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ग्रीक पोकर में अंगेला मैर्केल की जीत

बारबरा वेजेल/एमजे१३ जुलाई २०१५

अलेक्सिस सिप्रास शिखर सम्मेलन के बाद फिर से इतिहास की गलत व्याख्या कर रहे हैं और नतीजों को अच्छा बता रहे हैं. डॉयचे वेले की बारबरा वेजेल का कहना है कि शिखर भेंट की असली विजेता जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल हैं.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/J.-C. Verhaegen

आखिर में जर्मन चांसलर मैर्केल खतरे को टालने में कामयाब रहीं. ब्रसेल्स में लंबी बैठक के बाद ग्रीस के यूरोजोन से बाहर निकलने का खतरा टल गया, कम से कम अभी के लिए. और यदि तीसरे बेलआउट की वार्ता विफल भी हो जाए, तो उसके लिए जिम्मेदार अंगेला मैर्केल नहीं होंगी. वे साबित कर सकेंगी कि उन्होंने आखिरी समय तक ग्रीस के विद्रोही प्रधानमंत्री के साथ सौदेबाजी की. अंत में सिप्रास खुद भी थके हुए लग रहे थे. मैर्केल ने एक बार फिर रात की बैठकों में अपनी दृढ़ता को दिखाया. सिप्रास मैर्केल की इख्तियार का मुकाबला नहीं कर पाए.

नया सुधार पैकेज

नए बेलआउट प्रोग्राम के साथ जुड़ी शर्तों में सभी जरूरी और सालों से नजरअंदाज किए जा रहे सुधार शामिल हैं, जो ग्रीस को आखिरकार स्वाबलंबी बनाएंगे. हम याद करें कि किस तरह ग्रीस ने पेंशन सुधारों के खिलाफ आवाज उठाई थी. सिप्रास को इस शिखरभेंट में काफी कुछ स्वीकार करना पड़ा, वैल्यू ऐडेड टैक्स में वृद्धि, श्रम बाजार के अलावा ट्रेड यूनियन, न्यायपालिका, बैंक, पेंशन और नौकरशाही संरचना में सुधार, ग्रीस को हर कहीं सुधार लाना होगा. काम न करने वाला ग्रीक राज्य अंततः सक्षम और आधुनिक बनाया जाएगा. रात में ही ग्रीक समर्थन ने ट्वीट करना शुरू कर दिया था कि यह सत्तापहरण (#दिसइजएकू) है. वे सही थे.

Barbara Wesel Studio Brüssel
तस्वीर: DW/G. Matthes

यदि ग्रीस की सरकार ने फरवरी में विश्व क्रांति की न सोची होती और उसके बदले कर्जदाताओं के साथ सहमत हो गए होते तो शर्तें बहुत कम सख्त रही होतीं. लेकिन महीनों तक आगा पीछा करने के बाद सिप्रास सरकार की अक्षमता के कारण यूरो ग्रुप ने भरोसा खो दिया था. यूरोपीय संयम को खत्म करने का काम ग्रीस में जनमत संग्रह ने किया जिसमें ग्रीक मतदाताओं ने नहीं का समर्थन किया. उसके बाद तो सिप्रास के सबसे अच्छे दोस्त यूरोपीय आयोग के प्रमुख जाँ क्लोद युकंर भी नाराज हो गए. और अब ग्रीस के प्रधानमंत्री ब्रसेल्स के बेलआउट प्रोग्राम को अपनी बड़ी कामयाबी बता रहे हैं, हालांकि मतदाताओं ने इसे कुछ दिन पहले खारिज कर दिया था. यह ग्रीक लोकतंत्र है.

मैर्केल की जीत

अंगेला मैर्केल ने यूरोजोन की एकता बचा ली और उसके साथ अपनी राजनीतिक विरासत भी. वे अब बेदिल और नियम कायदे वाली नहीं लग रहीं क्योंकि ग्रीस के लिए और 86 अरब यूरो कोई छोटी रकम नहीं है. और सिप्रास ने सुधार की हर मांग को मान लिया है, उसका आसानी से बचाव किया जा सकता है. ग्रीक जनता को उनके सौभाग्य के लिए जोर डालना होगा. उन्हें धन के अलावा उदारीकरण और आधुनिकीकरण भी मिल रहा है जो वे चाहते भी नहीं थे. अंत में उन्हें इसका फायदा भी होगा, ये दलील है.

आलोचक ग्रीस के लिए वर्साय संधि की बात कर रहे हैं, जिसके साथ पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर कई शर्तें थोपी गई थी. इसके साथ कई सवाल भी जुड़ें हैं. क्या सिप्रास इसे राजनीतिक तौर पर झेल पाएंगे, या वे और उनका सरकारी बहुमत इसकी भेंट चढ़ जाएंगे. वे मतदाता चुनावी वादों का तोड़ा जाना माफ करेंगे? और क्या ग्रीस अपनी भ्रष्ट संस्कृति और दिवालिया होने के अतीत के साए में सुधार के लायक हैं? अच्छे अंत की अभी भी गारंटी नहीं है. सुधार नाकाम हो सकते हैं और सीरिजा सरकार उसका भीतरघात कर सकती है. लेकिन नियंत्रक फुर से ग्रीस में होंगे और वे हर वयदे के पूरा किए जाने पर पैनी निगाह रखेंगे. सिप्रास ने एक बात सीखी है, जो अंगेला मैर्केल से भिड़ता है उसे लंबी सांस की जरूरत होती है. वे सत्ता की राजनीति की मास्टर हैं. ग्रीस का ड्रामा अभी खत्म नहीं हुआ है. अभी अगला सीन बाकी है.