपज देती हैं.

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खड़ा हो सकता है गंभीर खाद्य संकटतस्वीर: AP

लेकिन यूजी 99 फफूंद गेहूं के तने पर हमला बोलती है, जिसके कारण बीज पैदा नहीं हो पाते और जो होते भी हैं वो भी बीमार होते हैं, यानी बीमारी आगे ही बढ़ती है. ये फफूंद हवा से फैलती है. फिलहाल सभी किसान किसी भी तरह अपनी खेती को बचाने के प्रयास में जुटे हैं. जिसके लिए अलग अलग तरह के फफूंदनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन अब पर्यावरणविद फफूंदनाशकों के पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव से चिंतित हैं. बायोतकनीक के प्रोफेसर मिरियम किनयुआ का कहना है, ''किसान चुप बैठकर अपने खेत बर्बाद होते नहीं देख सकते. वो फफूंदनाशकों का इस्तेमाल करेंगे क्योंकि अगर ये नहीं होता तो 80 प्रतिशत से ज़्यादा फसल बेकार हो जाएगी.''

यूजी 99 से लड़ने योग्य बीज बनाने के अभियान के अंतर्रगत दुनिया के 20 अलग अलग देशों से विकिरण उपचारित बीज लाकर केनिया के खेतों में बोये गए हैं. उन की फसल को वैज्ञानिक ध्यान से देख कर और ऐसी किस्मों को चुनकर उनका उत्पादन बढाएंगे जो यूजी 99 से प्रभावित न हों.

रिपोर्ट: राम यादव

संपादन: ओ सिंह