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चीन में धराशायी लोकतंत्र की उम्मीद

१२ मार्च २०१८

लंबी चौड़ी अर्थव्यवस्था, दुनिया के कोने कोने में कारोबार और जीवन के कई क्षेत्रों में विकास ने चीन में लोकतंत्र की उम्मीद भी दे दी थी. शी जिनपिंग ने सत्ता अनिश्चितकाल के लिए अपने हाथ में लेकर सब धराशायी कर दिया.

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Xi Jinping
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Ng Han Guan

लंबे से समय चीन के विशेषज्ञ रहे ओरविल शेल की 1975 में पहली चीन यात्रा की कई यादें हैं. चीन में तब सांस्कृतिक क्रांति का दौर था और बागडोर माओ त्से तुंग के हाथ में थी. चीनी लोगों को राजनीतिक गलतियों के लिए बेइज्जत करना, पीटना यहां तक कि जान से मार देना आम बात थी.

चार साल बाद जब ओरविल वापस लौटे, तब हालात काफी बदल चुके थे. माओ की मौत हो चुकी थी और देश तेंग शियाओपिंग के नेतृत्व में सुधारों के रास्ते पर बढ़ चला था. सुधार का डंका इतने जोरों से बज रहा था कि बीजिंग में कई लोगों ने तो बकायदा अपने घरों की दीवार पर पिछले दौर की ज्यादतियों की आलोचना करने और लोकतंत्र का समर्थन करने वाले बड़े पोस्टर लगा रखे थे.

न्यू यॉर्क की एशिया सोसायटी में सेंटर ऑन यूएस चाइना रिलेशंस के निदेशक शेल कहते हैं, "चीन अचानक संपर्कों से दूर रहने वाले दुश्मन से बदल कर काफी खुला और बातचीत करने वाले देश बन गया." इस खुलेपन और तेंग के बाजार वाले अंदाज में आर्थिक सुधारों ने ऐसी अटकलों को जन्म दिया कि चीन आखिरकार एक लोकतंत्र बन जाएगा.

शी जिनपिंग के अनिश्चित काल तक सत्ता अपनी मुट्ठी में कर लेने के बाद अब सब कुछ बदल गया है, पश्चिम के ज्यादातर विश्लेषक अब यही मान रहे हैं. शेल का कहना है, "पहले दोनों पक्षों ने यही माना था कि चीन ज्यादा लोकतांत्रिक होने की कोशिश कर रहा है. शी ने साफतौर से यह तय कर दिया है कि अब ऐसा कोई दावा नहीं है... कि चीन ज्यादा लोकतांत्रिक और खुला बनेगा."

तेंग के शासन में सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने छोटे स्तर पर मुक्त उद्यमों को अनुमति दी और उन पर से नियंत्रण को हल्का किया. पार्टी का अस्तित्व बनाए रखने के लिए नेताओं ने 1990 में एक बड़ा कदम उठाया और सत्ता के उत्तराधिकार के लिए एक औपचारिक परिपाटी बना दी. इसमें सत्ता के लिए नेताओं के चुनाव में तो आम लोगों की अब भी कोई भागीदारी नहीं थी लेकिन इसके तहत नेताओं के लिए एक निश्चित समय के बाद सत्ता छोड़ना जरूरी हो गया. शी के शासनकाल में अब उसे भी खत्म कर दिया गया है. शी अब देश की सत्ता पर जब तक जी चाहें, बने रह सकते हैं और इस तरह से वे माओ के बाद सबसे शक्तिशाली नेता बन गए हैं. राष्ट्रपति के कार्यकाल की सीमा को खत्म करने से देश में एक इंसान का शासन लौट आया है जिसे तेंग ने 1982 में आजीवन कार्यकाल को खत्म कर मिटाने की कोशिश की थी.

Chinesischer Präsident Xi Jinping besucht Vovlo
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Warnand

96 साल के सिडनी रिटेनबर्ग उन दुर्लभ अमेरिकी लोगों में हैं जो माओ को निजी रूप से जानते हैं. सिडनी का कहना है, "जनता की राय पर जो नियंत्रण माओ के दौर में था उससे तो फिलहाल बहुत हल्का है लेकिन तेंग शियाओपिंग के दौर की तुलना में यह बहुत ज्यादा कठोर है." हालांकि इसके बाद भी उनका कहना है कि चीन पुराने समय के अकेला पड़ने वाले दौर में नहीं जाएगा. क्योंकि फिलहाल उसकी अर्थव्यवस्था दुनिया के खुलेपन पर निर्भर है. उन्होंने कहा, "केवल संविधान बदलने भर से वक्त को पीछे ले जाना आसान नहीं है."

रिटेनबर्ग के मुताबिक चीन का शासक बनने के बाद माओ के व्यक्तित्व में काफी बदलाव आया. माओ ने इस बदलाव को दर्द के साथ झेला. माओ पर एक विदेशी जासूसी संस्था संगठन का हिस्सा होने का आरोप लगा. उन्हें 16 साल कैद में बिताने पड़े और इसका ज्यादातर हिस्सा काल कोठरी में बीता.

China Nationaler Volkskongress 2018 in Peking
तस्वीर: Getty Images/AFP/G. Baker

बहुत से लोगों को डर है कि इतिहास अपने को दोहरा रहा है. चीन के सरकारी अखबार चाइना यूथ डेली के पूर्व संपादक लि दातोंग कहते हैं, "मेरी पीढ़ी ने तो माओ का दौर देखा है. वह युग खत्म हो चुका है. आखिर हम एक बार फिर पीछे कैसे जा सकते हैं?"

आज का चीन भी माओ के दौर की उठापटक से काफी दूर है. 1989 में हुए छात्रों के विरोध प्रदर्शन जैसी कोई बात भी देखने सुनने में नहीं आ रही. तब बीजिंग के तियानमेन चौराहे पर भ्रष्टाचार और दमघोंटू राजनीति के खिलाफ आवाज बुलंद हुई थी. तेंग ने उसे बेरहमी से कुचलने का आदेश दिया. इसके नतीजे में सैकड़ों या शायद हजारों लोग मारे गए. इसके बावजूद पार्टी ने अपना नियंत्रण बनाए रखा और अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ी. सुधारवादियों को उम्मीद थी कि शायद राजनीतिक उदारवाद भी आएगा. 2008 में बीजिंग ओलिंपिक के आयोजन ने इन उम्मीदों को और हवा दी. आयोजन को पार्टी ने आधुनिक और भरोसेमंद चीन का नतीजा माना. उम्मीद थी कि जब चीन के लोग और नेता चीन से बाहर की चीजों और तौर तरीकों को उतना डरावना या खतरनाक नहीं मानेंगे. लेकिन उस साल की वैश्विक मंदी ने चीन के नेतृत्व को यह सोचने पर विवश कर दिया कि वह बाहरी दुनिया के लिए कितना खुले.

लोकतंत्र के विदेशी समर्थकों ने उम्मीद लगाई कि इंटरनेट, मोबाइल और दूसरी उभरती तकनीकें पार्टी के नियंत्रण को तोड़ देंगी. इसकी बजाय चीन के नेताओं ने वेब फिल्टर को विकसित करने पर भारी निवेश कर इंटरनेट और वीडियो सर्विलेंस का इस्तेमाल लोगों को अपनी निगरानी में रखने पर किया.

2012 में पार्टी का नेतृत्व संभालने के बाद शी जिनपिंग ने सिविल सोसायटी को और कमजोर किया. लेखकों, कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार वकीलों को या तो कैद कर लिया गया या फिर उन्हें चुप करा दिया गया. कार्यकाल की सीमा पर ऑनलाइन चर्चा को पूरी तरह से सेंसर किया गया.

चीन लंबे समय से यह दलील देता रहा है कि पश्चिमी शैली वाला लोकतंत्र चीन के लिए उचित नहीं है. वह अमेरिका और दूसरे देशों में राजनीतिक और कूटनीतिक अड़चनों का हवाला देता है और मार्क्सवादी लेनिनवादी अपनी सत्ता को लोकतंत्र से ऊपर बताता है. विशेषज्ञों का कहना है कि देश इतिहास के उसी दौर में पहुंच गया है जहां से उसने आगे चलना शुरू किया था.

एनआर/एके (एपी)