1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ग्राहकों की मदद के 50 साल

पेटर हिल्ले/एमजे४ दिसम्बर २०१४

जर्मनी में 50 साल पहले उपभोक्ता उत्पादों की जांच के लिए श्टिफ्टुंग वारेनटेस्ट फाउंडेशन बना था. इतने सालों से यह जर्मन उपभोक्ताओं का मार्गदर्शन कर रहा है. हालांकि टेस्टिंग कंपनी के कुछ फैसलों पर सवाल भी उठे हैं.

https://p.dw.com/p/1DzPG
Stiftung Warentest Pressematerial Jubiläum
तस्वीर: Stiftung Warentest

जर्मन उपभोक्ता संगठन श्टिफ्टुंग वारेनटेस्ट ने 1966 में ब्लेंडर की रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था, "80 लाख घरेलू महिलाएं करछुल छोड़कर इलेक्ट्रिक यंत्र का सहारा ले रही हैं." सुपर रोबट और कुषेनमाक्सी जैसे कंपनियों के 10 प्रकार की ब्लेंडर मशीनों का टेस्ट किया गया, लेकिन टेस्ट में हर एक यंत्र में खामियां पाईं. पचास साल बाद आज जर्मनी में लाखों पुरुष भी किचेन में काम करते हैं. सुपर रोबट और कुषेनमाक्सी अब बाजार में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन वारेनटेस्ट अभी भी सामानों की जांच कर रहा है. 4 दिसंबर 1964 को अपनी स्थापना के बाद से उपभोक्ता संगठन ने करीब 100,000 सामानों की जांच की है.

इलेक्ट्रिक टूथब्रश और वाशिंग मशीन से लेकर कपड़ों और पर्यटन पैकेजों के टेस्टर उपभोक्ताओं का पचास साल से मार्गदर्शन कर रहे हैं. कंपनी के निदेशक हुबुर्टुस प्रिमुस का कहना है कि बाजार में ढेर सारे सामानों के उपलब्ध होने से ये टेस्ट ग्राहकों के लिए महत्वपूर्ण हो गया है. "हमने अपने टेस्ट से इन उत्पादों को बेहतर बनाने में भी योगदान दिया है. ऊर्जा और बिजली बचाने वाली विश्वविख्यात वॉशिंग मशीनों को हमने बढावा दिया है. हमने तकनीक के आधुनिकतम स्तर की जांच की है और बहुत से निर्माताओं ने उसका अनुसरण किया है."

1966 में वारेनटेस्ट को बाजार में मौजूद ब्लेंडरों की संख्या बहुत ज्यादा लगी थी. तथाकथित आर्थिक चमत्कार की वजह से जर्मनी में समृद्धि आई थी. द्वितीय विश्व युद्ध के अभाव के दिनों के बाद दुकानों के रैक फिर से भरे पड़े थे. दुकानों की खिड़कियां विज्ञापनों से भरी थीं. तत्कालीन जर्मन चांसलर कोनराड आडेनावर ने 1962 में संसद में कहा था, "जर्मन सरकार लोगों में कीमत के प्रति जागरूकता पैदा करने को जरूरी मानती है." उत्पादों में प्रतियोगिता बढ़ाने के लिए सरकार ने सामानों की तटस्थ जांच के लिए सार्वजनिक संस्था बनाने का फैसला लिया.

मॉडल अमेरिका

दो साल बाद वाणिज्यमंत्री कुर्ट श्मुकर ने श्टिफ्टुंग वारेनटेस्ट की स्थापना की. सरकारी मदद से उपभोक्ता संगठन का गठन हुआ. प्रिमुस कहते हैं कि शुरु से ही तय हुआ की संस्था कॉरपोरेट तरीके से काम करेगी. "हमें प्रांसगिक रहना होगा. टेस्ट का प्रकाशन करना होगा." इस बीच संस्था अपने बजट का 85 फीसदी खुद कमाती है. मुख्य आय नियमित रूप से प्रकाशित होने वाली टेस्ट पत्रिका से होती है. जर्मन सरकार हर साल 50 लाख यूरो की मदद देती है.

Stiftung Warentest Pressematerial Jubiläum
तस्वीर: Stiftung Warentest

श्टिफ्टुंग वारेनटेस्ट का आदर्श अमेरिका का कंज्युमर यूनियन था जो 1930 से ही उत्पादों के टेस्ट का प्रकाशन कर रहा था. इस बीच नीदरलैंड्स, पुर्तगाल और यूरोप के दूसरे देशों में भी इस तरह की संस्थाएं हैं. लेकिन शायद ही किसी और देश में उपभोक्ता संगठन का इतना ज्यादा प्रभाव है. सालों तक जर्मन टेस्ट पर भरोसा करते रहे हैं और बहुत अच्छा का सर्टिफिकेट पाना सफलता की सीढ़ी रहा है. प्रिउस कहते हैं, "यदि किसी छोटी कंपनी के उत्पाद को खराब का सर्टिफिकेट मिल जाए तो यह उसके अस्तित्व को नुकसान पहुंचा सकता है. हम इसका ख्याल रखते हैं."

चॉकलेट कांड

इस जिम्मेदारी का बोझ श्टिफ्टुंग वारेनटेस्ट हमेशा नहीं उठा पाया है. हैम्बर्ग के पर्यावरण संस्थान के मिषाएल ब्राउनगार्ट जैसे आलोचकों की शिकायत है, "श्टिफ्टुंग आजकल की चुनौतियों से निबट नहीं पा रहा है. उसमें सुधार की जरूरत है." शिकायत यह भी है कि संस्था इंटरनेट जैसी आधुनिक तकनीक की संभावनाओं का लाभ नहीं उठा रही है. टेस्ट के तरीकों में पारदर्शिता की भी मांग की जा रही है. ब्राउनगार्ट कहते हैं, "इस समय ऐसा है कि वे मनमाने तरीकों से टेस्ट करते हैं." और चूंकि वह आमदनी के लिए पत्रिकाओं की बिक्री पर निर्भर है उस पर विवाद खड़ा करने के आरोप भी लगते हैं.

इसकी वजह से उसे अदालतों में भी घसीटा जाता है. हाल ही में रिटर स्पोर्ट कंपनी ने अपने नट चॉकलेट को खराब सर्टिफिकेट मिलने के कारण श्टिफ्टुंग वारेनटेस्ट पर मुकदमा कर दिया. टेस्टरों का कहना था कि पैकेट पर प्राकृतिक सुगंध लिखा था जबकि उन्होंने कृत्रिम सुगंध के निशान पाने का दावा किया था. अदालत ने रिटर स्पोर्ट के हक में फैसला सुनाया हालांकि प्राकृतिक सुगंध के स्रोत का पता नहीं चल पाया. वारेनटेस्ट के प्रमुख प्रिउस का कहना है कि संस्था ने इस मुकदमे से भविष्य के लिए सबक लिया है.

इस बीच बहुत से ग्राहक भी उत्पादों के बारे में अपनी राय इंटरनेट पर डालने लगे हैं जो लोगों को खरीद में मदद देते हैं. लेकिन प्रिमुस का कहना है कि इसकी वजह से उनकी संस्था निरर्थक नहीं हो गई है. निष्पक्ष जानकारी अब भी हर खरीदार के लिए मददगार है. 1966 में जिस ब्लेंडर को खास तौर पर अच्छा बताया गया था उसका उत्पादन आज भी हो रहा है. उन दिनों के टेस्टर पूरी तरह गलत नहीं थे.