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गौहत्या की मनाही है, और इंसान की हत्या की?

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ईशा भाटिया सानन
३० सितम्बर २०१५

घर में बीफ होने के चलते एक व्यक्ति की जान गयी, ईशा भाटिया पूछ रही हैं कि ये कौन सा समाज है, जहां जानवर की जान आदमी से ज्यादा कीमती है? ये कौन सी मानसिकता है, जिसमें गौहत्या की तो मनाही है लेकिन इंसान की हत्या की नहीं?

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An der Grenze zwischen Indien und Bangladesch
तस्वीर: S. Rahman/Getty Images

लोकतंत्र अपने नागरिकों को कई तरह के अधिकार देता है. इनमें सबसे बड़ा मूलभूत अधिकार होता है आजादी का. कुछ भी कहने की आजादी, कुछ भी बनने की आजादी, अपने धर्म के अनुसार जीने की आजादी. लेकिन किसी को मारने की आजादी? अपने धर्म के अनुरूप किसी और को भी उसमें ढालने की आजादी? नहीं, ना तो लोकतंत्र किसी को ऐसी आजादी देता है और ना ही धर्म!

भारत का दुर्भाग्य है कि यहां लोग बेवजह दूसरों का हिमायती बनने को भी अपना अधिकार समझते हैं. यहां रात में क्लब से निकली लड़की के कपड़े इसलिए फाड़ दिए जाते हैं ताकि उसे बताया जा सके कि वो बदचलन है. यहां एक दूसरे का हाथ थामे विवाहित जोड़े को इसलिए गिरफ्तार कर लिया जाता है क्योंकि प्यार दिखाना लोगों को गुनाह लगता है. और यहां किसी की इसलिए जान ले ली जाती है क्योंकि 'शायद' उसके घर में गौमांस रखा हुआ है.

Manthan in Lindau
ईशा भाटियातस्वीर: DW

दादरी में कल रात ऐसी ही अफवाह फैली और इस एक अफवाह के चलते भीड़ ने घर में घुस कर एक इंसान की जान ले ली. असभ्य समाज की यह मिसाल देश की राजधानी से महज 45 किलोमीटर की दूरी पर मिली है. परिवार ने जो शिकायत दर्ज कराई है उसमें यह भी कहा गया है कि भीड़ ने परिवार की महिलाओं की इज्जत पर हाथ डालने की भी कोशिश की. अगर वाकई इस भीड़ का गुस्सा अपने धर्म के अपमान पर था, तो क्या वह भीड़ इसका जवाब दे सकती है कि क्या कोई धर्म किसी की मां, बहन और बेटी की इज्जत पर हाथ डालने को सही कहता है? क्या दुनिया का कोई भी धर्म किसी की जान लेने की इजाजत देता है?

लेकिन भीड़ का गुस्सा तो इस व्यक्ति की जान ले कर भी शांत नहीं हुआ. जब पुलिस बीच में आ गयी, तो यह गुस्सा और भी भड़क उठा. पुलिस की गलती क्या है यह भी जान लीजिए. पुलिस ने छह लोगों को हिरासत में ले लिया था. जिस भीड़ में पहले सौ लोग थे, अब वो पुलिस के खिलाफ चार गुना हो चुकी थी. पहले सिर्फ एक गांव के लोग थे, अब आसपास वाले भी जुड़ गए थे. और सही भी तो है. अब बताइए, भला पुलिस की हिम्मत कैसे हुई, जुर्म करने वालों को गिरफ्तार करने की! आखिर पुलिस का काम है कि फिल्मों की तरह अपराध हो जाने के बाद मौका-ए-वारदात पर पहुंचे, रिपोर्ट दर्ज करे और मामले को फाइलों में दबा दे.

लेकिन यहां तो पुलिस ने जांच शुरू कर दी. और तो और पुलिस घर से मांस का सैंपल भी ले कर गयी है ताकि पता लगाया जा सके कि वो वाकई बीफ था या नहीं. आखिरकार उत्तर प्रदेश में बीफ खाने और रखने पर मनाही है. तो क्या मीट के बीफ होने पर भीड़ का अपराध कम हो जाएगा? ये कौन सा समाज है, जहां जानवर की जान आदमी से ज्यादा कीमती है? ये कौन सी मानसिकता है, जिसमें गौहत्या की तो मनाही है लेकिन इंसान की हत्या की नहीं?

ब्लॉग: ईशा भाटिया

कृत्रिम मांस