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चांसलर मैर्केल का सियासी अंत करीब है

इनेस पोल
२६ सितम्बर २०१८

चांसलर मैर्केल की पार्टी में उठा पटक से साफ है कि अपनी पार्टी में चीजें उनके हाथ से फिसल रही हैं. DW की मुख्य संपादक इनेस पोल कहती हैं कि पार्टी में अव्यवस्था से मैर्केल सरकार की समय से पहले विदाई का खतरा पैदा हो रहा है.

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Bundeskanzlerin Angela Merkel Volker Kauder im Bundestag Berlin
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Kembowski

संसदीय समूह के नेताओं के काम की थोड़ी सी भी सार्वजनिक चर्चा होने लगे तो उन्हें सबसे सफल मान लिया जाता है. जर्मनी की राजनीतिक व्यवस्था में, उनका काम पार्टी के भीतर अपने नेताओं के लिए बहुमत जुटाना होता है. अगर पार्टी का नेता चांसलर भी हो तो, संसदीय समूह के नेताओं का काम यह सुनिश्चित करना है कि सरकार प्रमुख कम से कम टकराव के साथ अपना काम कर पाए. सैद्धांतिक रूप से ऐसा है.

लेकिन जर्मनी की मौजूदा संघीय सरकार में कुछ भी इतना सहज नहीं चल रहा है. जब गठबंधन के लिए लंबी वार्ताएं चल रही थीं तो उनके साथ साजिशें, इस्तीफे और नए चुनावों की आशंकाएं भी चल रही थीं. और आम चुनावों के लगभग एक साल बाद, अब यह बस कुछ समय की बात दिखती है जब सत्ताधारी गठबंधन भरभरा कर गिर जाएगा और जर्मनी को नई सरकार तलाशनी होगी.

बगावत

बात सिर्फ सत्ताधारी पार्टियों में चल रही कुत्ते बिल्ली जैसी लड़ाई की नहीं है और ना ही इसकी वजह यह है कि उन्होंने सत्ता के अंदरूनी संघर्ष के कारण जनता के बीच अपनी बची खुची विश्वसनीयता भी खो दी है

अब अंगेला मैर्केल ने अपनी पार्टी के भीतर ही बहुमत खो दिया है. लंबे समय से उनके विश्वासपात्र और संसदीय समूह के नेता रहे फोल्कर काउडेर को अंदरूनी बगावत के तहत मतदान के जरिए पद से हटा दिया गया है. इस बगावत को खत्म करने का एक ही तरीका है: नए चुनाव और वो भी मैर्केल के बिना. मैर्केल वह महिला हैं जो पिछले 13 साल से जर्मनी और यूरोप का भाग्य तय कर रही है.

एक अंजान से वित्तीय विशेषज्ञ राल्फ ब्रिंकहाउस को उस समय सीडीयू संसदीय समूह का नेता चुना गया जब अमेरिकी राष्ट्रपति डॉ़नल्ड ट्रंप संयुक्त राष्ट्र में भाषण दे रहे थे और उन्होंने फिर एक बार जर्मनी पर जुबानी हमला किया, यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति पर अजीबो गरीब छींटाकशी की.

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DW की मुख्य संपादक इनेस पोलतस्वीर: DW/P. Böll

मौजूदा जर्मन संसद के बहुत सारे सदस्यों को देख कर ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें स्थिति की गंभीरता का अहसास ही नहीं है. नागरिकों ने उन्हें इसलिए चुना था कि देश की भलाई के लिए काम करें, ना कि इसलिए कि फालतू की बातों पर चर्चा करने के लिए वे हफ्तों तक सरकार को ना चलने दें. इससे दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी और मजबूत हो रही है.

पहले ही दिन से, इस संघीय सरकार के पास कोई साझा राजनीतिक एजेंडा नहीं था. और सबसे बड़ी बात, इस मुश्किल समय में जर्मनी का नेतृत्व करने के लिए काबलियत वाले अहम नेताओं की जरूरत है. इन नेताओं के बीच अकेली भरोसेमंद नेता मैर्केल थीं. वही थीं जो सत्ताधारी गठबंधन और अपनी पार्टी में गहरे मतभेदों को दूर करती रहीं. लेकिन अब ऐसा नहीं रहा.

मैर्केल की रु़ढ़िवादी क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) और उसकी बवेरियाई सहोदर पार्टी सीएसयू के सदस्यों ने ना सिर्फ काउडेर को पद से हटा दिया है, बल्कि इस मुश्किल वक्त में चांसलर को भी सार्वजनिक तौर पर नुकसान पहुंचाया है. ऐसे में, अब सवाल यह नहीं है कि क्या मैर्केल का सियासी अंत निकट है, बल्कि सवाल यह है कि अब हमें कितनी जल्दी यह झेलना होगा.

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