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चीनी राष्ट्रपति की ऐतिहासिक पाक यात्रा

२१ अप्रैल २०१५

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा का इसलिए तो महत्व है ही कि वे एक दशक में वहां जाने वाले पहले चीनी राष्ट्रपति हैं. वह इसलिए भी अहम है कि इस दौरान दोनों देशों ने 46 अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/Zumapress/Lan Hongguang

इस दौरे के बाद चीन ने निवेश और आर्थिक मदद के मामले में अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है. 2002 से अब तक अमेरिका ने पाकिस्तान को 31 अरब डॉलर दिए हैं और इस धनराशि का दो-तिहाई सुरक्षा की मद में था. चीन पाकिस्तान को छह अरब डॉलर मूल्य की आठ पनडुब्बियां भी देगा और इसके बाद पाकिस्तान की पनडुब्बियों का बेड़ा दोगुना हो जाएगा.

इन सब बातों से भी अधिक चिंताजनक बात भारत के लिए यह है कि चीनी राष्ट्रपति ने आतंकवादविरोधी प्रयासों के लिए पाकिस्तान की सराहना की है, वह भी तब जब दो दिन पहले ही जमात उद-दावा के प्रमुख और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी घोषित हो चुके हाफिज मुहम्मद सईद ने एक बार फिर भारत के खिलाफ जिहाद छेड़ने की सार्वजनिक रूप से घोषणा की है और मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों की साजिश रचने में मुख्य भूमिका निभाने वाले जकीउर्रहमान लखवी को जेल से रिहा कर दिया गया है.

चीन के सुदूर पश्चिम में स्थित शिंचियांग प्रांत में ऊइगुर मुस्लिम भी उसके लिए समस्या खड़ी करते रहते हैं और पाकिस्तानी जिहादी गुटों के प्रभाव के वहां तक फैलने की आशंका बनी रहती है, लेकिन इसके बावजूद चीन ने पाकिस्तान के साथ अभूतपूर्व आर्थिक संबंध स्थापित करने का फैसला लिया है. इस फैसले का एक उद्देश्य पाकिस्तान को ऊर्जा के क्षेत्र में स्वावलंबी बनाना भी है ताकि वह ऊर्जा की कमी को दूर करके औद्योगीकरण की राह पर तेजी से आगे बढ़ सके. खबर है कि चीन और पाकिस्तान ने खैबर पख्तूनख्वा में एक पनबिजली परियोजना लगाने के लिए वित्तीय समझौते को अंतिम रूप दे दिया है और पाकिस्तान के नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर में भी एक परियोजना लगाने पर विचार किया जा रहा है.

Chinas Präsident Xi Jinping in Indien Premierminister Narenda Modi
तस्वीर: picture-alliance/AP/Press Trust of India

चीन की योजना है कि शिंचियांग से पाकिस्तान के नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर होते हुए बलूचिस्तान-स्थित ग्वादर बंदरगाह तक एक तीन हजार किलोमीटर लंबा आर्थिक गलियारा तैयार किया जाए ताकि वह स्ट्रेट ऑफ मलक्का वाला समुद्री रास्ता लेने से बच जाये. हिंद महासागर में भारत की बढ़ती भूमिका पर अंकुश लगाने, भारत के बरक्स पाकिस्तान को खड़ा करने और इस तरह समूचे दक्षिण एशिया क्षेत्र में अपना प्रत्यक्ष या परोक्ष वर्चस्व स्थापित करने की यह चीनी योजना निश्चय ही भारत के लिए काफी बड़ी चुनौती पेश करती है, हालांकि चीन ने कहा है कि उसे इस महत्वाकांक्षी योजना से किसी प्रकार का भय महसूस करने की जरूरत नहीं है. इस योजना के तहत सड़कों, रेल लाइनों, तेल की पाइपलाइनों आदि का एक जटिल जाल तैयार किया जाएगा.

अगले माह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर जा रहे हैं. वहां उन्हें चीन सरकार को भारत के सरोकारों और आशंकाओं से अवगत कराना होगा. प्रस्तावित आर्थिक गलियारे का एक हिस्सा गिलगित-बाल्तिस्तान से होकर गुजरेगा जो 1947 तक अविभाजित जम्मू-कश्मीर राज्य का अंग था. यह एक विवादित क्षेत्र है और जब तक कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच किसी प्रकार का अंतिम समझौता नहीं हो जाता, तब तक विवादित ही बना रहेगा.

लेकिन इसके साथ ही यह भी सही है कि इस महत्वाकांक्षी योजना की सफलता बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगी कि बलूचिस्तान में चल रहा विद्रोह किस करवट बैठता है. पाकिस्तान का आरोप रहा है कि वहां के विद्रोहियों को भारत से मदद मिलती है जबकि भारत इस आरोप का खंडन करता रहा है. हकीकत क्या है, यह स्पष्ट नहीं है. यदि इस योजना को सफल होना है, तो चीन को पाकिस्तान को यह समझाना होगा कि उसे आतंकवाद को शह देने की नीति छोड़नी होगी. लेकिन क्या वह ऐसा करने में सफल होगा? जो भी हो, भारत को अगले कुछ वर्षों के घटनाक्रम पर गहरी नजर रखनी होगी.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार