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ग्राहकों की ईमानदारी से चलती है दुकान

२० जनवरी २०११

इस दुकान के सामने से गुजरते हुए आपको कुछ अजीब-सा लगेगा और बरबस ही कदम ठिठक जाएंगे. कुछ देर वहां रहने के बाद आप आश्चर्य से भर उठेंगे और अनायास ही मुंह से निकल पड़ेगा कि क्या आज के दौर में भी ऐसा संभव है !

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तस्वीर: DW

आखिर इस दुकान में खास क्या है? इसकी खासियत यह है कि इसमें कोई दुकानदार नहीं बैठता. लोग अपनी जरूरत का सामान निकाल कर खुद ही कैश बाक्स में पैसे डाल देते हैं.

यहां सवाल उठना लाजिमी है कि इसमें नई बात क्या है? विदेशों ही नहीं अब तो भारत में भी ऐसे कई दुकानें बिना विक्रेता के नजर आती है. लेकिन उन तमाम दुकानों में खरीदारी कंप्यूटर व क्रेडिट कार्ड के जरिए होती है. जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे भी लगे होते हैं.

Indien Gopal Majumdar Laden Geschäft
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ऐसे में जब आपको पता चलेगा कि यह दुकान पश्चिम बंगाल के उत्तर 24-परगना जिले के ठेठ कस्बे बशीरहाट में है तो आश्चर्यमिश्रित झटका लगेगा. इस दुकान गोपाल स्टोर्स के मालिक गोपाल मजुमदार का पूरा दिन तो उभरते फुटबाल खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने ही बीत जाता है. वे भला दुकान पर कब बैठेंगे. वे कोलकाता के नामी क्लबों की ओर से फुटबाल खेल चुके हैं.

गोपाल सुबह-सबेरे अपनी दुकान खोल देते हैं. वे चाय बना कर वहां रखे थर्मसों में भर देते हैं और फिर मैदान की ओर निकल पड़ते हैं. किशोरों को फुटबाल के नए-नए गुर सिखाने. दुकान पर आने वाले थर्मस से चाय निकाल कर पीते हैं और उसके पैसे गल्ले में डाल देते हैं. दुकान में चाय और बिस्कुट के अलावा कई अन्य चीजें भी रखी हैं. शीशे के बरतनों में रखे सामानों की कीमत उन पर लिखी होती है.

Indien Gopal Majumdar
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इसके अलावा अलग से एक रेट लिस्ट भी वहां टंगी है. गोपाल बाबू बीच-बीच में आ कर थर्मसों में चाय भर जाते हैं. बीते कोई बीस वर्षों से यह सिलसिला चल रहा है. लेकिन क्या मजाल जो आज तक किसी ने बिना पैसे चुकाए कोई सामान लिया हो. गोपाल कहते हैं, ‘स्थानीय लोगों के प्यार व भरोसे की बदौलत ही उनकी दुकान चल रही है.'

जीवन का कड़वा सच

गोपाल की इस अनूठी दुकान के पीछे उनके जीवन का एक कड़वा सच भी छिपा है. उम्र के 67 बसंत पार चुके गोपाल युवावस्था में दो-दो बार बशीरहाट के सर्वश्रेष्ठ फुटबालर चुने जा चुके हैं. उनकी देख-रेख में फुटबाल के गुर सीख कर क्लब, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाले फुटबालरों की सूची काफी लंबी है. उनमें पूर्व भारतीय कप्तान आलोक दास भी शामिल हैं.

Indien Gopal Majumdar
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उस दौरान गोपाल ने नौकरी के लिए काफी भागदौड़ की. वह बताते हैं कि उस समय तमाम राजनीतिक दलों ने वादे तो खूब किए. लेकिन किसी ने एक छोटी-मोटी नौकरी तक का इंतजाम नहीं किया. इसके बाद अपनी कुल जमा-पूंजी खर्च कर उन्होंने वर्ष 1982 में एक फुटबाल प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की. लेकिन उससे पत्नी व तीन बेटियों के भरे-पूरे परिवार का खर्च कैसे चलता ? इसलिए गोपाल ने यह दुकान खोल ली.

गोपाल ने दुकान तो खोल ली. लेकिन समस्या यह पैदा हुई कि दुकान पर आखिर बैठेगा कौन? गोपाल बाबू का समय तो मैदान पर ही बीत जाता था. उन्होंने इसका हल यह निकाला कि हर चीज पर कीमत लिख दी. क्या चोरी का डर नहीं लगा? इस सवाल पर वह कहते हैं, ‘डर कैसा. लोगों के विश्वास के भरोसे ही तो यह दुकान खोली थी. आज तक ऐसा नहीं हुआ है कि किसी ने पैसा दिए बिना एक कप चाय भी भी हो.' गोपाल ने अपनी दुकान पर उन तमाम पदकों को भी सजा रखा है जो उनको फुटबाल खेलने के लिए मिले थे.

फुटबॉल का द्रोणाचार्य

गोपाल इलाके में काफी लोकप्रिय हैं. लोग उनको फुटबाल का द्रोणाचार्य कहते हैं. इलाके का बच्चा-बच्चा उनको और उनकी दुकान को पहचानता है. वहां चाय पी रहे कल्याण मंडल कहते हैं, ‘यह दुकान तो हम जैसे ग्राहक ही चलाते हैं. यह महज एक दुकान नहीं, बल्कि भरोसे की मिसाल है.' तमाम अभावों के बावजूद गोपाल में स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा है. बीते कुछ वर्षों के दौरान कुछ क्लबों ने उनकी सहायता के लिए चैरिटी मैच खेलने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन गोपाल ने हर बार विनम्रता से मना कर दिया. कई अन्य संगठनों ने भी मदद की पेशकश की थी. लेकिन गोपाल ने उनकी सहायता कबूल नहीं की.

गोपाल बाबू कहते हैं कि जब नौकरी के लिए दर-दर भटक रहा था तब तो किसी ने कोई सहायता नहीं की. अब इस उम्र में किसी से सहायता लेकर क्या करूंगा. मौजूदा दौर में गोपाल बाबू का जीवन और उनकी यह दुकान अंधेरे में उजाले और उम्मीद की एक पतली लेकिन बेहद मजबूत किरण तो है ही.

रिपोर्ट: प्रभाकर मणि तिवारी,कोलकाता

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य